पंकज गांधी जायसवाल
वर्तमान में पूरी दुनिया में अमेरिकी टैरिफ के कारण जो उथल पुथल दिखाई दे रही है और वैश्विक शेयर बाज़ारों में जो हलचल देखने को मिल रही है, वह कई देशों के लिए चिंता का विषय हो सकती है लेकिन भारत के लिए यह एक सुनहरा अवसर बनकर उभर रहा है। पूरी दुनिया द्वितीय विश्वयुद्ध के बाद इकॉनमी के मामले में रिसेट मोड में आ गई है. अमेरिका अब अपनी बड़े भाई के रोल की जगह बराबर के साझेदार की भूमिका में आना चाहता है. दुनिया के कोतवाल से ज्यादा उसे अब अमेरिका फर्स्ट के तहत व्यापारिक सौदों में अमेरिका को अपने हितों का त्याग नहीं करना है. दुनिया के आर्थिक और राजनैतिक समीकरण तेजी से बदल रहें हैं. यदि भारत इस बदलते परिदृश्य में रणनीतिक सूझ-बूझ और संतुलित दृष्टिकोण अपनाता है तो वह निकट भविष्य में वैश्विक आर्थिक नेतृत्व की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठा सकता है। सुकून की बात है कि भारत ने कोई त्वरित और उतावलेपन वाली प्रतिक्रिया नहीं दी है. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व और मार्गदर्शन में जयशंकर, निर्मला सीतारमण से लगायत पीयूष गोयल तक सब सधी हुई प्रतिक्रिया दे रहें हैं और इसी की दरकार है. एक आक्रामक प्रतिक्रिया माहौल को भारत के खिलाफ ले जा सकती है. अभी इस माहौल को भारत के हित के हिसाब से ले आना है. यह भारत के लिए एक अवसर भी हो सकता है.
नीचे कुछ प्रमुख कारण दिए गए हैं जो इस संभावना को सशक्त आधार प्रदान करते हैं. पहला चाइना वन पॉलिसी’ के तहत भारत एक रणनीतिक विकल्प के रूप में अपने आपको स्थापित कर सकता है. विश्व स्तर पर अमेरिका और चीन को लेकर अनेक देशों की नीतियां पुनः मूल्यांकन के दौर में हैं। ‘चाइना वन पॉलिसी’ के चलते कई देश वैकल्पिक आपूर्ति स्रोत की तलाश में हैं और भारत इस स्थिति में एक विश्वसनीय साझेदार बनकर उभर सकता है। उत्पादन, आपूर्ति श्रृंखला और राजनीतिक स्थिरता के लिहाज से भारत एक भरोसेमंद विकल्प बन सकता है।
मौजूदा टैरिफ वार से चीन के उत्पादों की लागत अमेरिका में बढ़ सकती है और यह भारत के लिए संभावनाओं का द्वार खोलती है. अमेरिका में चीन के उत्पादों पर टैरिफ, लॉजिस्टिक बाधाएं और राजनीतिक तनावों के कारण उनकी लागत में वृद्धि हो रही है। ऐसे में अमेरिकी कंपनियां भारत से आपूर्ति को प्राथमिकता दे सकती हैं। इससे भारतीय निर्यातकों के लिए एक नया द्वार खुल सकता है, विशेषकर मैन्युफैक्चरिंग, फार्मा और टेक सेक्टर में। इसके अलावा वैश्विक निवेशक भी चाइना के विकल्प में अपना मैन्युफैक्चरिंग बेस भारत शिफ्ट कर सकते हैं.
रिजर्व बैंक द्वारा ब्याज दरों में कटौती और निवेश को प्रोत्साहन एक अच्छा कदम है. भारतीय रिज़र्व बैंक अगर ‘accommodative approach’ अपनाते हुए ब्याज दरों में कटौती करता है तो यह घरेलू निवेशकों के लिए एक सकारात्मक संकेत होगा। इससे बाजार में तरलता बढ़ेगी, छोटे उद्योगों को सहारा मिलेगा और उपभोक्ता खर्च में वृद्धि होगी जो समग्र आर्थिक विकास को गति देगा।
भारत में घरेलू मांग ज्यादा होना निर्यात के मुकाबले भारत की ताकत बन रहा है. बकौल वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण भारत की अर्थव्यवस्था एक बड़ी उपभोक्ता अर्थव्यवस्था है। अधिकांश उभरती अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में भारत का निर्यात पर कम निर्भर रहना एक ताकत है। जब वैश्विक मांग में सुस्ती हो, तब भी भारत की घरेलू मांग उसे स्थिर रख सकती है। इससे शेयर बाज़ार में स्थायित्व आने की संभावना है।
इस बार अच्छे मानसून की संभावना और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का संबल भी भारत को संभाल रहा है. अच्छे मानसून की भविष्यवाणी ने ग्रामीण अर्थव्यवस्था में उम्मीद की किरण जगाई है। इससे कृषि उत्पादन बेहतर रहेगा, ग्रामीण मांग में वृद्धि होगी और उपभोक्ता सेंटीमेंट्स सकारात्मक बने रहेंगे। यह सभी तत्व भी शेयर बाजार को स्थायित्व देने में सहायक होंगे।
सरकार भी अमेरिका के साथ मजबूत द्विपक्षीय संबंधों को आकार दे रही है। इससे रणनीतिक साझेदारी, निवेश सहयोग, टेक्नोलॉजी ट्रांसफर और व्यापार के नए मार्ग खुल सकते हैं। यदि भारत इस अवसर का विवेकपूर्ण उपयोग करता है, तो वह अन्य विकासशील देशों की तुलना में एक मजबूत और अग्रणी स्थिति में आ सकता है।
कुल मिलाकर निष्कर्ष यह निकल कर आ रहा है कि बाजार में अनिश्चितता के इस दौर में जहां कई देश असमंजस की स्थिति में हैं, भारत के पास स्पष्ट रणनीति, घरेलू मांग, अंतरराष्ट्रीय विश्वास और सकारात्मक सेंटीमेंट्स जैसे मजबूत आधार मौजूद हैं। यदि नीति निर्माता सधी चाल चलते हैंब्याज दर, व्यापार नीति और वैश्विक संबंधों पर संतुलित दृष्टिकोण रखते हैं तो भारत न केवल खुद को सुरक्षित रख सकता है, बल्कि वैश्विक बाजार में नेतृत्व की भूमिका भी निभा सकता है।
अब समय है भारत के उठ खड़े होने का सधे कदम, संतुलित नीति और वैश्विक सोच के साथ।
पंकज गांधी जायसवाल