अनिल अनूप

थाइलैंड बाल वेश्यावृत्ति के लिए दुनियाभर में कुख्यात है। लाखों सैलानी वहां हर साल कम उम्र की लड़कियों का सहवास पाने के लिए पहुंचते हैं। मगर अब यह मर्ज भारत के मुम्बई जैसे शहरों में फैलता जा रहा है। इसी के साथ बढ़ रही है एड्स की भयावहता भी। लोगों की हवस अनियंत्रित होती जा रही है और इसका शिकार अवयस्क लड़कियां ही हो रही हैं। वेश्यालयों में भी नाजुक उम्र की लड़कियों की मांग बढ़ रही है। बाल वेश्यावृत्ति का यही पमुख कारण है। आजकल बड़ी संख्या में लोग देह व्यापार से जुड़ते जा रहे हैं। हमारे देश में वेश्याओं की संख्या 40 लाख का आंकड़ा दो साल पहले ही पार कर चुकी है। इनमें 15 फीसदी 14 से 16 वर्ष की बाल वेश्याएं थीं। टाटा सामाजिक विज्ञान की पोफेसर आशा राणे के मुताबिक मुम्बई में फिलहाल बाल वेश्याओं की अनुमानित संख्या एक लाख से ऊपर है। इसके अलावा कुछ कमसिन लड़के भी देह व्यापार से संलग्न हैं। युवाओं में समलैंगिक मैथुन का फैशन बड़ी तेजी से फैल रहा है। मुम्बई, दिल्ली और गोवा जैसे पाश्चात्य संस्कृति वाले शहरों के होटलों और रिहाइशी कॉलोनियों में कमसिन लड़कों की मांग अचानक बढ़ गई है।
बाल वेश्यावृत्ति की भयावहता के मद्देनजर केन्दीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने कुछ साल पहले एक केन्दीय सलाहकार समिति गठित की थी। समिति ने केन्दीय समाज कल्याण मंडल के साथ मिलकर ऐसे शहरों में सर्वेक्षण किया, जहां वेश्याओं की संख्या 70 हजार से ऊपर है। रिपोर्ट के मुताबिक 15 फीसदी वेश्याएं 16 साल या उससे कम उम्र की हैं, जबकि 25 फीसदी वेश्याओं की आयु 16 से 20 साल के बीच है।
रिपोर्ट में नाबालिग लड़कियों के देह व्यापार में आने की कई वजह बताई गई हैं। लोगों की आर्थिक तंगी, फटेहाली और गरीबी भी उन्हें देह व्यापार करने पर मजबूर करती है। कई परिवारों के लिए आज भी दो जून की रोटी और कपड़े के लाले हैं, सो वे अपनी लड़कियों को अपना तन बेचने की छूट दे देते हैं। कुछ मामलों में निजी वेश्यालय चलाने वाले असामाजिक तत्व छोटी उम्र की लड़कियों का अपहरण कर लेते हैं और उन्हें ग्राहकों के सामने परोस कर देह व्यापार के लिए मजबूर कर देते हैं। कुछ लोग पुरानी मान्यताओं की वजह से बालिकाओं से वेश्यावृत्ति करवाते हैं क्योंकि यह उनका खानदानी पेशा होता है। ये परंपरागत रूप से इस धंधे में लिप्त रहते हैं। इनके पास आमदनी का अन्य स्रोत नहीं होता। इसी कारण इनके बच्चों की पढ़ाई-लिखाई नहीं हो पाती और उनके यहां लड़की के जवानी की दहलीज पर कदम रखने से पहले ही उसकी `नथ’ उतर जाती है। कुछ कमसिन लड़कियां मुम्बई की फिल्म नगरी से चौंधिया जाती हैं। अपना रूप रंग देखकर उन्हें लगने लगता है कि वे माधुरी दीक्षित, आलिया, दीपिका पादुकोण, जूही चावला, पियंका चोपड़ा की छुट्टी कर सकती हैं और घर-परिवार को छोड़कर या बगावत कर मुम्बई भागी चली आती हैं। वे यहां वेश्यालय के दलालों के हाथ लग जाती हैं, जो उन्हें फिल्म में अच्छी भूमिका का पलोभन देकर कोठे पर पहुंचा देते हैं। फिल्मी धुन में पागल कुछ सुंदरियां ज्यादा बोल्ड बनने और एक्सपोज करने के चक्कर में दलाल फोटोग्राफरों के कैमरे के सामने सारे कपड़े उतार देती हैं। कभी-कभी तो इन्हें फोटोग्राफी स्थल पर ही अपनी इज्जत से हाथ धोनी पड़ती है और बाद में उन्हें ग्राहकों की रात रंगीन करने बेबस कर देते हैं। बाद में इन `भावी हीरोइनों’ के पास वेश्या बनने के अलावा दूसरा चारा ही नहीं होता, क्योंकि इनके घर के दरवाजे इनके लिए सदा के लिए बंद हो जाते हैं। कमसिन उम्र की भावुक लड़कियां अक्सर गलत और आवारा किस्म के युवकों के पेमपाश में फंस जाती हैं और शादी के पलोभन पर अपना कौमार्य गंवा बैठती हैं। उनके तथाकथित पेमी उन्हें बहकाकर मुम्बई ले आते हैं और वेश्यालय की `बाई’ के हाथों बेच देते हैं और दुल्हन बनने का सतरंगी सपना देखने वाली लड़की को तवायफ का नारकीय जीवन कबूल करना पड़ता है। महानगर में जीवन जीने की ललक या जादुई शक्पि भी दूर दराज की कमसिन लड़कियें को मुम्बई की ओर खींचती है। यहां आते ही लड़कियां कामी पुरुषों की वासना का शिकार हो जाती हैं और चकलाघर में कैद कर ली जाती हैं। गरीब परिवार की बड़ी लड़कियां जो सुबह से देर रात तक काम में कोल्हू के बैल की तरह जुती रहती हैं और शारीरिक एवं मानसिक रूप से बीमार हो जाती हैं। वे वेश्यालय के नरक को अपने मौजूदा जीवन से अच्छा मानते हुए वेश्या जीवन कबूल कर लेती हैं। उन्हें इसमें अपत्याशित आय होती है और उनका जीवन स्तर उठ जाता है।
कम वेतन पाने वाली नौकरीशुदा लड़कियां जो ज्यादा पैसा कमाने की अपनी इच्छा पर काबू नहीं रख पातीं और अपने वरिष्ठ अधिकारी या बॉस से ही ठगी जाती हैं और बलात्कार की शिकार होती हैं। उन्हें जुबान बंद रखने के लिए वेतनवृद्धि या पदोन्नति का पलोभन दिया जाता है। धीरे-धीरे ये लड़कियां सहवास की आदी हो जाती हैं और लोगों की रातें रंगीन करने लगती हैं। एक समय ऐसा आता है जब वे खुद को एक तवायफ के समकक्ष पाती हैं। घर की कलह भी कुछ लड़कियों को वेश्या बनने को मजबूर कर देती है। मां-बाप की आपसी कलह से लड़कियां तंग आ जाती हैं और घर से भाग जाती हैं और भटकती हुई चकलाघरों में पहुंच जाती हैं। कभी-कभी निर्दयी सौतेले मां-बाप अपनी लड़कियों को खुद दलालों के हाथों बेच देते हैं। परिवार की गतिविधियों से बेखबर शराबी बाप की बेटियां भी कभी-कभी बहक जाती हैं और दलालों के फरेब में आकर कोठे पर पहुंचा दी जाती हैं। आकाशवाणी मुम्बई से बार बालाओं पर एक कार्यकम पसारित हुआ था। बार बालाओं ने बताया कि उनके बार में ज्यादातर लड़कियें की उम्र 18 वर्ष से कम है तथा कमसिन युवतियों में आजकल बारबाला बनने की होड़ सी मची है। दरअसल बार बाला या कॉलगर्ल का जीवन अपनाते ही पैसे की बरसात सी होने लगती है। एक बार बाला साल भर के भीतर फ्लैट खरीदने की हैसियत पाप्त कर लेती है। मुम्बई में बाल वेश्याएं टेलीफोन से उपलब्ध हो जाती हैं। जब देह व्यापार खासकर कम उम्र की लड़कियों की जद में रिहाइशी कॉलोनियां भी आ गई हैं। सफेदपोश लोगों को कमसिन लड़की की सप्लाई रिहाइशी कॉलोनियों से होती है। बाल वेश्यावृत्ति के मामले में आज जो हालत मुम्बई की है, कुछ साल पहले थाईलैण्ड की थी। थाईलैण्ड बाल वेश्याओं के लिए पूरी दुनिया में जाना जाता था। बाल वेश्याओं के शौकीन यूरोप, अमेरिकी और अरब देशों के अय्याशों के लिए थाईलैण्ड मनपसंद जगह थी। वहां बाल वेश्याओं, कॉलगर्ल्स और बार बालाओं के अलावा देह व्यापार में लिप्त संभ्रांत परिवार की कमसिन लड़कियां बड़ी सहजता से उपलब्ध हो जाती थीं। कमसिन लड़कों के शौकीन मनचलों को भी थाईलैण्ड में निराश नहीं होना पड़ता था। विदेशी उद्योगपति और मंत्री तक थाईलैण्ड में डेरा डाले रहते थे, उनके एक इशारे पर दर्जन भर खूबसूरत एवं आकर्षक लड़कियां उनकी खिदमत में पेश कर दी जाती थीं। लेकिन कुछ साल पहले आई एक सर्वेक्षण की रिपोर्ट से पता चला कि ज्यादातर लोगों के रक्प में बड़ी संख्या में `एचआईवी वाइरस’ का अनुपात कई गुना ज्यादा था। इस रिपोर्ट के बाद थाईलैण्ड में बड़ी संख्या में एड्स के मरीजों का पता चला। सरकारी महकमे में इस रिपोर्ट से खलबली मच गई। देश के नीति नियंता ने विदेशी सैलानियों को आकर्षित करने के लिए बाल वेश्यालयों की जगह पर्यटन केन्दों को विकसित करने लगे। बाल वेश्यावृत्ति के खिलाफ मुहिम छेड़ दिया। 13 वर्षीय एक लड़के से बलात्कार करने वाले एक 69 वर्षीय स्वीडिश नागरिक को दो साल की सजा हुई। कुछ समय पहले पेस ने एक स्वीडिश मंत्री की कारगुजारियों को भी पमुखता से छापा जो राते रंगीन करने थाईलैण्ड जाता था। थाईलैण्ड की पूरी की पूरी संस्कृति को लगता है कि केरल के तटवर्ती कोवालम शहर ने अपना लिया है। वहां मसाज पार्लरों की भरमार है। यदि आप अपने शरीर की कोमल मालिश करवाना चाहें तो किसी भी मसाज पार्लर में तशरीफ ले जाइए। ये मसाज पार्लर ग्राहकों के लिए 24 घंटे खुले रहते हैं। वहां जगह-जगह टूरिस्ट ब्रोसर उपलब्ध रहता है, जिनमें मसाज पार्लरों के बारे में पूरी जानकारी फोन नंबर सबकुछ होता है। विज्ञापनों में यह भी लिखा रहता है- `एक निजी महिला दोस्त चाहिए, जिसकी उम्र इतनी हो, जो एक दूसरे की इच्छाओं को पूरी करने की इच्छुक हो, अमुक टेलीफोन नंबर पर संपर्प करें।’ या फिर `एक गृहिणी को जरूरत है एक बोल्ड मजबूत, नौजवान और स्मार्ट पुरुष दोस्त की जो…।’ इस तरह के विज्ञापनों की भरमार रहती है टूरिस्ट ब्रोशर में। अपनी इसी विशिष्टताओं की वजह से कोवालम पश्चिमी देशों में जाना जाने लगा है। विदेशी रसिक इस शहर को `सेक्स हॉलीडे’ के रूप में पयोग करने लगे हैं। यहां मसाज पार्लरों में कमसिन उम्र की लड़कियां ही काम करती हैं। यहां कम उम्र के किशोर भी उपलब्ध कराए जाते हैं। विडम्बना यह है कि एड्स की वाहक यह बुराई भारत में फैलती ही जा रही है। भारतीय समाज उत्तरोत्तर सेक्स के मामले में ज्यादा `ओपन’ हो रहा है। लोग इसके खिलाफ लड़ने की सारी जिम्मेदारी पुलिस और सरकार पर छोड़ देते हैं। पुलिस कभी कभार कार्रवाई करके लड़कियों को एक वेश्यालय से मुक्प कराती है, तो वे दूसरे वेश्यालयों में पहुंच जाती हैं, क्योंकि उनके पास रोजी-रोटी का कोई दूसरा जरिया ही नहीं होता। बाल वेश्यावृत्ति रोकने के लिए हम अमेरिका की न्यूयार्प शहर में कार्यरत काइम पिवेंशन ब्यूरो की नकल कर सकते हैं। ब्यूरो के पास पशिक्षित महिला-पुरुष कार्यकर्ता हैं, जो बाल वेश्यालयों से संपर्प में रहते हैं। ब्यूरो यौनाचार में लिप्त 21 वर्ष से कम युवक-युवतियों को सुधारगृहों में भेजता है, जहां उन्हें रोजी-रोटी कमाने के लिए विविध कामों का पशिक्षण दिया जाता है।
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