डॉ.बालमुकुंद पांडेय
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने पड़ोसी देशों के साथ सौहार्दपूर्ण एवं मधुर संबंध को बनाए रखने की प्राथमिकता दे रहे हैं । मोदी जी विगत जुलाई महीने में 25 एवं 26 को मालदीव की यात्रा पर गए थे। सामरिक एवं व्यापारिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण पड़ोसी, मालदीव अपने देश का 60वा स्वतंत्रता दिवस मना रहा था। इस महत्वपूर्ण एवं गरिमावान दिवस के मुख्य अतिथि मोदी जी थे। मोदी सरकार के वैदेशिक संबंधों में ‘ पड़ोसी प्रथम ‘ की प्रासंगिकता एवं उपादेयता की दृष्टि से यह यात्रा अति महत्वपूर्ण है। विगत कुछ वर्षों से मालदीव के राष्ट्रपति श्रीमान मुइज्जू भारत विरोध का राग अलाप रहे थे एवं भारत सरकार के ऊपर अनर्गल आरोप लगा रहे थे लेकिन बदलते परिदृश्य में भारत की उपादेयता एवं चीन के ऋण के मकड़जाल से मुक्त होने के लिए भारत की महनीय आवश्यकता, महत्व एवं उपादेयता मालदीव के लिए अत्यंत आवश्यक है। वर्तमान में मालदीव के चहुमुखी विकास के लिए भारत जैसे ‘ बड़े भाई ‘ की आवश्यकता है। मालदीव के विकास के लिए अनुदान की आवश्यकता है। बदहाली की अवस्था एवं आसन्न संकट के निवारण के लिए भारत सरकार का संकट मोचन की स्थिति में आना शुभ एवं श्रेयस्कर है। आर्थिक बदहाली से ग्रस्त मालदीव को संकट से उबारने वाला देश भारत है।
मालदीव के राष्ट्रपति मोदी जी के आगमन पर माले हवाई अड्डे पर स्वयं अपने मंत्रिमंडल के सहयोगियों के साथ स्वागत किया जो मालदीव के मोदी जी के प्रति संसदीय शिष्टाचार को प्रस्तुत कर रहा है। उनका यह शिष्टाचार भारत विरोध के प्रति नरम नीति(Soft policy) का संकेत है। वैदेशिक संबंधों में कहा गया है कि राष्ट्रीय हितों के सापेक्ष वैदेशिक संबंध बदलते रहते हैं। मालदीव के राष्ट्रपति मुइज़्ज़ू ने मोदी जी का हृदय तल से आभार जताया एवं यह भी कहा कि “भारत मालदीव का सबसे करीबी पड़ोसी एवं विश्वसनीय मित्र हैं जो प्राकृतिक आपदा एवं महामारी जैसे संकटों में हमेशा खड़ा रहा है।”
इस अवसर पर भारत के लोकप्रिय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि” भारत को मालदीव का सर्वाधिक भरोसेमंद मित्र होने का गर्व है। हम मात्र पड़ोसी ही नहीं, बल्कि सहयात्री भी हैं।” उपर्युक्त सभी तथ्यों एवं कथनों का विश्लेषण करें तो स्पष्ट होता है कि भारत एवं मालदीव के बीच रिश्तों का बर्फ पिघल रहा है, एवं दोनों देश अपने आर्थिक, व्यापारिक, सामरिक एवं व्यवसायिक रिश्तो को मजबूत करना चाहते हैं।
भारत मालदीव के बदहाली के संकट के समाधान के लिए बेहद कम ब्याज दर पर 4850 करोड रुपए का आर्थिक सहयोग (लाइन आप क्रेडिट LOC )देने की घोषणा की है, इसके साथ ही वार्षिक कर्ज अदायगी को 40%( 5.1 करोड़ डालर से 2.9 करोड़ डॉलर) घटा दिया है। इससे मालदीव के आर्थिक बदहाली में राहत होगा । मालदीव एवं भारत के मध्य समुद्री क्षेत्र एवं सामरिक क्षेत्र में सहयोग के आसार बढ़े है।
मालदीव 1200 दीपों का समूह है। भौगोलिक रूप से मालदीव को संसार का सबसे बिखरा हुआ देश कहा जाता है। मालदीव की आबादी 5.21 लाख है। मालदीव ग्रेट ब्रिटेन (संयुक्त राज्य) से 1965 में स्वतंत्र हुआ था। 1968 में संवैधानिक रूप से इस्लामी गणतंत्र बना था। 2008 में इस्लाम मालदीव का राजकीय धर्म बना था। यह संसार का सबसे छोटा इस्लामिक देश है। 26 जुलाई, 2025 को मालदीव अपना 60वा स्वतंत्रता दिवस मना रहा था एवं भारत के प्रधानमंत्री श्रीमान नरेंद्र मोदी जी को मुख्य अतिथि के तौर पर आमंत्रित किया गया था।
मोदी जी की यह तीसरा मालदीव यात्रा है । मालदीव की सरकार’ भारत प्रथम’ की नीति पर चल रही थी, लेकिन श्री मुइज्ज़ू ने इस नीति को समाप्त करने का वादा किया था। 7.5 अरब डॉलर की अर्थव्यवस्था वाले द्वीपीय देश मालदीव को भारत ने डिफॉल्ट होने से बचाया, तब श्री मुइज्ज़ू ने भारत के प्रति अपना रुख बदला था। राष्ट्रपति बनने के पश्चात श्री मुइज्ज़ू ने तुर्किय,यूएई एवं चीन का दौरा किया था । इसके पश्चात भारत से कड़वाहट दूर करने का प्रयास किया था।
समसामयिक में सवाल है कि मालदीव को भारत एवं चीन इतना महत्व क्यों दे रहे हैं ?
मालदीव हिंद महासागर के बड़े समुद्री रास्ते पर अवस्थित है। हिंद महासागर में इन्हीं रास्ते से व्यापार होता है । खाड़ी के देशों खासकर तेल के देशों (Oil Countries) से भारत में ऊर्जा की आपूर्ति इसी रास्ते से होती है। ऐसी स्थिति में भारत का मालदीव से मधुर संबंध बनाए रखना समय की मांग है! इस विषय पर राजनीतिक विश्लेषक वीना सीकरी कहती है कि मालदीव एक मुख्य मैरिटाइम रूट है एवं वैश्विक बाजार में इसकी महत्वपूर्ण उपादेयता है। इसके आगे वीना सीकरी कहती हैं कि,” भारत के आर्थिक एवं राजनीतिक हितों के लिए यह रास्ता अति महत्वपूर्ण है। खाड़ी के देशों से भारत का ऊर्जा आयात हिंद महासागर से होता है। मालदीव से संबंध मधुर होना भारत की ऊर्जा सुरक्षा को सुनिश्चित करता है। भारत के मैरिटाइम सर्विलांस में भी मालदीव का सहयोग अति आवश्यक है। थिंक टैंक ORF के वरिष्ठ फेलो श्री मनोज जोशी का कहना है कि,” जहां मालदीव स्थित है, वहां महत्वपूर्ण समुद्री लेन हैं। यह लेन पर्शियन गल्फ से ईस्ट एशिया की ओर जाती है। भारत भी व्यापार में इस लेन का इस्तेमाल करता है।”
मालदीव भारत के बिल्कुल समीप है। भारत के लक्षद्वीप से 700 किलोमीटर दूर है एवं भारत के मुख्य भाग से 1200 किलोमीटर है। इस पर श्री मनोज जोशी का कहना है कि ,”अगर चीन ने मालदीव में नेवी बेस बना लिया तो यह भारत के लिए सुरक्षा चुनौती पैदा करेगा। मालदीव में चीन मजबूत होता है तो युद्ध जैसे हालात में उसके लिए भारत पहुंचना आसान हो जाएगा। चीन का मालदीव में कई आर्थिक प्रोजेक्ट है। चीन के बारे में कहा जाता है कि वह मालदीव में नेवी बेस बनाना चाहता है। ऐसे वातावरण में भारत का सतर्क, चौकन्ना एवं सक्रिय रहना लाजमी है।”
इस पर श्री मनोज जोशी आगे कहते हैं” मालदीव भारत के लिए वर्तमान में भी चुनौती है। मोदी जी को मालदीव आमंत्रित किया है लेकिन राष्ट्रपति मुइज्जू ने आर्थिक मजबूरी में ऐसा किया है। मालदीव का जनमत सामयिक परिदृश्य में भी भारत के विरोध में है एवं राष्ट्रपति मुइज्जू इसी का फायदा उठाकर जीते थे। राष्ट्रपति मुइज्जू ने मजबूरी में भारत से संबंध सामान्य किए हैं ना कि वह ऐसा चाहते थे।” सामयिक परिदृश्य में मालदीव ने चीन के साथ फ्री ट्रेड एग्रीमेंट( FTA )किया है। वह चीन के महत्वकांक्षी परियोजना सिल्क बेल्ट एवं रोड का भी प्रबल समर्थक है। मालदीव के आयात में भारत एवं चीन की हिस्सेदारी सन 2014 में क्रमशः 8.6 % एवं 5.3 % थी, वही 2023 में बढ़कर 15.6 % एवं 11.6 % हो चुकी है। मालदीव में चीन अपनी मौजूदगी मजबूत करता है तो भारत के लिए रणनीतिक नुकसान है। हिंद महासागर में चीन को प्रति संतुलित करने के लिए मालदीव से मधुर संबंध अति आवश्यक है । भारत ने मालदीव के कई परियोजनाओं में निवेश किया हैं.
चीन मालदीव में 20 करोड डॉलर का “चीन- मालदीव फ्रेंडशिप ब्रिज” बना रहा है। कई राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि मालदीव में चीन की बढ़ती भूमिका भारत के सुरक्षा के लिए चुनौती है। वर्ष 2024 में श्री मुइज्ज़ू ने चीन का दौरा किया था एवं दोनों देशों ने 20 समझौतों पर हस्ताक्षर किए थे । थिंक टैंक अनंत सेंटर के मुख्य कार्यकारी अधिकारी इंद्राणी बागची कहती हैं कि,” मालदीव भारत के लिए अहम है क्योंकि वहां पर भारत विरोधी( एंटी इंडिया) भावना अब भी है।” इंद्राणी बागची कहती हैं कि,” मालदीव भारत से लगाव नहीं करेगा लेकिन सुरक्षा चुनौती न बने, इसे सुनिश्चित करना होगा।”
भारत ने मालदीव की दयनीय दशा को बखूबी भांपते हुए अपने उदार व्यक्तित्व से सिद्ध किया है कि भारत की दक्षिण एशिया में भूमिका” बड़े भाई” की हैं जो ना केवल प्राकृतिक आपदा में काम आता है, अपितु राष्ट्रीय आपदा से भी निजात दिलाने की मंशा एवं धारिता रखता है। मोदी जी की मालदीव यात्रा के पश्चात पुनः मालदीव में पर्यटक भेजने वाला भारत अव्वल देश हो सकता है। पर्यटन के माध्यम से लोगों के बीच मेल – मिलाप एवं सांस्कृतिक संबंध प्रगाढ़ होने से कूटनीतिक नेतृत्व का उन्नयन होता है। भारत ने शांति, धैर्य, सहनशीलता एवं बड़े भाई की भूमिका से काम लिया है । इसी के कारण मालदीव में संबंध सामान्य हो रहे है।
भारत एवं मालदीव के मध्य संबंधों को सामान्य बनाने के लिए निम्न सुझाव है:-
1).सरकार के साथ नागरिकों से भी संबंध बढ़ाना चाहिए ;2). इंफ्रास्ट्रक्चर, प्रोजेक्ट एवं आर्थिक सहयोग से द्विपक्षीय संबंधों को मजबूत करना होगा; 3). कूटनीतिक एवं राजनयिक पहल से संबंधों को मजबूत करना होगा ; 4).भारत एवं मालदीव के साथ सहानुभूति पूर्वक सहयोग करें एवं ऐसे विकल्प प्रस्तुत करें जो चीन की तुलना में भरोसेमंद के साथ – साथ विश्वशनीय हो; एवं 5). विकास एवं स्थिरता के लिए दोनों देश द्विपक्षीय निवेश करें।
डॉ.बालमुकुंद पांडेय