रामस्वरूप रावतसरे
पश्चिम बंगाल से बीते डेढ़ दशक में 6 हजार से अधिक कंपनियों ने अपना बोरिया बिस्तर बांधा है। इनमें से 2 हजार से अधिक कंपनियाँ बीते 5 वर्षों में राज्य छोड़ कर गई हैं। यह भी सामने आया है कि इस दौरान यह कंपनियाँ दिल्ली, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात जैसे राज्यों को गई हैं। पश्चिम बंगाल से उद्योग धंधों का यह पलायन तृणमूल कॉन्ग्रेस (टीएमसी) के राज में हुआ है। पश्चिम बंगाल में जहाँ एक ओर कंपनियाँ राज्य छोड़ कर जा रही हैं, वहीं नए निवेश भी नाममात्र को हो रहे हैं। देश के चौथे सबसे अधिक जनसंख्या वाले प्रदेश के लिए यह स्थिति गंभीर और चिंताजनक है।
यह आँकड़े भले ही चौंकाने वाले हों, लेकिन उद्योग-धंधों का पलायन और पश्चिम बंगाल का पुराना रिश्ता है। देश के बड़े कारोबारी घरानों के अपना मुख्यालय शिफ्ट करने से बड़े ब्रांड्स के फैक्ट्री बंद करने तक यही हाल बीते कई सालों से है। इसमें एक कारण ममता बनर्जी सरकार का उद्योग विरोधी रुख और राज्य की खस्ताहाल कानून-व्यवस्था बताया जा रहा है। कभी एशिया की बड़ी औद्योगिक ताकतों में से एक गिने जाने वाले कोलकाता के अवसान की यह पटकथा ममता बनर्जी के राज से पहले वामपंथियों ने लिख दी थी लेकिन ममता बनर्जी ने इस पटकथा को अंतिम रूप दिया है और उद्योग-धंधों में इजाफा करने के बजाय उनके ताबूत में आखिरी कील ठोंकने की कसर पूरी कर दी है।
राज्यसभा में मानसून सत्र के दौरान भाजपा के पश्चिम बंगाल अध्यक्ष सामिक भट्टाचार्य ने पश्चिम बंगाल पर एक प्रश्न पूछा। उनके उत्तर में केन्द्र सरकार के कॉर्पारेट मामलों के मंत्रालय ने बताया है कि वर्ष 2011-12 से वर्ष 2024-25 के बीच पश्चिम बंगाल से 6688 कंपनियाँ राज्य छोड़ कर गई हैं। मंत्रलाय के उत्तर के अनुसार इनमें से एक तिहाई यानी 2200 से अधिक कंपनियाँ वर्ष 2019 के बाद से राज्य छोड़ कर गई हैं। यह ट्रेंड 2011 में टीएमसी के सत्ता में आने के बाद से लगातार जारी है। मंत्रालय के अनुसार, पश्चिम बंगाल छोड़ने वाली 6688 कंपनियों में से 110 कंपनियाँ ऐसी थीं जो शेयर बाजार में भी सूचीबद्ध थीं। मंत्रालय का डाटा बताता है कि 2017-18 के दौरान सबसे अधिक 1027 कंपनियों ने पश्चिम बंगाल छोड़ा है। 2015-16 और और 2016-17 के दौरान क्रमशः 869 और 918 कंपनियों ने पश्चिम बंगाल से कारोबार समेटा है।
कॉर्पारेट मंत्रालय के उत्तर के अनुसार पश्चिम बंगाल छोड़ने वाली कंपनियाँ दूसरे राज्यों में जा रही हैं। इनका पलायन ऐसे राज्यों में हो रहा है, जहाँ उद्योग को लेकर नीतियाँ सरल हैं और उन्हें प्रोत्साहित किया जा रहा है। 2011-25 के बीच पश्चिम बंगाल छोड़ कर सर्वाधिक कंपनियाँ महाराष्ट्र गईं हैं। इसके अलावा दिल्ली और उत्तर प्रदेश उनकी पसंदीदा लोकेशन में शामिल हुए हैं। कॉर्पारेट मंत्रालय का उत्तर बताता है कि पश्चिम बंगाल छोड़ने वाली 1300 से अधिक कंपनियाँ 2011-25 के बीच महाराष्ट्र गईं हैं। वहीं 1297 ने दिल्ली को चुना है। इसके अलावा 879 कंपनियाँ पश्चिम बंगाल छोड़ कर उत्तर प्रदेश में गई हैं।
छत्तीसगढ़, गुजरात और राजस्थान भी 1000 से अधिक कंपनियाँ पश्चिम बंगाल से छीनने में सफल रहे हैं हालाँकि, इस सबका तृणमूल सरकार पर कोई असर नहीं दिखाई पड़ता है। वह उद्योग धंधों को राज्य में लाने के बजाय उन्हें और राज्य निकाला देने पर तुली दिखाई पड़ती है।
जानकारों की माने तो पश्चिम बंगाल में दशकों से व्यापार करने वाली कंपनियाँ एक ओर राज्य छोड़ रही हैं तो वहीं हाल ही में बनर्जी की सरकार ने कुछ ऐसा किया है जिससे यह पलायन और तेज हो सकता है। अप्रैल, 2025 में राज्य की ममता सरकार ने उद्योगों को लाभ पहुँचाने वाली सभी सरकारी योजनाओं को बंद कर दिया था। उद्योग-धंधों को लुभाने के लिए 1993 से लेकर 2021 तक बनाई गई सभी नीतियाँ एक झटके में राज्य सरकार ने खत्म कर दी थीं। इसका असर यह होगा कि राज्य में कोई भी उद्योग स्थापित करने पर किसी कारोबारी को कोई लाभ नहीं मिलेगा चाहे वह जमीन से जुड़ा हो, बिजली से जुड़ा हो या फिर अन्य किसी एंगल से।
एक रिपोर्ट बताती है कि ममता सरकार ने उद्योग धंधों को यह फायदे देने इसलिए बंद किए थे ताकि वह ‘सामाजिक कार्यों’ के लिए और पैसा सरकारी खजाने से मुक्त कर सके। इसका अर्थ है कि ममता सरकार उद्योग धंधों को बंद करके लोगों को और खुद पर निर्भर करना चाहती है। रिपोर्ट के अनुसार, पश्चिम बंगाल के इस कदम से कई सीमेंट कंपनियाँ बड़ा झटका झेलेंगी। इनमें डालमिया जैसे देश के पुराने और विशाल कारोबारी घराने भी शामिल हैं। यह नुकसान 500 करोड़ तक का बताया गया था। उद्योग धंधों को कोई भी लाभ ना देने का यह कदम पश्चिम बंगाल सरकार ने ऐसे समय में उठाया है जब बाकी राज्य उनके लिए बाँहें खोल कर खड़े हैं। कहीं 1 रूपये में जमीन दी जा रही है तो कहीं पूरे-पूरे नए शहर बनाए जा रहे हैं ताकि उद्योग-धंधे उनके यहाँ आ सकें।
पश्चिम बंगाल में पुरानी कंपनियाँ तो बाहर जा रही हैं, नया निवेश भी सिर्फ घोषणाओं और कागजों में ही आ रहा है। राज्य की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने दावा किया था कि जनवरी-नवम्बर 2024 में पश्चिम बंगाल में 39 हजार करोड़ से अधिक के निवेश प्रस्ताव आए थे। उन्होंने दावा किया था कि यह देश में तीसरा सर्वाधिक है। केंद्र सरकार के एक और विभाग की एक रिपोर्ट इस दावे की सच्चाई खोलती है। भले ही राज्य में बड़े-बड़े निवेश के वादे किए गए हो लेकिन असल में यह वादों के मुकाबले कहीं नहीं ठहरता। डीपीआईआईटी की आईईएम रिपोर्ट के अनुसार पश्चिम बंगाल में 2024 में नवम्बर माह तक 3735 करोड़ के निवेश ही हुए थे जबकि वादा कहीं अधिक था। पश्चिम बंगाल औद्योगिक निवेश के मामले में भी बाक़ी राज्यों के सामने कहीं नहीं ठहरता। यही रिपोर्ट बताती है कि 2020-24 के बीच जहाँ उत्तर प्रदेश में 71 हजार करोड़ से अधिक का निवेश हुआ है तो वहीं इस दौरान पश्चिम बंगाल मात्र 15 हजार करोड़ का ही निवेश आकर्षित करने में सक्षम रहा। निवेश आकर्षित करने के मामले में वह झारखंड तक से पीछे बताया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल छोड़ने का सिलसिला लगातार जारी ही रहा है। 2024 में राज्य में ब्रिटानिया ने अपनी दशकों पुरानी बिस्किट फैक्ट्री को ताला लगा दिया था। यह फैक्ट्री कोलकाता के पास स्थापित थी। इसी तरह कई जूट मिलें भी राज्य में बंद हो चुकी हैं, या फिर अंतिम साँसे गिन रही हैं। ब्रांड्स के बंगाल छोड़ने का सिलसिला कोई नया नहीं है। असल में ममता बनर्जी के राजनैतिक करियर का सबसे बड़ा मोड़ यही एक कारण रहा है। 2008 में राज्य को टाटा मोटर्स ने छोड़ा था, वह सिंगूर में नैनो की फैक्ट्री लगा रहा था लेकिन ममता बनर्जी के लगातार विरोध के चलते उसे बनी-बनाई फैक्ट्री उखाड़नी पड़ी और गुजरात भागना पड़ा। ममता बनर्जी इसी सिंगूर के आंदोलन के बाद ही राज्य में बड़ी जीत हासिल कर पाईं और सत्ता में तीन दशक से अधिक से जमे बैठे कम्युनिस्टों की जगह ली। हालाँकि, जिस नेता के सत्ता में आने का कारण ही किसी उद्योग का विरोध रहा हो, उससे उद्योग समर्थक नीति की उम्मीद कैसे की जा सकती है।
जानकारों की माने तो इसी बंगाल में कभी आदित्य बिरला को उनकी गाड़ी से खींच कर सड़क पर पीटा गया था और नंगा कर बेईज्जत किया गया था। इसके बाद उन्होंने अपना कारोबार समेट लिया। यही हाल और भी उद्योग घरानों का हुआ बताया जा रहा है।
पश्चिम बंगाल से उद्योग धंधों का पलायन राज्य ही नहीं बल्कि पूरे देश के लिए चिंता की बात होनी चाहिए। पश्चिम बंगाल देश में चौथा सबसे अधिक आबादी वाला राज्य है लेकिन इसका देश के औद्योगिक आउटपुट में मात्र 3.5 प्रतिशत हिस्सा है। इसमें पीछे होने के चलते राज्य में भारी बेरोजगारी की समस्या है। अवैध घुसपैठियों का पश्चिम बंगाल में आना इस समस्या को और भीषण बनाता है। राज्य में आए दिन होते दंगे और बहुसंख्यक आबादी पर हमले भी घटते विश्वास का कारण बने हैं। राज्य में कानून-व्यवस्था की दयनीय स्थिति के चलते कोई बड़ी कम्पनी निवेश नहीं करना चाहती।
जानकारों के अनुसार यही कारण है कि 1960 के दशक में जिस पश्चिम बंगाल का देश की जीडीपी में 10 प्रतिशत से अधिक योगदान था, वह अब मात्र 5 प्रतिशत तक आकर टिक गया है। उससे छोटे राज्य उससे आगे निकलने वाले हैं। यदि पश्चिम बंगाल की ममता सरकार का यही रवैया रहा तो इससे बाकी देश भी प्रभावित होगा और उसकी धीमी आर्थिक विकास की गति देश को पीछे खींचेगी।
रामस्वरूप रावतसरे