
विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के चुनाव के नतीजे आभी हाल ही में हम सभी के समक्ष आये है, इन नतीजों ने भारतीय राजनीति को एक नया आयाम प्रदान किया है कि पुनः प्रधानमत्री मोदी जी सत्ता में एक स्थिर सरकार के रूप में प्रथम प्रधानमंत्री नेहरु एवं इंदिरा गाँधी के बाद वापसी कि है | परन्तु इस चुनाव का यदि हम लेंगिक द्रष्टिकोण से विश्लेष्ण करें तो आभास होता है, कि देश कि आधी आबादी कि इस चुनावी समर में मुख्य भूमिका रही है | उसका ही परिणाम है कि इस आम चुनाव के नतीजे में देश की महिला मतदाताओं ने सिर्फ अपनी उपस्थिति ही नहीं दर्ज कराई है, अपितु इस बार भारतीय लोकतंत्र में प्रथम बार हुआ भी है कि 78 महिलाए सांसदों के रूप में निर्वाचित होकर भी आई है वहीं पुरुष सांसदों की संख्या 2014 में 462 थी जो 2019 में घटकर 446 रह गई है इसे उनकी संख्या में करीब 3% की कमी आई है | इस बार आम चुनाव के लिए खड़े हुए 8000 उम्मीदवारों में से महिला उम्मीदवारों की संख्या 10% से भी कम थी परन्तु संसद में जीतकर पहुंचने वाली महिलाओं का 14 प्रतिशत है| यह भारत की चुनावी राजनीति में आ रहे सकारात्मक बदलाव का ही संकेत है कि यह महिला उम्मीदवारों से संबंधित कई राजनैतिक पूर्वाग्रहों को दूर करने में मददगार साबित हो सकता है | साथ ही महिलाओं का राजनीतिक सशक्तीकरण करने भी कारगर सिद्ध होगा |
बतौर मतदाता यदि हम महिलाओं कि चुनावी भागीदारी पर चर्चा करे तो ज्ञात होता है कि 2009 फिर 2014 के आम चुनाव में उनकी चुनाव में मतदान के माध्यम से जो भागीदारी थी उसमे 2019 के चुनाव में वृधि हुई है | इस चुनाव में महिलाओं ने पहली बार पुरुषों से अधिक मतदान किया | यह भी तथ्य गौर करने लायक है ,कि भारत के लोकतांत्रिक इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है कि 67.11% मतदाताओं ने अपने मतदान अधिकार का इस्तेमाल किया है | पिछले भारतीय चुनावों का अध्यान करे तो ज्ञात होता है, कि इस चुनाव में देश कि 13 सीटों पर महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक थी| 1962 के आम चुनावों में महिला मतदाताओं का प्रतिशत 45 था, वहीं 2014 में यह बढ़कर 66 हो गया और 1962 के आम चुनावों में पुरुष एवं महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत का अंतर 17% था वो 2014 में 1.4% और इस बार 2019 के चुनावों में घटकर मात्र यह 0.4% रह गया है| इस बार के 84.35 करोड पिछले चुनाव कि तुलना में नए वोटरों थे उसमें भी आधे से अधिक महिला मतदाताओं ने आपना नामांकन किया था यदि हम इन आंकड़ो को राज्यों के संन्दर्भ में अध्ययन करें तो ज्ञात होता ही कि इसमें उत्तर प्रदेश से 54 लाख के करीब , महाराष्ट्र में 48 लाख , बिहार में 42.8 लाख , पश्चिम बंगाल 42.8 लाख तमिलनाडु 39 लाख मतदाता शामिल थे |
इस बार के चुनाव में पहली बार महिला प्रातिनिधि एवं मतदाताओं की संख्या में जो बदलाव आया है उसमें राजनीतिक दलों ने भी अपनी चुनावी रणनीति एवं घोषणा पत्रों के माध्यम से मुख्य भूमिका निभाई है, जिसने कि महिला -पुरुषों के बीच में मतदान करने के अंतर को कम किया है जैसे सर्वप्रथम उड़ीसा के मुख्यमंत्री ,बीजेडी नेता नवीन पटनायक ने आम चुनाव की तारीख घोषणा होने से पूर्व ही ऐलान कर दिया कि उनकी पार्टी इस बार लोकसभा चुनाव में 33% सीट महिलाओं के लिए आरक्षित करेगी | उसके बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी 40% टिकट महिलाओं को देने की घोषणा कर डाली | इसके साथ बीजेपी एवं कांग्रेस ने भी पहले कि अपेक्षा महिला प्रतिनिधियों को आधी मौका दिया | इसका ही परिणाम है कि यह स्वतंत्र भारत में पहली बार होगा कि जहाँ सोलवीं लोक सभा में करीब 11% महिलाएं थी , वहीं प्रथम लोकसभा में 5% महिलाएं थी | वहीँ इस बार के लोकसभा में 78 महिला सांसद यानी कुल संख्या का 14% महिला लोकसभा में जनप्रतिनिधित्व करेंगी एक बात और ध्यान देने वाली है ली इन 78 महिला सांसदों में से एक तिहाई तो ऐसी हैं जिनको जनता ने दोबारा संसद में भेजा है इनमें से 11 उत्तर प्रदेश से 11 ही पश्चिम बंगाल से निर्वाचित हुए हैं वहीं दलों के हिसाब से देखें तो 22 टीएमसी के सांसदों में से 9 महिलाएं वाही उड़ीसा में बीजेडी ने 7 महिलाओं को टिकट दिया था और उसमें से 5 ने जीत दर्ज की | भाजपा ने देश भर में कुल 54 महिलाओं को टिकट दिए और उनमें से 40 को जनता ने लोकसभा में भेजा साथ ही कांग्रेस ने 53 महिलाओं को टिकट दिया इनमे से 6 जीत कर आई हैं |
इस चुनाव् में भाजपा को जो अविस्मरणीय जीत हांसिल हुई है उसको दिलाने में महिलाओं कि बहुत बड़ी भूमिका रही है | इसकी रूपरेखा का निर्माण कहीं न कहीं प्रधानमत्री मोदी के द्वारा जो देश व्यापी योजनाये चलाई गई उनके कारण हमको देखने को मिलता है | केंद्र में भाजपा नीत एनडीए सरकार ने जो उज्जवला योजना , बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, सौभाग्य, जनधन , मुद्रा लोन आदि के रूप में जो योजनायें चलाई | उन्होंने सीधेतौर पर महिला मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित किया है| इसको हम चुनावी परिणामों के माध्यम से भी देख सकते है कि मोदी सरकार ने जिन पांच राज्यों उत्तर प्रदेश ,पश्चिमी बंगाल, बिहार, मध्य प्रदेश ,राजस्थान की 216 में से भाजपा ने 156 यानी 66% सीटों पर जीत हांसिल कि है ध्यान देने वाली बात है कि मोदी सरकार ने जो 4.30 करोड़ के करीब जो उज्वला गैस कनेक्शन बांटे उनमें से 48% कनेक्शन उत्तर प्रदेश एवं बंगाल में बांटे गए | इससे इस बात का अनुमान लगया जा सकता है कि चुनाव परिणाम आने से पूर्व उत्तर प्रदेश में भाजपा को सपा बसपा गठबंधन के चलते भारी नुकसान के जो कायश लगाये जा रहे थे | उनको गलत साबित करने में उज्ज्वला योजना तथा अन्य महिलाओं केद्रित योजनाओं ने मुख्य भूमिका निभाई हो |
निष्कर्ष
इस बड़ी जीत के साथ में कई नए प्रश्न भी अब भारतीय राजनैतिक परिवेश में अब उठ कर आने लागे है कि 78 महिला सांसद जो चुन कर आई है वो महिलाओं कि आवाज को देश के सबसे सर्वोच्च शिखर पर कितना मजबूती से उठा पाएंगी साथ ही सालों से सदन में जो महिला आरक्षण बिल पड़ा हुआ है उसको को पारित कराने में किस हद तक कामयाब हो पाएंगी इसके अलावा भी देखना होगा कि महिलाओं में सम्सामय्की विषयों को है यह कितनी मजबूती से रखती है | यदि है इन सभी विषयों पर सदन में गभीरता से विचार करती है कुछ निर्णय लेती है तो यह देश कि आधी आबादी के साथ में तो न्याय होगा ही साथ ही भारतीय लोकतंत्र को और मजबूती प्रदान करेगा जो देश और समाज सभी के हित में होगा|
लेखक
लोकेश कुमार