डॉ.बालमुकुंद पांडेय
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ( आरएसएस ) की यह पहल ,संघ के चतुर्दिक् दृष्टिकोण, व्यक्ति निर्माण,सांगठनिक उद्देश्य ,समाज निर्माण और राष्ट्र- राज्य निर्माण के प्रति अटूट विश्वास , श्रद्धा एवं अटूट प्रतिबद्धता का प्रतिफल एवं समाज में इसकी सकारात्मक उपादेयता का प्रतीक है । संघ इस वर्ष ,2025 में ‘ शताब्दी वर्ष ‘ मनाने जा रहा हैं। इस महत्वपूर्ण एवं प्रासंगिक पड़ाव के पहले, संघ ने व्यक्ति, समाज एवं संगठन में व्यापक परिवर्तन लाने के उद्देश्य से “पंच परिवर्तन ” की महत्वपूर्ण योजना प्रस्तुत की है। इन पंच प्रत्ययों का उद्देश्य संघ के आंतरिक सांगठनिक चरित्र और कार्यशैली को मजबूत करना है, साथ ही भारतीय ज्ञान परंपरा ,सनातन धर्म और राष्ट्रीय सुरक्षा को अधिक मजबूत बनाना हैं। इसका उद्देश्य समाज में सामाजिक समरसता और अधिक सहभागितापूर्ण और राष्ट्र केंद्रित वातावरण बनाना है । यह पहल समसामयिक परिप्रेक्ष्य में अत्यधिक उपयोगी ,प्रासंगिक एवं महत्वपूर्ण हैं। वर्तमान में भारत विभिन्न सामाजिक ,आर्थिक, राजनीतिक एवं सांस्कृतिक चुनौतियों का सामना कर रहा हैं। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना हैं कि उपर्युक्त “पंच परिवर्तन “इन चुनौतियों का प्रभावी ढंग से मुकाबला करने में केंद्रीय भूमिका निभा सकता है। इन प्रत्ययों के सहयोग से राष्ट्र की एकता एवं अखंडता का उन्नयन किया जा सकता है । इनके सहयोग से नागरिक समाज में नागरिक चारित्रिक सौहार्द्र एवं नागरिक समरसता को विकसित किया जा सकता है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ(संघ) का मानना है कि एक सशक्त , सुसंकृत, और प्रत्येक क्षेत्र में प्रगतिशील राष्ट्र के लिए “सामाजिक समरसता” अनिवार्य प्रत्यय हैं । जाति, धर्म, वंश और लिंग के आधार पर विभेदित कोई भी राष्ट्र राष्ट्रीय एकता, अक्षुण्णता , और आंतरिक सुरक्षा के स्तर पर विकास के मापांक को प्राप्त नहीं सकता है। राष्ट्र का विकास “सामाजिक समरसता” पर निर्भर करता हैं। “सामाजिक समरसता” से संघ का उद्देश्य सभी वर्गों में सामाजिक सदभाव ,स्नेह और सहयोग की भावना का उन्नयन करना है। इन प्रत्ययों की उपलब्धि के लिए विभिन्न समुदायों के मध्य संवाद और संपर्क को प्रोत्साहित करना होगा, संयुक्त कार्यक्रम आयोजित करना होगा और सामाजिक भेदभाव के उन्मूलन के लिए जागरूकता अभियान चलाना होगा ।
स्वयंसेवकों को समाज के सभी वर्गों के साथ समान व्यवहार करने और उन वर्गों के कल्याण के लिए कार्य करने पर केंद्रित किया जाएगा। इस प्रयोजन का मौलिक उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां प्रत्येक व्यक्ति को समान अवसर मिले और कोई भी व्यक्ति भेदभाव का शिकार न हों। “सामाजिक समरसता” भारतीय संस्कृति का मूल तत्व हैं और इसको पुनर्स्थापित करके भारत को वैश्विक गुरु की श्रेणी में स्थापित किया जा सकता हैं। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीरामजी के द्वारा केवट को गले लगाना सामाजिक समरसता का सर्वोच्च उदाहरण हैं । सामाजिक समरसता के लिए आवश्यक है कि आचरण और व्यवहार में जीवन के आध्यात्मिक मूल्य प्रकट हो, जब समानता का भाव स्थापित होगा तभी समानता का भावना स्थापित होगा । समाज एक गत्यात्मक संस्था हैं ,जो शाश्वत प्रगति एवं बंधुत्व के पथ पर अग्रसर होकर अपने समस्त घटकों की खुशहाली सुनिश्चित करती हैं । समतापरक सुसंकृत समाज का निर्माण ,संचालन एवं अस्तित्व किसी व्यक्ति ,जाति, वर्ण या समुदाय विशेष के योगदान से नहीं होता है ।समाज की संपूर्णता एवं सजीवता के निमित्त प्रत्येक व्यक्ति की खुशहाली ,सहभागिता, एवं समर्पण अतिआवश्यक है चाहे वह किसी भी वर्ण, जाति एवं समुदाय का हो। समाज में समरसता के बिना बंधुत्व, सौहार्द्र ,और राष्ट्रीय एकता की कल्पना असंभव है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ‘परिवार’ को भारतीय संस्कृति, मूल्यों, आदर्शों ,और संस्कारों की आधारशिला मानता है । पाश्चात्य संस्कृति के प्रभाव और आधुनिक जीवनशैली के दबाव के कारण पारंपरिक पारिवारिक मूल्यों का क्षरण हो रहा है ।”कुटुंब प्रबोधन” के अंतर्गत संघ का उद्देश्य परिवारों को भारतीय संस्कृति, परंपराओं और मूल्यों के प्रति सजग करना है। इसके लिए पारिवारिक मिलन समारोह, सांस्कृतिक कार्यक्रम, बौद्धिक वर्गों का आयोजन और नैतिक शिक्षा वर्गों का आयोजन किया जाएगा। अभिभावकों को अपने बच्चों में भारतीय मूल्य जैसे कि बड़ों का सम्मान, कर्तव्यनिष्ठ आदत,चरित्र, सहयोग,स्नेहपूर्ण वातावरण और त्याग की भावना को विकसित करने के लिए प्रशिक्षित एवं प्रोत्साहित करना है । संघ के चिंतकों और विचारकों का मानना है कि एक मजबूत और संस्कारित परिवार ही एक स्वस्थ, राष्ट्रीय भावना और स्वस्थसमाज और राष्ट्र – राज्य का निर्माण कर सकता है । कुटुंब प्रबोधन का लक्ष्य भारतीय परिवारों को अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जोड़ना हैं और उनको एक ऐसी जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करना हैं जो भारतीय जीवन मूल्यों एवं आदर्शों पर आधारित हो। भारतीय जीवनशैली परंपरागत मूल्यों, सामाजिक समरसता, परस्पर स्नेह एवं आत्मीयता पर आधारित है ।मानवीय मूल्यों के विकास एवं आदर्श के उन्नयन में भारतीय जीवन शैली की महत्वपूर्ण उपादेयता है।
“पर्यावरण संरक्षण” समकालीन परिदृश्य में एक बड़ी वैश्विक चुनौती है और भारत को भी पर्यावरणीय समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है । प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुंध दोहन और प्रदूषणों ने पर्यावरण को बहुत अधिक मात्रा में नुकसान पहुंचाया है जिसका मानव जीवन और भविष्य पर नकारात्मक प्रभाव पड़ रहा है ।”पर्यावरण” बहुत ही वृहद शब्द है जिसका विवेचन अति आवश्यक हैं। संघ का उद्देश्य अपने स्वयंसेवकों और संगठित समाज को पर्यावरण के प्रति सचेत करना है ।संचेतना के स्तर पर वृक्षारोपण अभियान, जल संरक्षण परियोजनाएं, प्लास्टिक के उपयोग को सीमित करने का प्रयास और पर्यावरण अनुकूल जीवनशैली को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करना एवं पर्यावरण हितैषी कार्यक्रमों का आयोजन परमावश्यक है।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का मानना है कि शारीरिक और मानसिक विकास के लिए आर्थिक आत्मनिर्भरता अति आवश्यक है । पाश्चात्य उपभोक्तावादी संस्कृति और आयात पर अत्यधिक निर्भरता भारतीय अर्थव्यवस्था एवं भारतीय संस्कृति के लिए अति हानिकारक है ।भारतीय उत्पादों को अपने स्थानीय व्यवसायों को अपनाने एवं उनका उन्नयन करने और भारतीयों को आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रेरित करना “स्वाधारित जीवनशैली”का अभिन्न भाग है। स्वदेशी उत्पादों के उपयोग को बढ़ावा देने वाले अभियानों को प्रेरित करना, पारंपरिक कौशल और उद्योगों को पुनर्जीवित करने का प्रयत्न करना आवश्यक है। एक मजबूत, स्वावलंबी एवं आत्मनिर्भर भारत ही वैश्विक स्तर पर मजबूत नेतृत्व प्रदान कर सकता है। इस परिवर्तन का मौलिक उद्देश्य लोगों को अपनी जड़ों से जुड़े रहने और स्वस्थ जीवनशैली अपनाने के लिए प्रेरित करना है जो स्थानीय संसाधनों और परंपरागत ज्ञान पर आधारित हो।
ज्ञानवान एवं उन्नतशील लोकतांत्रिक राष्ट्र के लिए उसके नागरिकों को अपने मौलिक कर्तव्यों के प्रति जागरूक एवं जिम्मेदार होना अतिआवश्यक है । कर्तव्यों के पालन से ही एक स्वस्थ एवं नागरिक समाज का निर्माण हो सकता है । नागरिक कर्तव्य के प्रति दायित्ववादिता से स्पष्ट है कि नागरिक अपने कर्तव्यों के प्रति जागरूक हों एवं ईमानदारी से उनका पालन करें ।नागरिक कर्तव्यों के अंतर्गत मतदान करना , करों का भुगतान करना, सार्वजनिक संपत्ति की संरक्षा करना, कानून का पालन करना और सामाजिक कार्यों में सक्रिय रूप से भाग लेना सम्मिलित है । एक जिम्मेदार,कर्तव्यनिष्ठ एवं उत्तरदायी नागरिक ही प्रगतिशील राष्ट्र का निर्माण कर सकता है।
संघ के शताब्दी वर्ष में ” पंच परिवर्तन” की महान उपादेयता हैं । यह संघ के भविष्य की कार्य योजना का महत्वपूर्ण एवं मूल्यवान कार्यक्रम है । इसका उद्देश्य संगठन को मजबूती प्रदान करना एवं समाज को एक नवीन दिशा प्रदान करना है ।संघ के शताब्दी वर्ष में” पंच परिवर्तन “का उद्देश्य समाज को समरस, सुसंकृत, प्रगतिशील, पर्यावरण के प्रति अनुकूल, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर और नागरिक कर्तव्यों के प्रति निष्ठावान बनाना है। इन पांचों क्षेत्र में परिवर्तन लाकर ही एक मजबूत, समृद्ध , गुरुतायुक्त और वैश्विक नेतृत्व के लिए सक्षम भारत का निर्माण किया जा सकता है। यह सकारात्मक पहल संघ के दीर्घकालिक दृष्टिकोण एवं राष्ट्र निर्माण के प्रति उसकी अटूट प्रतिबद्धता का प्रतीक है।
डॉ.बालमुकुंद पांडेय
राष्ट्रीय संगठन सचिव, अखिल भारतीय इतिहास संकलन योजना, दिल्ली झंडेवालान।