सिंधु संधि पर भारत का नया रुख: कूटनीति से जलनीति तक

·       डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

23 अप्रैल को पहलगांव में आतंकी हमले में 28 पर्यटकों की हत्या के बाद भारत ने पाकिस्तान के खिलाफ कड़ा रुख अपनाया। भारत ने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराते हुए  सुरक्षा मामलों की कैबिनेट कमेटी की बैठक के बाद 65 वर्ष पुराना सिंधु जल समझौता निलंबित कर दिया है। इसके साथ ही अटारी चेक पोस्ट बंद करने, पाक नागरिकों के लिए सार्क वीजा छूट योजना रद्द करने, वीजाधारकों को भारत छोड़ने के निर्देश देने और पाकिस्तानी उच्चायोग के सैन्य सलाहकारों को निष्कासित करने का निर्णय लिया गया। इस्लामाबाद उच्चायोग के स्टाफ में कटौती की गई। 

भारत द्वारा सिंधु नदी समझौते को स्थगित करने की घोषणा के बाद से ही पाकिस्तान में मातम का माहौल है और पाकिस्तान लगातार इसको अन्तर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन बता रहा है। अब प्रश्न यह उठता है कि भारत इस पानी को कैसे रोकेगा। भारत द्वारा उठाए गए इस कदम का पाकिस्तान पर क्या प्रभाव पड़ेगा। क्या इस कदम से भारत को कानूनी तौर पर कोई परेशानी होगी। इन सारे सवालों की पड़ताल करने के पहले यह जानना जरूरी है कि सिंधु नदी समझौता क्या है।

 सिंधु नदी समझौते पर विश्व बैंक की मध्यस्थता से 19 सितम्बर 1960 को कराची में भारत के प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान के द्वारा हस्ताक्षर किया गया। यह समझौता नदियों के साझा प्रबंधन हेतु था। इस समझौते के अनुसार सिंधु और उसकी सहायक नदियों को दो हिस्से में बांटा गया। पूर्वी नदियों सतलज, व्यास एवं रावी पर भारत का पूरा नियंत्रण होगा जबकि पश्चिमी नदियों क्रमशः सिंधु, झेलम एवं चिनाब नदियों पर भारत का कुछ ही नियंत्रण होगा। इस पर भारत अपनी कृषि एवं ऊर्जा जरूरतों के लिहाज से छोटे प्रोजेक्ट बनाने का अधिकारी है। शेष पानी उसे पाकिस्तान के लिए छोड़ना होगा। पूर्वी नदियों का वार्षिक प्रवाह 33 बिलियन एकड़ फुट है जबकि पश्चिमी नदियों का वार्षिक प्रवाह इससे लगभग चार गुना 135 बिलियन एकड़ फुट है। मोटे तौर पर देखें तो इस जल प्रवाह का 80 प्रतिशत  पाकिस्तान को और 20 फीसदी भारत को मिलता है।

 इस समझौते में यह भी निश्चित हुआ कि दोनों देश एक दूसरे को नदी के प्रवाह और बांधों की जानकारी देंगे। इस हेतु एक स्थायी सिंधु आयोग बनाया गया जिसमें दोनों देशों के एक- एक सदस्य हैं। तकरीबन 65 साल बाद भारत ने कूटनीतिक तौर पर इस संधि को स्थगित करने का फैसला किया है। वह इसे कुछ समय के लिए स्थगित कर रहा है। 24 अप्रैल को भारत ने औपचारिक तौर पर इस संधि से एकतरफा हटने  की सूचना पाकिस्तान को अधिकृत तौर पर दे दी। पाकिस्तान के जल संसाधन मंत्रालय के सचिव को लिखे पत्र में इसके कारणों को स्पष्ट करते हुए कहा गया कि कोई भी संधि तभी जारी रह सकती है जबकि उसके प्रति अच्छी नीयत रखी जाए। चूंकि पाकिस्तान की तरफ से अनवरत आतंकवादी गतिविधियां जारी हैं। अतः भारत यह कदम उठा रहा है। साथ ही इसकी जानकारी विश्व बैंक को भी दी गई है।

भारत के जलशक्ति मंत्री सी. आर. पाटिल ने गृह मंत्री अमित शाह के साथ जलशक्ति मंत्रालय की हुई बैठक के बाद सिंधु नदी के पानी के रोकने के मास्टर प्लान के विषय में बताया। इस संदर्भ में बताया गया कि यह योजना त्रिस्तरीय होगी- पहला शार्ट टर्म जो पूरी तरह से 2-3 वर्षों में काम करने लगेगा. इसके जरिए 5 से 10 प्रतिशत पानी रोका जा सकता है।  दूसरा मीडियम टर्म यह 5-6 वर्षों में काम कारने लगेगा। इसके माध्यम से 15-20 प्रतिशत पानी को रोक जा सकता है. तीसरा और अंतिम प्लान है लॉंग टर्म इसके तहत 30-40 फीसदी पानी रोका जाएगा। इन तीनों प्लानों में क्रमशः 1. पहले से बने परियोजनाओं की क्षमता बढ़ाना होगा  2. नवीनतम परियोजनाओं को संरचित करना होगा जैसे नहरों का संजाल बिछाना और 3. दो नदियों को जोड़ना जैसे सिंधु  को गंगा नदी से जोड़ना।  दूसरी और तीसरी परियोजना अत्यंत खर्चीली हैं और अभी से काम करने पर लगभग 10 वर्ष लग जाएगा। अब सवाल यह है कि अभी भारत क्या कर सकता है, तो इसका उत्तर है फिलहाल वह आंशिक तौर पर प्रभाव डाल सकता है। चूंकि अब जब भारत इस संधि से दीर्घ काल के लिए पीछे हट गया है तो अब भारत को डेटा शेयर नही करना होगा। अतः वह इसका इस्तेमाल करके प्रतिकूल मौसम में फायदा उठा सकता है। साथ ही अब भारत बड़ी परियोजनाओं को बना सकता है। वह पहले से स्थापित परियोजनाओं की क्षमता भी बढा सकता है। इससे पाकिस्तान की कृषि, पनबिजली एवं दैनिक उपयोग के पानी की किल्लत होगी और इसका असर उसकी अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।

अब यह भी प्रश्न उठता है कि क्या इस संधि को स्थगित करने का भारत पर कोई कानूनी प्रभाव पड़ेगा तो इसका उत्तर है इसका आंशिक असर पड़ सकता है। वस्तुतः इस संधि के अनुच्छेद 12 में कहा गया है कि यह संधि तब तक खत्म नही होगी जब तक दोनों देश खत्म ना कर दें परंतु वियना कन्वेन्शन ऑन ट्रीटीज की धारा 66 यह कहती है कि कोई भी संप्रभु राष्ट्र किसी भी अंतर्राष्ट्रीय संधि से हट सकता है. निकलने के लिए अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जाना होगा परन्तु अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में यह भी उपबंध है कि जो समस्या राष्ट्रमण्डल देशों की है, उसमें वे स्वतंत्र है कि वे चाहें तो अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में जाएं अथवा ना जाएं। धारा 66 यह भी कहती है कि एक वर्ष पूर्व सूचना देनी होगी। भारत एक वर्ष पूर्व ही इस संधि को नए सिरे से करने हेतु पाकिस्तान को सूचित कर चुका है।

इस तरह से स्पष्ट है कि इस संधि से पीछे हटकर भारत कूटनीतिक तौर पर पाकिस्तान पर दबाव बनाने में सफल हो गया है। यह सत्य है कि पूरा पानी रोक पाना फिलहाल असंभव दिखलायी पड़ता है लेकिन अगले एक दशक में इस पर काम किया जा सकता है। साथ ही पहले से बनी परियोजनाओं और नहरों की मरम्मत करना होगा, उनकी क्षमता को यथाशीघ्र बढ़ाना होगा। इसका असर अभी से देखने को मिलने लगा है। भारत ने बिना पाकिस्तान को बताए झेलम नदी का पानी छोड़ दिया जिससे मुजफ्फराबाद जिले में बाढ़ जैसी स्थिति आ गई है। निःसंदेह भारत की घोषणा मात्र से पाकिस्तान में डर का माहौल है। यही कारण है कि पाकिस्तान के सियासतदाँ के द्वारा उलटे-सीधे बयान दिए जा  रहे हैं। भारत सरकार और उनके थिंक टैंक को लगातार इस पर नज़र रखने की जरूरत है क्योंकि अब समय हार्ड पवार डिप्लोमेसी का है, साफ्ट पवार डिप्लोमेसी का नही। 

डॉ ब्रजेश कुमार मिश्र

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