आज़ाद भारत और 15 अगस्त

शम्भू शरण सत्यार्थी

हर साल जब 15 अगस्त आता है, पूरा देश गर्व और देशभक्ति की भावना से भर जाता है। यह दिन भारत के इतिहास का सबसे सुनहरा दिन है क्योंकि 15 अगस्त 1947 को हमारा देश गुलामी की ज़ंजीरों को तोड़कर आज़ाद हुआ था। यह दिन केवल एक तारीख नहीं है, यह बलिदान, संघर्ष और देशप्रेम की याद दिलाने का दिन है।

भारत पर लगभग 200 वर्षों तक अंग्रेजों का राज रहा। उन्होंने हमारे देश के लोगों पर अत्याचार किए, हमारे संसाधनों का शोषण किया, और हमें हमारे ही देश में कमजोर और असहाय बना दिया। उस समय भारतीयों के पास ना तो बोलने की आज़ादी थी, ना ही अपने हक के लिए लड़ने की।

अंग्रेजों के खिलाफ कई छोटे-बड़े आंदोलन हुए लेकिन 1857 का स्वतंत्रता संग्राम पहला बड़ा प्रयास था जिसमें रानी लक्ष्मीबाई, तात्या टोपे, नाना साहेब जैसे कई वीरों ने भाग लिया। इसके बाद कई आंदोलनों ने आज़ादी की ज्वाला को और भी प्रज्वलित किया।

भारत की आज़ादी आसान नहीं थी। इसके लिए हजारों स्वतंत्रता सेनानियों ने जेलें झेली, यातनाएँ सहीं और अपनी जान तक कुर्बान कर दी । महात्मा गांधी ने ‘सत्य और अहिंसा’ का मार्ग अपनाकर देश को एकजुट किया। भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव ने फाँसी के फंदे को हँसते-हँसते गले लगाया । नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने आज़ाद हिंद फौज बनाकर अंग्रेजों से लोहा लिया। सरदार पटेल, बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, मौलाना आज़ाद जैसे कई नेता आज़ादी की इस लड़ाई के स्तंभ बने। इन सबके प्रयासों और त्याग के कारण ही हमें 15 अगस्त 1947 को आज़ादी मिली।

15 अगस्त, भारत का स्वतंत्रता दिवस उन अनगिनत बलिदानों और प्रेरक कहानियों का प्रतीक है जिन्होंने भारत को आजादी दिलाई। 

महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के सिद्धांतों के माध्यम से ब्रिटिश शासन के खिलाफ एक अनूठा आंदोलन चलाया। 15 अगस्त 1947 को जब भारत आजाद हुआ, यह गांधीजी के दृढ़ विश्वास और नेतृत्व का परिणाम था। उनका दांडी नमक मार्च (1930) एक ऐसा प्रेरक प्रसंग है, जिसने न केवल भारतीयों को एकजुट किया बल्कि विश्व को अहिंसा की ताकत दिखाई। इस मार्च में गांधीजी ने 24 दिनों तक 390 किलोमीटर की यात्रा की और समुद्र तट पर नमक बनाकर ब्रिटिश नमक कानून का उल्लंघन किया। यह छोटा-सा कदम स्वतंत्रता संग्राम में एक बड़ा प्रतीक बन गया।

23 वर्षीय युवा क्रांतिकारी भगत सिंह ने स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। 1929 में उन्होंने दिल्ली की सेंट्रल असेंबली में बम फेंका लेकिन इसका उद्देश्य किसी को मारना नहीं, बल्कि ब्रिटिश सरकार का ध्यान भारतीयों की मांगों की ओर खींचना था। उनके नारे “इंकलाब जिंदाबाद” ने लाखों युवाओं को प्रेरित किया। 15 अगस्त 1947 को भले ही भगत सिंह इसे देखने के लिए जीवित न रहे, लेकिन उनकी कुर्बानी ने स्वतंत्रता की नींव को मजबूत किया।

1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की नायिका, झांसी की रानी लक्ष्मी बाई ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ अपनी तलवार उठाई। अपने छोटे से राज्य की रक्षा और देश की आजादी के लिए उन्होंने अभूतपूर्व साहस दिखाया। रानी ने अपने बेटे को पीठ पर बांधकर युद्ध लड़ा, जो नारी शक्ति का प्रतीक बन गया। उनकी वीरता की गूंज 15 अगस्त 1947 को आजादी के उत्सव में भी सुनाई दी।

“तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा” – नेताजी सुभाष चंद्र बोस का यह नारा हर भारतीय के दिल में गूंजता है। उनकी आजाद हिंद फौज ने ब्रिटिश शासन को सशस्त्र चुनौती दी। 1943 में नेताजी ने सिंगापुर में आजाद हिंद सरकार की स्थापना की और “दिल्ली चलो” का आह्वान किया। उनकी यह लड़ाई 15 अगस्त 1947 को आजादी के रूप में परिणत हुई।

15 अगस्त की कहानी केवल बड़े नेताओं की नहीं, बल्कि उन लाखों आम भारतीयों की भी है, जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया। चाहे वह लाला लाजपत राय हों जिन्होंने साइमन कमीशन के खिलाफ प्रदर्शन किया, या फिर गुमनाम किसान, मजदूर और महिलाएं, जिन्होंने आंदोलनों में हिस्सा लिया। इन सभी के छोटे-छोटे प्रयासों ने मिलकर भारत को आजादी दिलाई।

15 अगस्त 1947 को, भारत ने 200 वर्षों के ब्रिटिश शासन से मुक्ति प्राप्त की। इस दिन पंडित जवाहरलाल नेहरू ने दिल्ली के लाल किले से तिरंगा फहराया और अपना प्रसिद्ध भाषण “ट्रिस्ट विद डेस्टिनी” दिया। यह दिन हमें याद दिलाता है कि आजादी केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक जिम्मेदारी है। हमें अपने देश को और मजबूत, समृद्ध और एकजुट बनाने के लिए प्रेरित करता है।

 15 अगस्त हमें सिखाता है कि एकता, साहस और समर्पण के साथ हम अपने देश को नई ऊंचाइयों तक ले जा सकते हैं। आइए, इस स्वतंत्रता दिवस पर हम अपने कर्तव्यों को याद करें और भारत को एक बेहतर राष्ट्र बनाने का संकल्प लें।

यह दिन केवल भारत के लिए ही नहीं, बल्कि पूरी दुनिया के लिए एक मिसाल था कि बिना हथियार उठाए, एक देश शांति और एकता से स्वतंत्र हो सकता है।

स्वतंत्रता के बाद भारत ने संविधान निर्माण की ओर कदम बढ़ाया और 26 जनवरी 1950 को भारत एक गणराज्य बना। उसके बाद देश ने हर क्षेत्र में तरक्की की।शिक्षा, स्वास्थ्य, विज्ञान और तकनीक में प्रगति हुई।रेलवे, सड़कों और संचार के माध्यमों का विकास हुआ।किसानों और गरीबों के लिए नई योजनाएँ बनीं। महिलाओं और पिछड़े वर्गों को अधिकार दिए गए। भारत ने खुद को एक लोकतांत्रिक, धर्मनिरपेक्ष और समाजवादी गणराज्य के रूप में स्थापित किया। आज 15 अगस्त सिर्फ एक छुट्टी का दिन नहीं है बल्कि यह हमें हमारी जड़ों की याद दिलाता है। प्रधानमंत्री लाल किले से तिरंगा फहराते हैं और देश को संबोधित करते हैं। स्कूलों और कॉलेजों में देशभक्ति गीत, नृत्य, नाटक और भाषण होते हैं। हर भारतीय अपने तिरंगे के साथ गर्व महसूस करता है।

यह दिन हमें संविधान, लोकतंत्र और आज़ादी के महत्व को समझने का अवसर देता है।आज हम आज़ाद हैं, लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि यह आज़ादी बहुत संघर्षों के बाद मिली है। इसलिए हमारी जिम्मेदारी है कि हम अपने देश को साफ, सुंदर और विकसित बनाएं।हम समानता, भाईचारे और इंसानियत को बढ़ावा दें।हम देश की एकता और अखंडता की रक्षा करें।हम झूठ, भ्रष्टाचार और हिंसा से दूर रहें। देश की तरक्की सिर्फ सरकार से नहीं होती, बल्कि हर नागरिक की मेहनत और ईमानदारी से होती है।15 अगस्त हमें ना सिर्फ आज़ादी की खुशी देता है बल्कि यह हमें अपने कर्तव्यों की याद भी दिलाता है। हमें उन वीरों का सम्मान करना चाहिए जिन्होंने अपनी जान देकर हमें यह दिन दिखाया।आइए, हम सब मिलकर ये संकल्प लें कि हम एक बेहतर भारत का निर्माण करेंगे — जहाँ हर कोई सुरक्षित, शिक्षित और सम्मानित हो। यही आज़ादी की असली जीत होगी।

शम्भू शरण सत्यार्थी

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