अभिव्यक्ति की आजादी के निहितार्थ

डॉ.वेदप्रकाश

     अश्लीलता, हिंसा और अभद्र भाषा का प्रयोग व्यक्ति, समाज और राष्ट्र के नैतिक चरित्र पर प्रश्न चिन्ह लगता है। आज करोड़ों लोग विभिन्न रूपों में सकारात्मक और राष्ट्रहित के कार्यों में जीवन खपा रहे हैं. क्या उनकी चर्चा कहीं होती है? दूसरी और अश्लील, हिंसक और अभद्र भाषा का प्रयोग करने वाले राष्ट्रीय समाचारों में स्थान पा रहे हैं। माननीय न्यायालय भी बिना किसी दंड के उन्हें शाब्दिक चेतावनी देकर छोड़ देता है. क्या ऐसा करना दूसरों को भी अभद्र करने के लिए प्रेरित नहीं कर रहा है? भारतीय कानून एवं दंड व्यवस्था में आज अनेक बदलावों की आवश्यकता है।
    अभिव्यक्ति व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की आवश्यकता है। अभिव्यक्ति के अभाव में कुंठा एवं नकारात्मकता के बढ़ने की संभावना है। भारतीय ज्ञान परंपरा और संविधान प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की आजादी देते हैं। यहां कोई भी बात अथवा विचार किसी पर थोपा नहीं जाता अपितु उस पर समग्रता में बातचीत करते हुए अथवा संवाद के जरिए स्वीकार अथवा अस्वीकार किया जाता है लेकिन बीते कुछ वर्षों में अभिव्यक्ति की आजादी को कुछ लोग एवं डिजिटल मंच कुछ भी बोल देने का लाइसेंस समझ रहे हैं, क्या यह एक नागरिक और सभ्य समाज के लिए घातक नहीं है?

पिछले कुछ वर्षों में डिजिटल मंचों पर अभद्रता, अश्लीलता और हिंसा की बाढ़ आ गई है। विभिन्न डिजिटल मंच सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने पर प्रहार करने के साथ-साथ मानसिक प्रदूषण भी फैला रहे हैं। जल्दी लोकप्रियता और अधिक व्यू मिलने की चाहत में निजाता को भी रील बनाकर फैलाने की होड़ लगी हुई है। अनेक वीडियो एवं वेब सीरीज भिन्न-भिन्न रूपों में आपराधिक प्रवृत्ति को बढ़ावा दे रहे हैं। छोटे-छोटे बच्चों व महिलाओं की नग्न वीडियो बड़े मंचों पर बोली लगाकर खरीदी- बेची और प्रसारित  की जा रही हैं। क्या इन पर तत्काल नियंत्रण की आवश्यकता नहीं है?
      हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने यूट्यूबर रणवीर इलाहाबादिया को इंडिया गाट लेटेंट कॉमेडी शो के दौरान अभिभावकों के संबंध में आपत्तिजनक टिप्पणी करने के लिए कड़ी फटकार लगाई। माननीय न्यायालय ने कहा- अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी बोलने का लाइसेंस नहीं मिल जाता…रणवीर के दिमाग में गंदगी भरी है जो उसने शो पर उगल दी। माननीय न्यायालय ने रणवीर की मानसिकता को विकृत और भाषा को निंदनीय करार देते हुए कहा कि उसकी भाषा बेटियों, बहनों, माता-पिता और यहां तक की समाज को भी शर्मिंदगी महसूस कराती है। ध्यातव्य है कि विगत दिनों उस शो के दौरान रणवीर के साथ वहां मंच पर उपस्थित अन्य लोगों ने भी अश्लील शब्दों, अभद्र व गाली गलौज की भाषा का प्रयोग किया। सैकड़ों युवक- युवतियां उस कार्यक्रम में बैठे हुए थे। क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर इस प्रकार की अश्लीलता और अभद्रता उचित है? कुछ समय में ही इस अभद्र कॉमेडी शो को करोड़ों लोगों ने देख लिया। कई दिन तक राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पटल पर इस कार्यक्रम एवं अभद्रता की चर्चा सुर्खियों में बनी रही। अभी तक न कोई गिरफ्तारी न कोई सजा। इस प्रकार की अश्लीलता एवं अभद्रता का यह पहला मामला नहीं है। हमारे देश में कोई बड़ी घटना अथवा दुर्घटना के बाद ही प्रशासन एवं सरकार जागती है।

 इलाहाबादिया  प्रसंग के बाद सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय डिजिटल मंचों विषयक मौजूदा  प्रविधानों की समीक्षा कर रहा है। विचारणीय यह भी है कि सूचना प्रौद्योगिकी (मध्यवर्ती दिशानिर्देश और डिजिटल मीडिया आचार संहिता) नियम 2021 सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म, ओटीटी प्लेटफॉर्म, समाचार प्रकाशक और डिजिटल मीडिया के लिए बना जिसका उद्देश्य एक खुले, सुरक्षित, भरोसेमंद और जवाबदेह इंटरनेट तक पहुंच प्राप्त करना है। क्या विभिन्न प्लेटफार्म इस नियम के उद्देश्य में वर्णित चारों महत्वपूर्ण बिंदुओं पर खरे उतर रहे हैं? नियम में सामग्री प्रसारित करने वाले मध्यस्थों की भी चर्चा है। वहां कहा गया है- मध्यस्थ को बौद्धिक संपदा अधिकारों, अपमानजनक और अश्लील सामग्री, चाइल्ड पोर्नोग्राफी, भारत के किसी भी कानून का उल्लंघन करने वाली किसी भी सामग्री की चोरी को रोकने के लिए नीतियां बनानी चाहिए। ध्यान रहे नियम में सामग्री की चोरी को रोकने के लिए नीतियां बनाने की बात है किंतु अश्लील सामग्री और अभद्र भाषा आदि के प्रयोग पर दंड का प्रविधान कहीं दिखाई नहीं देता। नियम में  प्रसारित की जाने वाली सामग्री का पांच श्रेणियां में वर्गीकरण है। क्या केवल किसी सामग्री पर यू , यू/ए 7+, यू/ए 13+, यू/ए 16+ एवं ए (वयस्क) लिख देना ही पर्याप्त है?

 शिकायत निवारण के अंतर्गत शिकायत किसी सामग्री, किसी मध्यस्थ या प्रकाशक के किसी कर्तव्य या किसी मध्यस्थ के कंप्यूटर संसाधन से संबंधित अन्य मामले  हैं। शिकायत निवारण के लिए भी तीन स्तर बनाए गए हैं। पहले में प्रकाशकों द्वारा स्व- नियमन, दूसरे में प्रकाशकों के स्व- नियामक निकायों द्वारा स्व- विनियमन और तीसरे में निरीक्षण तंत्र की बात कही गई है। क्या ये प्रावधान केवल दिखावटी नहीं है? यदि ये प्रभावी होते तो क्या विभिन्न प्लेटफार्म पर अश्लील और अभद्र सामग्री प्रसारित होती? और यदि हो रही है तो उसके लिए किसे, क्या दंड मिला? नियम 2021 और अन्य प्रविधानों से यह भी लगता है कि ये नियम कठोर दंड के प्रावधान के बिना प्रभावी नहीं हो सकते? नियम में स्व नियमन की अपेक्षा करना और सरकार द्वारा प्रतिबंधित सामग्री का प्रसारण न करने के निर्देश व्यर्थ हैं। डिजिटल मंचों पर अश्लीलता, हिंसा और अभिव्यक्ति की आजादी के संवैधानिक अधिकार का दुरुपयोग किया जा रहा है। ऐसे में यह आवश्यक है कि सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय तत्काल नया कठोर दंडात्मक कानून बनाए जिससे अश्लीलता, हिंसा और अभिव्यक्ति की आजादी का दुरुपयोग नियंत्रित हो।

कुछ लोग सोशल मीडिया पर छोटे-छोटे बच्चों के वीडियो डालकर लोकप्रियता और पैसा कमा रहे हैं, क्या यह बाल अधिकारों का हनन नहीं है? क्या यह विषय भी कठोर दंड के प्रविधान में नहीं आना चाहिए? कुछ लोग धार्मिक मान्यताओं, देवी-देवताओं आदि पर भी अश्लील और अभद्र भाषा का प्रयोग करते हुए सुर्खियों में आने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार के वीडियो अनेक बार सामाजिक और सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने का भी कारण बनते हैं। क्या यह विषय भी कठोर दंडात्मक कानूनी प्रविधानों के दायरे में नहीं आने चाहिए? अभिव्यक्ति की आजादी का अर्थ कहीं भी, कुछ भी बोलना, करना अथवा दिखाना नहीं है अपितु यह दायित्व के साथ जुड़ी है। भारतीय संविधान के भाग 3 मूल अधिकार के अनुच्छेद 19 में वाक् स्वातंत्र्य के अंतर्गत लिखा है- सभी नागरिकों को वाक् स्वातंत्र्य और अभिव्यक्ति स्वातंत्र्य का अधिकार होगा। संविधान की उद्देशिका में भी विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की स्वतंत्रता का वर्णन है किंतु ध्यान रहे संविधान में स्थान स्थान पर व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने वाली बंधुता बढ़ाने के लिए दृढ़ संकल्पित होने की बात भी प्रमुख है, क्या अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर कुछ भी बोलते वालों पर संविधान लागू नहीं होता?

 यदि संविधान सभी को समान रूप से विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता देता है तो जिम्मेदारियों का आह्वान भी करता है। क्या यह सत्य नहीं है कि हम अधिकारों के साथ कर्तव्य अथवा जिम्मेदारियों को अनदेखा कर रहे हैं? अनेक अवसरों पर देश विरोधी बातें और नारे राष्ट्रीय एकता व अखंडता को भंग करते हैं। क्या ऐसे दुष्कृत्यों को देशद्रोह के श्रेणी में रखकर कठोर दंड का प्रावधान नहीं होना चाहिए? कॉमेडी मनोरंजन और लोकप्रियता के लिए अनेक विषय हो सकते हैं। अश्लीलता, अभद्रता और हिंसा के प्रति जीरो टॉलरेंस अपनाना होगा। आज जब विकसित भारत का संकल्प लेकर हम चल रहे हैं तब जन जन में भारत भाव एवं समर्पण आवश्यक है। इसलिए कानून के कठोर दंडात्मक प्रावधान तत्काल यह सुनिश्चित करें कि अभिव्यक्ति की आजादी कुछ भी बोल देने का लाइसेंस नहीं है।
डॉ.वेदप्रकाश

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