डॉ. नीरज भारद्वाज
किसी भी विकसित राष्ट्र के लिए शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाएं बहुत महत्वपूर्ण हैं। दोनों ही देश के विकास के मजबूत पहिए भी हैं। कहा जाता है कि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। इस दृष्टि से हर व्यक्ति का स्वस्थ रहना और शिक्षा प्राप्त करना मूलभूत आवश्यकता है। हमारे देश के अलग-अलग राज्यों में शिक्षा की अलग-अलग स्थिति है। साक्षरता दर के आंकड़े भी अलग-अलग हैं। विचार करें तो देश के बालक और युवा शिक्षित होंगे तो वह रोजगार के लिए इधर-उधर नहीं भटकेंगे। शिक्षित युवा स्वयं के लिए रोजगार पैदा कर सकता है और दूसरों को भी रोजगार दे सकता है।
देश के अलग-अलग राज्यों में शिक्षा की स्थिति ठीक ना होने के कारण आज नगरों और महानगरों की ओर लोगों का मुख हो रहा है। गांव से पलायन हो रहा है, व्यक्ति कम खाकर या अपनी मूलभूत आवश्यकताओं पर अंकुश लगाकर अपनी आने वाली पीढ़ी को व्यवस्थित और सुंदर वातावरण में पढ़ाना चाहता है। इसी दौड़ के चलते महानगरों पर जनसंख्या का दबाव धीरे-धीरे बढ़ता जा रहा है जिसके चलते बहुत सारी अनचाही समस्याएं भी कई बार सामने आ जाती हैं।
महानगरों में जनसंख्या का अतिरिक्त बोझ होने के चलते झुग्गी-झोपड़ी का विकास होना, परिवहन समस्या और सड़क पर चारों ओर जाम जैसी स्थितियों का होना भी है। यदि सरकार ग्रामीण क्षेत्रों में शिक्षा की व्यवस्था को सुदृढ़ और व्यवस्थित तरीके से चलाएं तो बहुत से लोग गांव में ही रहकर अपना गुजर-बसर कर सकते हैं लेकिन जब समाचारों में देखते हैं कि दूर दराज के किसी गांव में स्कूल की छत गिर जाने से बच्चों की मौत हो गई। विद्यालय में सांप तथा जहरीले जीव निकल आए। बरसात के दिनों में विद्यालयों में पानी भर जाना, कहीं विद्यालयों में बिजली गायब होना। पीने के पानी की कमी, शौचालय न होना, अध्यापकों की भारी कमी आदि समस्याएं दिखाई देती हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति का निराश मन हार थक कर गांव छोड़कर कैसे भी गुजर-बसर करने पर मजबूर शहर की ओर आ जाता है।
इसके साथ ही स्वास्थ्य सेवा की बात करें तो भारतीय गांव में आज भी स्वास्थ्य सेवाओं की बहुत भारी कमी है। समय पर सही से इलाज न होने के चलते कितने ही लोगों की जान चली जाती है। एंबुलेंस ना मिलने के चलते चारपाई पर, कोई अपनी पीठ पर या गोद में अपने माता-पिता-बच्चे आदि को उठाकर ले जाते हुए, कितने ही समाचारों में दिखाएं जाते हैं। लोग अच्छे इलाज के लिए भी नगरों और महानगरों की ओर चल देते हैं। इससे भी महानगरों पर जनसंख्या का एक भारी दबाव बढ़ता है। महानगरों में महंगे इलाज की व्यवस्था है लेकिन वहां भी प्रशासन की लचर हालत ही है। कुछ लोग यहां से भी हार थक कर अपने गांव लौट आते हैं। किसी का पैसा और इंसान दोनों ही चले जाते हैं। वादे तो बहुत होते हैं लेकिन वह कितने पूरे होते हैं, इसके बारे में भी सोचने की जरूरत है।
सरकार फ्री शिक्षा और उचित स्वास्थ्य सेवाओं की बात अवश्य करती है लेकिन वह कितनी कारगर और सफल है, इस पर भी ध्यान देने की जरूरत है। विद्यालयों-महाविद्यालयों में शिक्षकों की भारी कमी दिखाई देती है। अस्पतालों में डॉक्टरों की कमी के चलते लंबी-लंबी लाइन लगी रहती हैं। एक दिन का काम महीनों में होता है। सरकार को शिक्षा और स्वास्थ्य के मूलभूत ढांचे में सुधार करने की आवश्यकता है। समय-समय पर शिक्षकों और डॉक्टर की भर्ती करते रहना होगा। देश सेवा में उनकी बहुत बड़ी भूमिका है। इनमें सुधार हुआ तो सभी में सुधार संभव है। कहा जाता है कि शिक्षक राष्ट्र का निर्माता है। राष्ट्र के निर्माण में शिक्षा और स्वास्थ्य की अनदेखी न की जाए, बल्कि समय-समय पर इनमें सुधार की आवश्यकता है।