
—विनय कुमार विनायक
हे ईश्वर! यदि तुम एक हो,
मानव-मन में एकता भर दे!
असिधर को मसीधर कर दे!
मसीधर में सद्विवेक भर दे!
हे ईश्वर! यदि तुम नेक हो,
अपने अंधभक्तों के चक्षु में
ज्ञान की ज्योति को भर दे!
उनके तम कलुष को हर ले!
हे ईश्वर! यदि तुम ईश्वर हो,
भक्तों को सब्जबाग ना दिखा
अप्सरा, हूर, परी जन्नत वाली
जन्नत,दोजख से मुक्त कर दे!
हे ईश्वर! यदि तेरा कोई घर है,
उस घर को कल्याणकारी कर दे!
तेरे घर में है फसाद का छप्पर
उस मंडप-गुंबद को एक कर दे!
हे ईश्वर! यदि तेरा घर मंदिर,
मस्जिद और गिरजाघर में ही है
तो कोई क्यों मंडप गिराता है?
कोई क्यों गुंबद विहीन करते?
हे ईश्वर! छोड़ कलह का घर,
अपने भक्तों को सद्बुद्धि दे!
हे प्रभु! छोड़ो काबा,काशी,रोम
व्योम में अपना घर कर ले!
—विनय कुमार विनायक,