कमलेश पांडेय
भारतीय पृष्ठभूमि वाली दुनिया की सबसे पुरातन सभ्यता-संस्कृति ‘सनातन धर्म” पर सियासी वजहों से जो निरंतर हमले हो रहे हैं, उनका समुचित जवाब देने में अब कोई कोताही नहीं बरती जानी चाहिए अन्यथा इसकी सार्वभौमिक स्थिति और महत्ता को दरकिनार करने वाले ऐसे ही बेसिरपैर वाले क्षुद्र सवाल उठाए जाते रहेंगे।
हाल ही में तथाकथित धर्मनिरपेक्ष और अवसरवादी क्षेत्रीय पार्टी एनसीपी शरद पवार के विधायक जितेंद्र आव्हाड ने एक नया विवाद छेड़ते हुए जो कहा है कि सनातन धर्म ने भारत को बर्बाद कर दिया और इसकी विचारधारा को विकृत बताया, वह निहायत ही बेहूदगी भरी, अपरिपक्व और पूर्वाग्रह ग्रसित बयानबाजी है, उसकी जितनी भी निंदा की जाए, वह कम है।
वहीं, भारत की आत्मा समझी जाने वाली सनातन सभ्यता-संस्कृति पर ऐसी अपमानजनक टिप्पणी करने वाले जनप्रतिनिधियों के खिलाफ उनकी पार्टी को अपना स्टैंड क्लियर करते हुए उनका इस्तीफा लिया जाना चाहिए अन्यथा चुनाव आयोग को ऐसे जनप्रतिनिधियों के खिलाफ कार्रवाई करते हुए उनसे सम्बन्धित राजनीतिक दल की मान्यता अविलंब समाप्त की जानी चाहिए अन्यथा जनमानस में यही संदेश जाएगा कि भारतीय संविधान के मातहत जारी कार्यपालिका प्रशासन और न्यायपालिका प्रशासन में धर्मनिरपेक्षता की पक्षधरता करने वाले ऐसे ऐसे सनातन विरोधी लोग बैठे हैं जो भारत की सबसे पुरानी सभ्यता-संस्कृति के हमलावरों पर भी उसी तरह से उदार हैं जैसे कभी मुगल या अंग्रेज प्रशासक या कांग्रेसी राजनेता हुआ करते थे।
उल्लेखनीय है कि उपरोक्त विधायक का यह बयान 2008 मालेगाव विस्फोट मामले में सभी सात आरोपियों के विशेष एनआईए अदालत द्वारा बरी किए जाने के बाद आया है जिसने भगवा/हिन्दू आतंक शब्द को लेकर पिछले डेढ़ दशकों से जारी राजनीतिक बहस को एक बार फिर से गरमा दिया है।
यह अजीबोगरीब है कि पत्रकारों से बात करते हुए आव्हाड ने कहा कि सनातन धर्म ने भारत को बर्बाद कर दिया। कभी कोई धर्म सनातन धर्म नाम से नहीं था। हम हिंदू धर्म के अनुयायी हैं। यही कथित सनातन धर्म था जिसने हमारे छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्याभिषेक में बाधा डाली। इसी सनातन धर्म ने हमारे छत्रपति संभाजी महाराज को बदनाम किया। इसी सनातन धर्म के अनुयायियों ने ज्योतिराव फुले की हत्या का प्रयास किया।
इन्होंने सावित्रीबाई फुले पर गोबर और गंदगी फेंकी। यही सनातन धर्म शाहू महाराज की हत्या की साजिश में शामिल था। इसने आंबेडकर को पानी पीने या स्कूल में पढ़ने की अनुमति तक नहीं दी। वहीं, आव्हाड के सनातन धर्म और सनातन समाज विरोधी बयान पर राणे और संजय निरुपम ने भी ठोककर जवाब दिया है। महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्री नितेश राणे ने जितेंद्र आव्हाड के बयान पर कहा कि ‘हिंदू आतंकवाद’ या ‘सनातनी आतंकवाद’ जैसी भाषा भारत की हिंदू और संत परंपरा को बदनाम करने के लिए गढ़ी गई एक परिभाषा है।
राणे की इस प्रतिक्रिया का लब्बोलुआब यह है कि हिन्दू समाज के प्रति हद से ज्यादा नकारात्मक हो चुकी कांग्रेस को देशवासियों ने सजा दी और केंद्रीय सत्ता से बाहर कर दिया जिससे कांग्रेसी बौखलाये हुए हैं। उसके लोग मुस्लिम वोटों को समाजवादियों से खींचने के लिए रणनीतिक गलतियां दर गलतियां करते जा रहे हैं। ऐसा करके वे लोग विपक्ष की राजनीति तो कब्जा सकते हैं लेकिन केंद्रीय सत्ता 15 साल बाद भी उनके लिए दिल्ली दूर ही साबित होगी।
वहीं, बीजेपी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और सांसद संबित पात्रा ने कांग्रेस के तथाकथित “इकोसिस्टम” पर निशाना साधते हुए कहा कि वह सनातन धर्म को बदनाम करने और हिंदू आतंक जैसे शब्दों का इस्तेमाल करने पर आमादा है। उन्होंने कांग्रेस के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण के उन हालिया बयानों का भी जिक्र किया जिसमें उन्होंने सनातन आतंकवाद का नया जुमला गढ़ा है।
श्री पात्रा ने एनसीपी विधायक जितेंद्र आव्हाड के ताजा विवादित बयान का हवाला देते हुए कहा कि, “आव्हाड महाराष्ट्र के नेता हैं और शरद पवार की पार्टी से ताल्लुक रखते हैं। एक बार फिर उन्होंने सनातन धर्म के लिए अपमानजनक भाषा का इस्तेमाल किया है। आपने सत्य का अपमान किया है, शिव के खिलाफ बोला है और उस भारत की सुंदरता का विरोध किया है। वह भारत जिसकी खूबसूरती सबके सम्मान में निहित है। मैं शरद पवार से पूछना चाहता हूं कि क्या यह आपकी पार्टी भी यही सोचती है, स्पष्ट कीजिए।”
वहीं, शिवसेना नेता संजय निरुपम ने सोशल मीडिया पर लिखा, ‘जितेंद्र आव्हाड ने सनातन धर्म को बदनाम करने के लिए खूब सारी फर्जी कहानियां सुनाई हैं। वे यह बताना भूल गए कि अगर सनातन धर्म नहीं होता तो वे अब तक जितेंद्र नहीं जित्तुद्दीन हो जाते। अगर सनातनी नहीं होते तो देश सऊदी अरब बन जाता।
बता दें कि महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण ने भगवा शब्द की जगह सनातन या हिंदुत्ववादी शब्दों के उपयोग की वकालत की है। मालेगांव ब्लास्ट मामले में सभी दोषियों को बरी किए जाने के बाद चव्हाण ने सनातन संगठन की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता का हवाला देते हुए उस पर प्रतिबंध का समर्थन किया। उन्होंने कहा है कि आतंकवादियों के लिए ‘भगवा’ शब्द का प्रयोग न करके ‘सनातन’ या ‘हिंदुत्ववादी’ शब्दों का इस्तेमाल किया जाना चाहिए. उन्होंने अपने विचारों के समर्थन में ऐतिहासिक संदर्भ भी दिए।
चव्हाण ने कहा, ‘मेरे मुख्यमंत्री काल में ‘सनातन’ संगठन की आतंकवादी गतिविधियों में संलिप्तता थी।’ इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने के लिए मैंने एक गोपनीय रिपोर्ट केंद्रीय गृह मंत्रालय को भेजी थी। उसी संदर्भ में मैंने ‘सनातन’ शब्द का उपयोग किया था क्योंकि उस संगठन का कार्य आतंकवादी प्रवृत्ति का था। इस संगठन पर प्रतिबंध लगाया जाना चाहिए था।’
उन्होंने डॉ. नरेंद्र दाभोलकर और कॉ. गोविंद पानसरे की हत्याओं का जिक्र करते हुए कहा कि उनके साथ क्या हुआ और आज तक न्याय क्यों नहीं मिला, यह गंभीर प्रश्न है।
उन्होंने सवाल उठाया और कहा, ‘ऑपरेशन सिंदूर पर सदन में चर्चा होनी थी, उसी समय मुंबई सीरियल ब्लास्ट और मालेगांव फैसले का आना संयोग है या साजिश? मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने जब मालेगांव केस चल रहा था, तब जो बयान दिया था, उसका असर कोर्ट के निर्णय पर पड़ा हो, तो यह गंभीर मामला है।
चव्हाण ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह पर भी सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, ‘बीते 15 वर्षों से अमित शाह केंद्रीय गृह मंत्री हैं लेकिन इस अवधि में जांच एजेंसियों ने न्यायोचित कार्य नहीं किया है। ये सब सोची-समझी रणनीति के तहत किया गया है।’ मुंबई विस्फोट और मालेगांव दोनों मामलों में सरकार को उच्च न्यायालय में अपील करनी चाहिए।’
चव्हाण के अनुसार, कोई भी धर्म आतंकवादी नहीं होता लेकिन नाथूराम गोडसे की विचारधारा संघ की थी। सरदार वल्लभभाई पटेल ने एक समय संघ पर प्रतिबंध लगाया था। उन्होंने यह भी साफ किया कि चिदंबरम, सुशील कुमार शिंदे और दिग्विजय सिंह ने ‘भगवा आतंकवाद’ शब्द का उपयोग किया था लेकिन मैं और मेरी पार्टी उस शब्द से सहमत नहीं थे और आज भी नहीं हैं। इसलिए सनातनी आतंकवाद कहते हैं।
तल्ख हकीकत यह है कि भारत को सनातन ने नहीं, विदेशी आक्रांताओं और कांग्रेस ने बर्बाद किया। आजादी की प्राप्ति के बाद तुष्टिकरण की राजनीति करते हुए तत्कालीन हिंदूवादी कांग्रेस ने हिंदुओं के साथ छल किया। जब तक हिन्दू समाज इसे समझ पाया, तब तक बहुत देर हो चुकी थी। हिन्दू हित के जो कार्य 1947 में ही शुरू कर दिए जाने चाहिए थे, वो 1998-99 में प्रारंभ हुए लेकिन उन्हें सही गति 2014 के बाद मिल पाई।
अभी भी तथाकथित धर्मनिरपेक्षता इस राह में सबसे बड़ी बाधक है। यह इस्लामिक व ईसाइयत को संरक्षण देती है तो हिंदुओं को सिख, बौद्ध, जैन आदि पंथ को धर्म ठहराकर तोड़ती है। इससे हिन्दू समाज आंदोलित है। उसे योगी शासन का इंतजार है ताकि यूपी की तरह पूरे देश का कायाकल्प संभव हो सके।
कमलेश पांडेय