
तनवीर जाफ़री
इस समय भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया में कोरोना महामारी को लेकर स्थितियां असामान्य बनी हुई हैं। परन्तु हमारे देश में कोरोना से भी बड़ी ,महामारी है समाज को विभाजित करने की कोशिशों की। समाज विभाजक शक्तियां बड़े ही सुनियोजित तरीक़े से समाज को धर्म या जाति के नाम पर विभाजित करने का आसान बहाना ढूंढ लेती हैं। किसी नेता द्वारा विकास संबंधी अपनी उपलब्धियां बताकर वोट लेना मुश्किल होता है। जबकि स्वयं को हिन्दू ,मुसलमान ,सवर्ण ,पिछड़ा या दलित बताकर वोट झटकना आसान । हमारे देश में प्रायः अधिकांश राजनैतिक दल पार्टी प्रत्याशियों का टिकट वितरण भी निर्वाचन क्षेत्र में धर्म व जाति की संख्या के आधार पर ही करते हैं।
इन सबके बीच रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह कई बार यह कह चुके हैं कि ‘मुसलमान भारत का नागरिक और हमारा भाई है. वह हमारे जिगर का टुकड़ा है। वे अक्सर मुस्लिम नागरिकों में पार्टी के प्रति बैठे डर को समाप्त करने व उनमें आत्मविश्वास भरने की कोशिश करते रहते हैं। एक दूसरे केंद्रीय मंत्री मुख़्तार अब्बास नक़वी ने भी कहा, कि ‘धर्मनिरपेक्षता और सद्भाव भारतवासियों के लिए राजनीतिक फ़ैशन नहीं, बल्कि जुनून है,यह हमारे देश की ताक़त है। उन्होंने भारत को मुसलमानों व सभी अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के लिए स्वर्ग बताया।यहाँ तक कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की ओर से भी कभी कभी भारतीय मुसलमानों को तसल्ली व ढारस देने वाले बयान दिए जाते हैं। अनेक विरोधाभासों के बावजूद समय समय पर सत्ता की तरफ़ से आने वाले इस तरह के बयान भारतीय मुसलमानों के यह सोचने के लिए पर्याप्त है कि बहुसंख्य वोट हासिल करने के तहत भले ही मुसलमानों के विरोध के तमाम बहाने क्यों न ढूंढें जाएं परन्तु आसानी से उनकी उपेक्षा भी नहीं की जा सकती।
परन्तु निश्चित रूप से भारतीय मुसलमानों पर भी एक बड़ी ज़िम्मेदारी है जिससे मुस्लिम समाज न तो इंकार कर सकता है न ही बच सकता है। उदाहरण के तौर पर इन दिनों कोरोना महामारी को लेकर ही तरह तरह की विरोधाभासी बातें देखने व सुनने को मिल रही हैं। कई जगह मुस्लिम समुदाय के लोगों द्वारा कहीं स्वास्थ्य कर्मियों पर तो कहीं पुलिस कर्मियों पर पथराव किया गया। यहाँ मुसलमान यह कहकर स्वयं को बचा नहीं सकते कि ‘अमुक स्थान पर ग़ैर मुस्लिमों द्वारा भी तो स्वास्थ्य कर्मियों व पुलिस कर्मियों पर पथराव किया गया’? याद रखें कि सत्ता से लाभ उठाने के एकमात्र मक़सद को हासिल करने वाला बिकाऊ मीडिया आपके छोटे से अपराध को चीख़ चीख़ कर,बढ़ा चढ़ाकर और नमक मिर्च लगाकर बार बार पेश करेगा। इसके लिए बाक़ायदा पूरी ‘पत्थरकार सेना ‘ तैनात है। यह वह चमचे हैं जो स्वयं को पतीली से भी गर्म दिखाना चाहते हैं। पालघर व बुलंदशहर में हुई साधुओं की हत्या और इसके टी वी कवरेज में बरता गया दोहरापन देश के सामने हैं। आज सऊदी अरब से लेकर ईरान व भारत तक जब दुनिया के बड़े से बड़े इस्लामी धर्मस्थानों को बंद किया जा चुका है। बुद्धिमान इमाम,क़ाज़ी,मौलवी मौलाना,मुफ़्ती बार बार कह रहे हैं कि चाहे रोज़ाना की नमाज़ हो,जुमा की नमाज़ हो या रोज़ा इफ़्तार व तरावीह आदि,सभी इबादतें घर पर ही रहकर करनी हैं। देश का अधिकांश मुसलमान इन बातों का पालन भी कर रहा है। परन्तु कुछ ग़ैर ज़िम्मेदार धर्मगुरु ऐसे भी हैं जो कहीं कहीं मस्जिदों में भीड़ इकट्ठी कर जमाअत में नमाज़ पढ़ा रहे हैं। इस तरह का कृत्य देश के नियमों व क़ानूनों के क़तई ख़िलाफ़ है। यह अपराध भी है और इन हरकतों से पूरा इस्लाम धर्म व मुस्लिम समाज बदनाम भी होता है।
निश्चित रूप से भारत मुसलमानों के लिए किसी स्वर्ग से कम नहीं है। परन्तु यह स्वर्ग देश में व्याप्त धर्मनिरपेक्ष विचारधारा के चलते है। देश के अधिकांश धर्मनिरपेक्ष बहुसंख्य हिन्दू समाज का देश को स्वर्ग बनाए रखने में सबसे अहम योगदान है। गाँधी व अंबेडकर की विचारधारा से ही इस देश को स्वर्ग बनाने की संकल्पना जुड़ी हुई है। ऐसे में कोई भी किसी भी धर्म का व्यक्ति यदि भारतीय लोकतंत्र के संयुक्त सामाजिक ताने बाने को बिगड़ना चाहता है तो वह निश्चित रूप से स्वर्ग रुपी इस देश को नर्क में बदलना चाहता है। ज़ाहिर है इनमें वे मुसलमान भी शामिल हैं जो स्वयं क़ानून की धज्जियाँ उड़ा कर मौक़े की तलाश में बैठे लोगों को अपने विरुद्ध चीख़ने-चिल्लाने का बहाना परोस रहे हैं। ऐ हिन्द के मुसलमानों…आपको इस बात का हक़ नहीं कि आप किसी मंदिर में इकट्ठी भीड़ या येदुरप्पा की शादी में शिरकत अथवा किसी एम एल ए की बर्थ डे पार्टी का हवाला देकर मस्जिद या बाज़ार की अपने समुदाय की भीड़ को सही ठहराएं। इसके विपरीत यदि कोई धर्मगुरु आपको मस्जिद में इकठ्ठा होने,जुमे की नमाज़ में शरीक होने,ईद की नमाज़ के नाम पर इकठ्ठा होने जैसे आह्वान करे तो आप उनका कड़ा विरोध करें। ऐ हिन्द के मुसलमानों कोरोना महामारी जैसे संकटकाल में पूरे देश को एकजुट होने की ज़रुरत है और सरकार के दिशा निर्देशों का पालन करना बेहद ज़रूरी है। यही मानवता का भी तक़ाज़ा है और धर्म का भी।
तनवीर जाफ़री
भारत के केवल कुछ मुस्लमान ही अलगाव का पहाड़ा गाते हैं! भारत के ५९% मुस्लमान गाँवों में रहते हैं! और उनमे से लगभग सभी बेशक आपसी व्यवहार में एक दूसरे को अस्सलाम वालेकुम या वालेकुम अस्सलाम कहते हैं लेकिन जब वो गाँव में किसी हिन्दू से व्यव्हार करते हैं तो अभिवादन में ‘राम राम’ ही बोलते हैं! ये ‘राम राम ‘ ही उन्हें इस देश से जोड़ता है और दर्शाता है की पीढ़ियों के बीतने के बाद भी अभी भी उनके दिलों में इस्लाम पूर्व की हिन्दू नेस की भावना जिन्दा है! शाह वलीउल्लाह,शाह अब्दुल अज़ीज़, सैय्यद अहमद बरेलवी, शाह इस्माइल और उन जैसे अनेकों मुस्लिम पुनरुत्थानवादियों के तथा लगभग एक सदी के तब्लीगी प्रचार के बावजूद ये हिन्दुनेस न निकली है और न ही निकल पायेगी! अतः बेहतर होगा की मुस्लिम कट्टर पंथी इस हकीकत को समझें और इस देश की संस्कृति से अपने को जोड़ें! १९७३-७४ में एक फिल्म आयी थी.”गर्म हवा”! इसमें एक शेयर था जो था तो पाकिस्तान के सन्दर्भ में लेकिन आज भी प्रासंगिक है.
“साहिल से जो करते हैं मौजों का नजारा, उनके लिए तूफान यहाँ भी है वहां भी हैं,
मिल जाओगे धारा में तो बन जाओगे धारा, ये वक्त का एलान है जो यहाँ भी है वहां भी है”.