रामस्वरूप रावतसरे
जगदीप धनखड़ ने उपराष्ट्रपति पद से अचानक इस्तीफा दे दिया। उन्होंने अपने इस्तीफे में सेहत का हवाला दिया है। सोमवार को मानसून सत्र का पहला दिन था। मानसून सत्र पहले दिन वह एक्टिव दिखे। पूरे दिन सदन को अच्छे से चलाया भी। मगर अचानक शाम को ऐसा क्या हुआ कि जगदीप धनखड़ ने इस्तीफा दे दिया? उनके इस्तीफे के पीछे सच में सेहत है या कोई सियासत? दरअसल, जगदीप धनखड़ के इस्तीफे की टाइमिंग को लेकर सवाल उठ रहे हैं। विपक्ष से लेकर तमाम लोगों को उनके अचानक इस्तीफे की बात पच नहीं रही। ऐसा नजारा शायद ही कभी देखने को मिला हो कि पहले दिन का सत्र चलाने के बाद किसी उपराष्ट्रपति ने इस्तीफा दिया हो।
जानकारों के अनुसार अगर उन्हें अपनी सेहत की चिंता थी तो संसद के मानसून सत्र से पहले भी दे सकते थे? उन्होंने अगर अपना इस्तीफा देने का मन बना भी लिया था तो उन्होंने मानसून सत्र का पहला दिन ही क्यों चुना? इस इस्तीफे के पीछे सच में सेहत है या कोई सियासत? कांग्रेस का मानना है कि उपराष्ट्रपति धनखड़ स्वस्थ हैं। कांग्रेस के अखिलेश प्रसाद सिंह, प्रमोद तिवारी और जयराम रमेश ने उपराष्ट्रपति से सोमवार की शाम 5.45 बजे जगदीप धनखड़ से मुलाकात की थी। उनके अनुसार उपराष्ट्रपति स्वस्थ थे। विपक्ष के इस दावे से भी सवाल उठ रहे हैं। जगदीप धनखड़ के सेहत वाले दावे पर कई विशेषज्ञ और विपक्षी नेता संदेह जता रहे हैं। दरअसल, जगदीप धनखड़ ने इस्तीफे से कुछ घंटे पहले ही विपक्षी सांसदों के साथ मुलाकात की थी और संसद की कार्यवाही का संचालन किया था। इस दौरान उन्होंने स्वास्थ्य संबंधी कोई शिकायत नहीं जताई थी। उनका अचानक इस्तीफा सिर्फ स्वास्थ्य कारणों तक सीमित नहीं लगता! वहीं, कुछ नेताओं ने अटकलें लगाईं कि यह शीर्ष नेतृत्व के साथ किसी टकराव का नतीजा हो सकता है। सवाल उठ रहे हैं कि सोमवार शाम 6-7 बजे तक जगदीप धनखड़ एकदम एक्टिव थे। मगर अचानक तीन घंटे में क्या हुआ कि इस्तीफा देना पड़ा?
अगर सेहत ही असल कारण होता तो उन्होंने संसद सत्र से पहले ही इस्तीफा क्यों नहीं दिया? जगदीप धनखड़ ने इस्तीफे के लिए स्वास्थ्य कारण बताया, लेकिन उसी दिन वह संसद में सक्रिय थे और कोई स्वास्थ्य समस्या नहीं जताई। उनकी सेहत अगर सच में अधिक खराब थी तो वह पूरे दिन इतने एक्टिव कैसे दिखे? अगर उनका फैसला पूर्वनियोजित था तो उन्होंने संसद सत्र में इशारा क्यों नहीं दिया? जगदीप धनखड़ का 23 जुलाई को दौरा प्रस्तावित था। इसका मतलब है कि यह सब अचानक यूं ही नहीं हुआ? क्या सरकार के साथ किसी मसले पर टकराव वजह था? क्या किसानों के मुद्दे पर धनखड़ सरकार से नाराज थे?
बहरहाल, धनखड़ के इस्तीफे के बाद आगे संसद सत्र कैसा रहेगा, इस पर भी सबकी नजरें होंगी। जगदीप धनखड़ की उम्र 74 साल है। धनखड़ ने अगस्त 2022 में उपराष्ट्रपति का पद संभाला था, और उनका कार्यकाल 2027 तक था। इससे पहले वह पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहे थे। उनके कार्यकाल में उनके बेबाक बयानों और विपक्ष के साथ तनाव ने कई बार सुर्खियां बटोरीं। विपक्ष ने उन पर राज्यसभा में पक्षपात का आरोप भी लगाया था। फिलहाल, उन्होंने दो साल कार्यकाल रहते हुए इस्तीफा दिया है। अब नजरें इस बात पर हैं कि अगला उपराष्ट्रपति कौन होगा? भारत संविधान के अनुसार, 60 दिनों में नए उपराष्ट्रपति का चुनाव होना अनिवार्य है। तब तक राज्यसभा के उपसभापति हरिवंश नारायण सिंह कार्यवाहक सभापति की जिम्मेदारी संभालेंगे। जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने न केवल राजनीतिक चर्चाओं को हवा दी है, बल्कि संसद सत्र के संचालन पर भी सवाल खड़े किए हैं।
इस बीच सोशल मीडिया पर जम्मू-कश्मीर के उपराज्यपाल मनोज सिन्हा, नीतीश कुमार के साथ ही राजनाथ सिंह का भी नाम सामने आ रहा है। इन नामों की चर्चा के पीछे लोगों के अपने-अपने तर्क हैं। कई लोगों का मानना है कि यूपी के मद्देनजर भाजपा की तरफ से मनोज सिन्हा को यह बड़ी और अहम जिम्मेदारी दी जा सकती हैं। वहीं, बिहार चुनाव के मद्देनजर भाजपा राज्य में अपना मुख्यमंत्री बनाने की एवज में नीतीश कुमार को यह पद ऑफर कर सकती है।
साल 1951 में राजस्थान के झुंझुनू जिले में जन्मे धनखड़ एक किसान परिवार से हैं। उन्होंने 1979 में राजस्थान बार में दाखिला लिया। सुप्रीम कोर्ट और विभिन्न उच्च न्यायालयों में राज्य के सीनियर अधिवक्ता के रूप में अभ्यास किया, और राजस्थान उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के अध्यक्ष के रूप में सेवा की। 1990 के दशक में राजनीति में प्रवेश करते हुए वह जनता दल के साथ झुंझुनू से लोकसभा सांसद चुने गए और चंद्रशेखर सरकार में संसदीय मामलों के राज्य मंत्री के रूप में सेवा की। वह 2003 में भाजपा में शामिल हो गए। 2019 में उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल नियुक्त किया गया, जहां उनका ममता बनर्जी सरकार के साथ अक्सर टकराव होता रहा।
जगदीप धनखड़ 2022 में भारत के 14वें उपराष्ट्रपति चुने गए। उन्होंने 11 अगस्त 2022 को पद की शपथ ली। उनके नेतृत्व को दृढ़ता और कभी-कभी पक्षपातपूर्ण दृष्टिकोण के लिए जाना गया। इसके कारण दिसंबर 2024 में विपक्षी दलों की ओर से एक अभूतपूर्व महाभियोग प्रस्ताव दायर किया गया। जगदीप धनखड़ ने विपक्ष के इस कदम से गहरी निराशा व्यक्त की। उन्होंने कहा कि वह आहत महसूस कर रहे हैं। कुछ विपक्षी सांसदों जैसे कि कल्याण बनर्जी ने संसद के गेट पर धनखड़ की नकल की, जिससे उनके विपक्ष के साथ विवादास्पद संबंध उजागर हुए।
धनखड़ जब उपराष्ट्रपति चुने गए थे तब राजनीति के जानकारों ने इसे भाजपा की देशभर के जाट समुदाय को साधने की रणनीति बताया था। अब चूंकि धरखड़ ने इस्तीफा दे दिया है और वह स्वीकार भी हो गया है तो अब सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज हो गई है कि क्या अब भाजपा जाट समुदाय को फिर से किस तरीके साधेगी।
देश की शीर्ष संवैधानिक कुर्सियों में से एक पर आसीन उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के इस्तीफे ने न सिर्फ राष्ट्रीय राजनीति बल्कि राजस्थान की जाट राजनीति में भी नई सरगर्मी पैदा कर दी है। इसका असर सिर्फ दिल्ली की सत्ता तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि इससे राजस्थान की सियासी बिसात पर भी पड़ने के आसार हैं। धनखड़ एक अनुभवी वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री रह चुके हैं। वे जाट समाज का बड़ा कद्दावर चेहरा हैं। राजनीति के जानकार मानते हैं कि धनखड़ के इस्तीफे की पूर्ति प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से होना भाजपा के लिए परेशानी भरा हो सकता है।
धनखड़ लंबे समय से भारतीय जनता पार्टी से जुड़े हैं और 2019 से 2022 तक पश्चिम बंगाल के राज्यपाल भी रहे हैं। लेकिन इन सबसे बड़ी बात यह है कि धनखड़ राजस्थान के झुंझुनूं जिले से आते हैं और एक प्रभावशाली जाट नेता हैं। उनका नाम जाट समुदाय के बीच न केवल लोकप्रियता के लिए जाना जाता है, बल्कि वे उस नेतृत्व शून्यता को भरने वाले चेहरों में से एक हैं जो पिछले कुछ वर्षों में राज्य में नजर आया है। राजस्थान की राजनीति में जाट समुदाय एक बड़ा वोट बैंक है। खासकर पश्चिमी राजस्थान में। अब तक जाट वोट बैंक पारंपरिक रूप से कांग्रेस की ओर झुका हुआ माना जाता रहा है। खासकर अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री भैरोंसिंह शेखावत के दौर में। लेकिन हाल के वर्षों में भाजपा की तरफ से कोई बड़ा जाट चेहरा न होने से यह वर्ग राजनीतिक रूप से अनिर्णीत सा रहा है। बाद में धनखड़ भाजपा में बड़ा चेहरा बनकर उभरे। अब उनके इस्तीफे से राजस्थान की जाट राजनीति में हलचल है।
धनखड़ का इस्तीफा एक संवैधानिक प्रक्रिया भर नहीं, बल्कि भविष्य के राजनीतिक संकेतों से जुड़ा घटनाक्रम है। स्वास्थ्य कारणों का हवाला भले ही औपचारिक हो, लेकिन इसके पीछे छिपे राजनीतिक संदेश, संस्थागत समीकरण, और शासन तंत्र में बदलाव की बयार को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
रामस्वरूप रावतसरे