जल्दी में कभी दिल से कोई बात नहीं होती।
वो जो हो जाती है जेठ के महीने में
बरसात वो मौसमे -बरसात नहीं होती।
चुराते दिल को तो होती बात कुछ और
नज़रें चुराना यार कोई बात नहीं होती।
डर लगने लगता है मुझे खुद से उस घडी
पहरों जब उन से मेरी मुलाक़ात नहीं होती।
वो मैकदा ,वो साकी वो प्याले अब न रहे
अंगडाई लेती अब नशीली रात नहीं होती।
आना है मौत ने तो आएगी एक दिन
कोई भी दवा आबे -हयात नहीं होती।
अपने ही घर का रास्ता भूल जाती है
बात जब मुंह से बाहर निकल जाती है।
रुसवाई किसी की किसी नाम का चर्चा
करती हुई हर मोड़ पर मिल जाती है।
गली मोहल्ले से निकलती है जब वो
नियम कुदरत का भी बदल जाती है।
सब पूछा करते हैं हाले दिल उसका
वो होठों पर खुद ही मचल जाती है।
कौन चाहता है उसे मतलब नहीं उसे
वो चाहत में बल्लियों उछल जाती है।
अच्छी होने पर खुशबु बरस जाती है
बुरी हो तो राख मुंह पर मल जाती है।
वाह क्या बात है. गजलें सर्द जाड़े में गुनगुनी धुप सा मजा देती है, इस खूबसूरत गजल के लिए धन्यवाद !
ग़ज़ब