शिवानन्द मिश्रा
कहते हैं बाज़ जब शिकार करता है तो सबसे पहले ऊँचाई पर चढ़ता है, फिर बिना आहट के झपट्टा मारता है। आज भारत ठीक उसी मोड़ पर खड़ा है। अमेरिका ने भारत से होने वाले आयात पर टैरिफ को 25% से बढ़ाकर 50% कर दिया है। कुछ लोग कह रहे हैं कि प्रधानमंत्री जी को तुरंत बात करनी चाहिए, अमेरिका से दो टूक कह देना चाहिए कि ये हमें मंज़ूर नहीं पर समझदारी इसी में है कि इस वक्त हम चुप रहें लेकिन हाथ पर हाथ धर कर नहीं बल्कि मन ही मन तैयारी करते हुए।
कोरोना जैसे संकट ने पूरी दुनिया को झकझोर दिया लेकिन भारत उस समय भी घबराया नहीं। जहाँ एक ओर अमेरिका में लोग सड़कों पर ऑक्सीजन के लिए तड़प रहे थे, वहीं भारत गाँव की पगडंडियों से लेकर महानगरों की गलियों तक जीवन के लिए लड़ रहा था और लड़ कर जीता भी। हमने टीके बनाए, दवाइयाँ बाँटी, यहाँ तक कि दूसरों की मदद भी की।
अब जब अमेरिका ने टैरिफ बढ़ाए हैं तो क्या हमें नहीं घबराना चाहिए क्योंकि यह पहला और आखिरी झटका नहीं है। हो सकता है कल ये टैरिफ 150% तक बढ़ जाएँ। हमने सीखा है रोटी तब पकती है जब आँच तेज़ हो।
भारत को अब मुँह से नहीं, हाथों से जवाब देना है।
जो चीज़ें बाहर से आती हैं, उन्हें यहीं बनाना सीखना चाहिए। देश के गाँव-गाँव में हुनर बिखरा पड़ा है। बस उसे दिशा देने की ज़रूरत है। आज भी लोहार की भट्टी में वह आग है जो मशीन को टक्कर दे सकती है, अगर उसे अवसर मिले।
अगर अमेरिका अपना दरवाज़ा बंद करता है तो अफ्रीका, रूस, दक्षिण एशिया और अरब देशों के साथ व्यापारिक रिश्ते मज़बूत करना चाहिए। बाजार एक नहीं,कई होते हैं पर आँख सिर्फ उसी पर टिकती है जहाँ आदत पड़ जाए।
जनता को जागरूक बनना होगा। हम हर विदेशी चीज़ के पीछे दौड़ने वाले लोग नहीं रहे। अब हम समझ चुके हैं कि ‘मेड इन इंडिया’ सिर्फ शब्द नहीं, एक ज़रूरत है, आत्मसम्मान की ज़रूरत।
सरकार को चाहिए कि वह छोटे कारीगरों को, खेत के किसानों को और छोटे उद्यमियों को ऐसी छत दे जहां वो धूप-बारिश में भी कुछ बना सकें जो बाहर भेजा जा सके।
सबसे बड़ा संकट बाहर से नहीं, भीतर से आता है। जब घर की दीवारें खुद कमजोर हो जाएँ तो बाहर की आंधी क्या कर लेगी लेकिन जब भीतर ही दरारें हों, एकता की नींव हिलने लगे, तब सबसे बड़ा डर वहीं से होता है।
आज देश के भीतर कुछ ऐसे स्वर सुनाई देते हैं जो विदेशी ताक़तों को न्योता देते हैं। जब एक घर का बेटा ही पड़ोसी से कहे कि ‘आओ,हमारे घर में आग लगाओ’ तो किसे दोष दिया जाए?
हमें सतर्क रहना है लेकिन उत्तेजित नहीं।
हमें जागरूक रहना है लेकिन आक्रामक नहीं।
क्योंकि राष्ट्र की रक्षा सिर्फ सरहद पर नहीं होती। गाँव के किसान,शहर के मजदूर,और पढ़ने वाले छात्र के भीतर भी होती है।
इस समय प्रधानमंत्री जी को कोई जवाब नहीं देना चाहिए बल्कि उन्हें वही करना चाहिए जो एक धैर्यवान पिता करता है जब कोई पड़ोसी ऊँची आवाज़ में बोलता है. वह अपना काम दोगुनी मेहनत से करता है ताकि उसका घर पहले से मज़बूत हो जाए।
बात तब होनी चाहिए जब बोलने का मतलब हो और आज नहीं तो कल वह दिन आएगा। जब भारत बोलेगा भी और दुनिया सुनेगी भी।
देश की रक्षा बंदूक से ही नहीं, चरित्र से भी होती है। नारे से नहीं, निर्माण से होती है और सबसे बढ़कर आत्मनिर्भरता से होती है। आज भारत को सिर झुकाकर बात नहीं करनी है लेकिन सिर उठाकर चलने की तैयारी ज़रूर करनी है।
शिवानन्द मिश्रा