पुनीत उपाध्याय
भारत में बढ़ता ई-कचरा या ई-वेस्ट गंभीर चुनौती बनता जा रहा है। इलेक्ट्रॉनिक कचरा या ई-कचरा दरअसल बिजली और इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों का वेस्ट है। राज्यसभा में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा उपलब्ध कराए गए आंकड़ों का हवाला देकर केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय राज्य मंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने बताया कि वित्तीय वर्ष 2020-21 से 2022-23 तक ई-कचरे के उत्पादन में क्रमिक वृद्धि हुई हालांकि वित्तीय वर्ष 2023-24 में इसमें कमी आई है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में इसमें मामूली वृद्धि हुई है। वित्तीय वर्ष 2024-25 में देश में 13 लाख 97 हजार मीट्रिक टन ई-कचरा पैदा हुआ। इससे पहले 16 दिसंबर 2024 को सरकार ने राज्यसभा में बताया था कि पिछले पांच वर्षों में इलेक्ट्रॉनिक कचरे के उत्पादन में भारी वृद्धि देखी गई जो 2019-20 में 1.01 मिलियन मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 1.751 मिलियन मीट्रिक टन हो गया है। राष्ट्रीय स्तर के आंकड़े 2019-20 से ई-कचरा उत्पादन में चिंताजनक 72.54 प्रतिशत की वृद्धि दर्शाते हैं जो देश भर में इलेक्ट्रॉनिक और बिजली उपकरणों के बढ़ते उपयोग को दर्शाता है। स्मार्टफोन और लैपटॉप से लेकर उन्नत औद्योगिक और चिकित्सा उपकरणों तक. तकनीक आर्थिक विकास, कनेक्टिविटी और नवाचार की रीढ़ बन गई है। इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों पर इस बढ़ती निर्भरता का नुकसान भी है जिसे इलेक्ट्रॉनिक कचरे के रूप में जाना जाता है।
भारत में 95 फीसदी कचरे का उचित निस्तारण नहीं
दुनिया के शीर्ष ई-कचरा उत्पादकों (चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और जर्मनी) में शुमार भारत के सामने ई-कचरे के प्रबंधन की एक कठिन चुनौती है। भारत में ई-कचरे की मात्रा छह वर्षों में 151.03 फीसदी बढ़कर 2017-18 में 7 लाख 8 हजार 445 मीट्रिक टन से बढ़कर 2023-24 में 17 लाख 78 हजार 400 मीट्रिक टन हो गई जिसमें 1 लाख 69 हजार 283 मीट्रिक टन की वार्षिक वृद्धि हुई है। संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनिया का पांचवां सबसे बड़ा ई-कचरा उत्पादक है। यहां उत्पन्न होने वाले लगभग 95 फीसदी ई.कचरे को या तो जला दिया जाता है या लैंडफिल में फेंक दिया जाता है। तेज़ी से बढ़ते शहरीकरण के साथ यह संख्या और भी बढ़ेगी और साथ ही स्वास्थ्य को ख़तरा पैदा करने वाले लोगों की संख्या भी बढ़ेगी। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार ई-कचरा दुनिया में सबसे तेज़ी से बढ़ते ठोस अपशिष्ट स्रोतों में से एक है। 2022 में वैश्विक स्तर पर अनुमानित 62 मिलियन टन ई-कचरा उत्पन्न हुआ। केवल 22.3 का ही का ही औपचारिक रूप से संग्रहण और रिसाइकिल किया गया। चिंता की बात यह है कि सीसा एक सामान्य पदार्थ है जो पर्यावरण में तब उत्सर्जित होता है जब ई-कचरे को खुले में जलाने सहित अनौपचारिक गतिविधियों के माध्यम से पुनर्चक्रित, संग्रहीत या डंप किया जाता है। अनौपचारिक ई-कचरा निस्तारण के कई प्रतिकूल स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं। बच्चे और गर्भवती महिलाएं विशेष रूप से असुरक्षित हैं। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन का अनुमान है कि दुनिया भर में अनौपचारिक रिसाइकिल क्षेत्र में काम करने वाली लाखों महिलाओं और बाल श्रमिकों को खतरनाक ई-कचरे के संपर्क में आने का खतरा हो सकता है।
उत्पादन.रिसाइकिल में बड़ा गैप. पांच गुना अंतर आ चुका
संयुक्त राष्ट्र के चौथे वैश्विक ई-कचरा मॉनिटर के अनुसार दुनिया में इलेक्ट्रॉनिक कचरे का उत्पादन इसकी रिसाइकिलिंग की तुलना में पांच गुना तेज़ी से बढ़ रहा है। 2022 में रिकॉर्ड 62 मिलियन टन ;ई-कचरा उत्पन्न हुआ जो 2010 से 82 फीसदी अधिक है। 2030 में 32 फीसदी और बढ़कर 82 मिलियन टन होने की संभावना है जिससे अरबों डॉलर मूल्य के रणनीतिक रूप से मूल्यवान संसाधन बर्बाद होंगे। दुनिया भर में ई-कचरे का वार्षिक उत्पादन 26 लाख टन की दर से बढ़ रहा है जो 2030 तक 8.2 करोड़ टन तक पहुंचने की संभावना है।
पुनीत उपाध्याय