नहीं काम आई दुश्यंत चौटाला की दबाव की राजनीति, जेजेपी के लिए अपना घर बचाने की चुनौती

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 भगवत कौशिक

– मंगलवार का दिन हरियाणा बीजेपी और जेजेपी पार्टी की राजनीति में बड़ा सियासी भूचाल लेकर आया जिसकी कल्पना शायद किसी ने सोची भी ना होगी। पिछले साढ़े चार साल से गठबंधन में सरकार में भागीदार भाजपा और जेजेपी गठबंधन में दरार पड़ गई है। जिसके बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर और उनके कैबिनेट मंत्रियों ने मंगलवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया

जिसके बाद हरियाणा सीएम के पद पर पिछले साढ़े नौ साल से काबिज मनोहर लाल खट्टर को हटाकर उनकी जगह बीजेपी के मौजूदा प्रदेशाध्यक्ष नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री पद की जिम्मेदारी सौंपी गई है।

मनोहर लाल खट्टर को मुख्यमंत्री पद पर हटाए जाने के पिछे राज्य की राजनीति पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों द्वारा बीजेपी नेतृत्व को राय दी गई थी कि अगर 2024 में हरियाणा में बीजेपी सरकार बनाए रखनी है तो बीजेपी को मुख्यमंत्री बदलना पड़ेगा, नहीं तो पार्टी की विधानसभा चुनावों में राह मुश्किल होगी।

वहीं दूसरी ओर राजनीतिक जानकारों का कहना है कि भाजपा और जजपा गठबंधन टूटने की पटकथा, 240 दिन पहले यानी जून 2023 में ही लिखी गई थी। उस वक्त इन दोनों दलों के बीच दरार आ गई थी। वह दरार अभी तक भरी नहीं थी। ये अलग बात है कि भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा और दुष्यंत चौटाला की मुलाकात के बाद दोनों दलों में चल रहे गतिरोध के कुछ हद तक दूर होने की बात कही गई थी…

बीजेपी नेतृत्व गठबंधन तोड़ने को लेकर अपनी तरफ से पहले करने के मुड में नहीं था।अब लोकसभा चुनाव को लेकर जहां जेजेपी की तरफ से बीजेपी से दो लोकसभा सीटों हिसार और भिवानी – महेंद्रगढ़ की सीट जजपा को दिए जाने का दबाव बनाया जा रहा था ,जिसको बीजेपी नेतृत्व ने नकार दिया।

 पीएम मोदी द्वारा मनोहर की तारीफ के 24 घंटे के भीतर छीनीं कुर्सी

आपको बता दें कि पीएम मोदी के हरियाणा दौरे के चौबीस घंटों के भीतर ही मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की कुर्सी छीन गयी है। दरअसल हरियाणा में लगातार दूसरी बार मुख्यमंत्री रहे मनोहर लाल को बीते सोमवार के दिन द्वारका एक्सप्रेसवे के उद्धाटन के बाद आयोजित समारोह में प्रधानमंत्री मोदी ने पूरे नंबर दिए थे। प्रधानमंत्री ने कहा था कि मुख्यमंत्री के विकास के विजन के चलते ही हरियाणा ने हर क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए हैं। साथ ही मुख्यमंत्री को कर्मठ कहते हुए बीते दिनों को याद किया था। फिर अचानक यूँ खट्टर का कुर्सी से हटना समझ के परे है।

जाट वोट डिवाइडेड नीति के तहत जेजेपी को लगाया किनारे –

हरियाणा में जाट वोटरों की संख्या सबसे ज्यादा है। पिछले चुनाव में जाट समुदाय का वोट बीजेपी को नहीं मिला और आगे भी बीजेपी को मिलने की उम्मीद नहीं है।ऐसे में बीजेपी एंटी जाट वोट पर ज्यादा फोकस कर रही है। बीजेपी नेतृत्व को लगता है कि हरियाणा में जाट कांग्रेस के साथ हैं।कुछ वोट इनेलो भी ले जा सकती है।अगर जाट वोटों का एक और दावेदार आ जाए तो इसमें कोई दो राय नहीं कि बीजेपी का काम आसान हो जाएगा।जेजेपी के साथ होने से बीजेपी को कोई फायदा नहीं होने वाला था। जेजेपी अगर बीजेपी से अलग चुनाव लड़ती है तो पार्टी को ज्यादा फायदा हो सकता है। यह बात जितनी बीजेपी के लिए सही है उतना ही जेजेपी के लिए सही है।

नान जाट वोटों की रणनीति पर काम कर रही है बीजेपी 

हरियाणा की राजनीति में जाटों का वर्चस्व रहा है।पिछले साढ़े नौ साल से हरियाणा में मनोहर लाल के नेतृत्व मे बीजेपी की सरकार बनी है। सीएम खट्टर पंजाबी समुदाय से आते हैं। जाट समुदाय को ये बात खटकती रही है। 2017 में जाट आरक्षण आंदोलन इसका ही परिणाम रहा।इस आंदोलन में पंजाबियों  को जान माल का बहुत नुकसान हुआ जिसका सीधा फायदा बीजेपी को हुआ। बीजेपी ने प्रदेश में मुख्यमंत्री तो पंजाबी को बनाया ही प्रदेश अध्यक्ष पद से जाट ओमप्रकाश धनखड़ को हटाकर नायब सैनी को बना दिया।नायब सैनी पिछड़ी जाति से आते हैं।नायब सैनी को मुख्यमंत्री बनाकर बीजेपी राज्य में पंजाबी और बैकवर्ड वोट बैंक बनाना चाहती है। 

 हरियाणा मे जातिगत आंकड़े –

हरियाणा की आबादी में जाटों की संख्या लगभग 23 प्रतिशत है जिसके कारण राजनीतिक रूप से भी प्रभावी रहे हैं। राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से कम से कम 40 सीटों पर जाट समुदाय का सीधा प्रभाव है।2014 के विधानसभा चुनाव में जाटों ने भाजपा को एकतरफा वोट दिया,लेकिन 2019 विधानसभा चुनावों में मामला उल्टा पड़ गया।जाट समुदाय का वोट कांग्रेस 30 सीट, जेजेपी 10 सीट और आईएनएलडी एक सीट में बंट गया।जाट समुदाय की नाराज़गी इस कदर देखने को मिली की भाजपा के दिग्गज जाट नेता कैबिनेट मंत्री कैप्टन अभिमन्यु और ओम प्रकाश धनखड़, पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेंद्र सिंह की पत्नी प्रेम लता और तत्कालीन राज्य भाजपा अध्यक्ष सुभाष बराला सभी चुनाव हार गए।

राज्य में ब्राह्मण, पंजाबी और बनिया समाज का वोट 29 से 30 प्रतिशत के करीब है।इनका वोट सीधे बीजेपी को ही जाता है।अगर पिछड़ा वर्ग के करीब 24 से 25 प्रतिशत वोट भी बीजेपी के साथ आ जाते हैं तो बीजेपी को प्रदेश में हराना नामुमकिन हो जाएगा।

 नायब सिंह सैनी को मुख्यमंत्री बनवाकर मनोहर लाल खट्टर ने दिखाई अपनी राजनैतिक पहुंच 

मनोहर लाल खट्टर और नायब सिंह सैनी के बीच गहरा रिश्ता है। दोनों की दोस्ती करीब दो दशक पुरानी है। मनोहर लाल खट्टर की सिफारिश पर ही नायब सिंह सैनी को 2019 में कुरूक्षेत्र से लोकसभा का टिकट मिला था।इसके साथ ही प्रदेशाध्यक्ष बनवाने में भी मनोहर लाल खट्टर का हाथ रहा है।ऐसे में नायब सिंह सैनी को अपनी जगह मुख्यमंत्री बनवाकर मनोहर लाल खट्टर ने जहां एक तरफ मनोहर लाल को सीएम पद से हटाकर सीएम बनने के ख्वाब देख रहे नेताओं के अरमानों पर पानी फेर दिया ,वहीं अपने चहेते को मुख्यमंत्री पद पर काबिज करवाकर संगठन और पार्टी में अपने वर्चस्व को कायम रखा ।

कौन है नायब सिंह सैनी

नायब सिंह सैनी का जन्म 25 जनवरी 1970 को अंबाला के एक छोटे से गांव मिजापुर माजरा में हुआ। उन्होंने बीए और एल एल बी की शिक्षा ग्रहण की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ने पर मनोहर लाल खट्टर से मुलाकात हुई और उनसे प्रभावित होकर भाजपा ज्वाइन की।

नायब सिंह सैनी का बीजेपी में राजनैतिक सफर 1996 में शुरू हुआ जब हरियाणा बीजेपी संगठन में उनकी इंट्री हुई और वर्ष 2000 तक उन्होंने राज्य महासचिव के साथ काम किया।

लगातार संगठन में कार्य करते हुए उन्होंने वर्ष 2002 में अंबाला बीजेपी युवा विंग के जिला महासचिव की भुमिका निभाई तथा वर्ष 2005 में अंबाला बीजेपी युवा विंग जिलाध्यक्ष के रूप में उनकी नियुक्ति हुई।

पार्टी के प्रति उनके समर्पण के चलते उन्हें वर्ष 2009 में हरियाणा बीजेपी किसान मोर्चा के राज्य महासचिव और वर्ष 2012 में अंबाला बीजेपी जिलाध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया।

सन् 2014 मे नारायण गढ़ विधानसभा से विधायक बने और फिर साल 2015 में हरियाणा सरकार में राज्य मंत्री रहे। वह साल 2019 में कुरुक्षेत्र सांसद रहे।

ओबीसी समुदाय से आने वाले कुरूक्षेत्र के सांसद नायब सिंह सैनी को पिछले साल अक्टूबर में हरियाणा बीजेपी का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया था।

 गठबंधन टुटने पर भी निर्दलीयों के सहारे बनी रहेगी भाजपा सरकार

हरियाणा की मौजूदा 90 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 41 विधायक हैं। जबकि कांग्रेस के पास 30 विधायक हैं। दुष्यंत चौटाला के नेतृत्व वाली जननायक जनता पार्टी के पास 10 विधायक हैं। हरियाणा लोकहित पार्टी का एक विधायक जीत कर सदन में पहुंचा था। इनेलो पार्टी के इकलौते अभय चौटाला विधायक हैं। जबकि निर्दलीय विधायकों की संख्या सात है और यही वो नंबर है जो हरियाणा की राजनीति में नया आयाम देगा।

दरअसल सरकार बनाने के लिए 46 विधायकों की जरूरत है और इस समय भाजपा के पास कुल 41 विधायक हैं। लेकिन उसे छह निर्दलीय विधायकों के अलावा जजपा के पांच विधायकों का समर्थन प्राप्त है। इस प्रकार से नंबर गेम (41+5+6=52) 52 विधायकों का हो रहा है।

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