रामस्वरूप रावतसरे
सुप्रीम कोर्ट ने 19 दिसंबर 2024 को भरण-पोषण और गुजारा भत्ता को लेकर एक अहम टिप्पणी की है। अदालत ने कहा है कि कुछ कानून महिला कल्याण के लिए बनाए गए हैं ना कि उनके पति एवं ससुराल के लोगों को दंडित करने के लिए। कोर्ट ने कहा कि इन कानूनों को पतियों के उत्पीड़न करने, धमकी देने या उनसे जबरन वसूली के साधन के रूप में प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए।
दरअसल, अदालत एक महिला की याचिका पर सुनवाई कर रही थी। इसमें महिला अपने पति द्वारा शुरू किए गए तलाक के मामले को लॉजिस्टिक कारणों से भोपाल से पुणे स्थानांतरित करने की माँग की थी। इस जोड़े का विवाह साल 2021 में हुआ था। पति अमेरिका में आईटी कंसल्टेंट था। उसने अपनी पत्नी से तलाक की माँग की थी लेकिन पत्नी ने तलाक का विरोध किया था। पत्नी ने यह भी दावा किया था कि अलग हुए पति की कुल संपत्ति 5,000 करोड़ रुपए है। इसमें अमेरिका और भारत में कई व्यवसाय और संपत्तियाँ शामिल हैं। पत्नी ने यह बताया था कि उस के अलग रह रहे पति ने अपनी पहली पत्नी को उससे अलग होने के बाद वर्जीनिया स्थित घर को छोड़कर कम से कम 500 करोड़ रुपए का भुगतान किया था, इसलिए उसे भी दिलाया जाय।
शीर्ष न्यायालय ने कहा कि विवाह एक पवित्र प्रथा है जो कि परिवार की नींव है। ये कोई व्यवसायिक समझौता नहीं होता है। कोर्ट ने पाया कि वैवाहिक मामलों से संबंधित अधिकांश मामलों में दुष्कर्म, आपराधिक धमकी और विवाहित महिला से क्रूरता करने संबंधित कई आरोप लगाए जाते हैं। कोर्ट ने इस तरह की कठोर धाराएँ लगाने के लिए फटकार भी लगाई।
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना और पंकज मिथल की पीठ ने इस मामले में सख्त रूख अपनाया। पीठ ने कहा कि ऐसी माँगें अक्सर तभी की जाती हैं, जब जीवनसाथी आर्थिक रूप से संपन्न होता है। जब जीवनसाथी की आर्थिक स्थिति खराब हो जाती है या ऐसी माँग करने वाले व्यक्ति की तुलना में कमजोर हो जाती है तो ऐसी माँगें कम होती हैं। न्यायालय ने कहा, “हमें पार्टियों द्वारा दूसरे पक्ष से संपत्ति के बराबरी के रूप में भरण-पोषण या गुजारा भत्ता मांगने की प्रवृत्ति पर गंभीर आपत्ति है। अक्सर देखा जाता है कि भरण-पोषण या गुजारा भत्ता के लिए अपने आवेदन में पार्टियाँ अपने जीवनसाथी की संपत्ति, स्थिति और आय को उजागर करती हैं और फिर एक ऐसी राशि माँगती हैं जो उनके जीवनसाथी की संपत्ति के बराबर हो।
सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने आगे कहा, “हालाँकि, इस प्रथा में एक असंगति है क्योंकि बराबरी की माँग केवल उन मामलों में की जाती है जहाँ जीवनसाथी के पास साधन हैं या वह खुद के लिए बहुत अच्छा कर रहा है। ऐसी माँगें उन मामलों में स्पष्ट रूप से अनुपस्थित होती हैं, जहाँ अलगाव के समय से जीवनसाथी की संपत्ति में कमी आई है। शीर्ष अदालत ने जोर देकर कहा कि गुजारा भत्ता पूर्व पति-पत्नी की वित्तीय स्थिति को समान बनाने के लिए नहीं है। यह आश्रित महिला को उचित जीवन स्तर प्रदान करने के लिए है। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि पूर्व पति अपनी मौजूदा वित्तीय स्थिति के आधार पर पूर्व पत्नी को अनिश्चित काल तक सहायता देने के लिए बाध्य नहीं हो सकता। हिंदू विवाह एक पवित्र संस्था है, न कि एक ‘व्यावसायिक उद्यम’।
पीठ ने कहा, “महिलाओं को इस बात को लेकर सावधान रहने की जरूरत है कि उनके हाथों में कानून के ये सख्त प्रावधान उनकी भलाई के लिए हैं, न कि उनके पतियों को दंडित करने या उनसे जबरन वसूली करने का साधन हैं। हमें आश्चर्य है कि यदि पति के अलग होने के बाद कुछ दुर्भाग्यपूर्ण घटनाओं के कारण वह कंगाल हो गया है तो क्या पत्नी उसके साथ संपत्ति के बराबर होने की माँग करेगी?”
हालाँकि, कोर्ट ने अलग रह रहे पति को आदेश दिया कि वह अलग रह रही अपनी पत्नी को अंतिम एवं एकमुश्त स्थायी गुजारा भत्ता के रूप में 12 करोड़ रुपए दे। यह राशि एक महीने के भीतर देने के लिए कहा। इसके साथ ही पति को तलाक भी दे दी। सर्वाच्च न्यायालय ने अलग रह रहे पति के खिलाफ पत्नी द्वारा दायर आपराधिक मामले को भी रद्द कर दिया।