राजेश कुमार पासी
बार-बार मोदी सरकार की तरफ से यह बयान आता रहता है कि ऑपरेशन सिंदूर जारी है, सिर्फ उसे रोका गया है । सवाल यह है कि बार-बार मोदी सरकार के मंत्री और नेता ऐसा बयान क्यों दे रहे हैं । इसकी वजह यह है कि सिंधु जल समझौता निलंबित करना भी ऑपरेशन सिंदूर का हिस्सा है और ये लगातार जारी है । इस समझौते को निलंबित करने से पाकिस्तान बहुत परेशान है इसलिए उसके नेताओं के बयान आ रहे हैं कि अगर भारत ने पाकिस्तान की नदियों का पानी रोका तो पाकिस्तान युद्ध के लिए मजबूर हो जायेगा । भारत सरकार ने पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से बता दिया है कि जब तक पाकिस्तान की तरफ से आतंकवाद पर लगाम नहीं लगाई जाती, तब तक इस समझौते पर कोई बात नहीं होगी । पाकिस्तान सिंधु जल समझौते को बहाल करने के लिए विभिन्न देशों से गुहार लगा रहा है लेकिन भारत इस मुद्दे पर किसी की सुनने को तैयार नहीं है । अमेरिका और चीन भी इस मुद्दे पर पाकिस्तान के किसी काम नहीं आ रहे हैं । शनिवार को गृहमंत्री अमित शाह ने बयान दिया है कि भारत सिंधु जल समझौते का निलंबन अब वापिस नहीं लेगा । उन्होंने इशारा कर दिया है कि भारत इस समझौते को हमेशा के लिए रद्द करने जा रहा है । इससे पूरा पाकिस्तान बौखला गया है । पाकिस्तान के नेता बिलावल भुट्टो ने बयान दिया है कि अगर भारत पाकिस्तान को पानी नहीं देता है तो पाकिस्तान भारत से जंग करेगा और तीन नहीं बल्कि छह नदियों का पानी हासिल कर लेगा ।
सिंधु जल समझौता विश्व बैंक की मध्यस्थता से भारत और पाकिस्तान के बीच सिंधु नदी और उसकी सहायक नदियों के पानी के बंटवारे को लेकर किया गया था । 19 सितम्बर 1960 को कराची में प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने इस समझौते पर हस्ताक्षर किये थे । इस समझौते के तहत सिंधु नदी और उसकी पांच सहायक नदियों सतलुज, ब्यास, रावी, झेलम और चिनाब के पानी को लेकर दोनों देशों ने एक व्यवस्था तैयार की थी । इस समझौते के तहत दोनों देशों ने आपसी सहयोग और सूचना का आदान-प्रदान करने की बात कही थी । इस समझौते के अनुसार सतलुज, ब्यास और रावी का पानी भारत को आवंटित कर दिया गया था और पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब नदी का 80 प्रतिशत पानी आवंटित किया गया था । देखा जाये तो यह समझौता पूरी तरह से पाकिस्तान के पक्ष में था और भारत को इसका बड़ा नुकसान हुआ ।
वास्तव में भारत को जिन नदियों का पानी दिया गया उनका पाकिस्तान से कोई सम्बन्ध नहीं था । भारत में ही बहने वाली नदियों का पानी भारत को इस्तेमाल करने के लिए किसी समझौते की जरूरत नहीं थी । जो नदियां भारत की थी, उनका इस्तेमाल तो भारत को ही करना था । समझौता मुख्य रूप से सिंधु, झेलम और चिनाब नदी को लेकर किया गया था । सवाल यह है कि जिन नदियों पर भारत-पाकिस्तान का सांझा अधिकार था, वहां भारत के अधिकार की अनदेखी करते हुए तत्कालीन नेहरू सरकार ने 80 प्रतिशत पानी को पाकिस्तान के हवाले क्यों कर दिया । जब यह समझौता किया गया तो भारत में इसका जबरदस्त विरोध हुआ था लेकिन नेहरू जी ने किसी की नहीं सुनी ।
वास्तव में नेहरू जी चाहते थे कि पड़ोसी देश होने के कारण पाकिस्तान के साथ बेहतर संबंध बने रहे, इसलिए उन्होंने यह समझौता किया । वो शायद सोच रहे थे कि पाकिस्तान को फायदा पहुंचा कर उसे खुश कर देंगे और वो भारत के साथ बेहतर संबंध रखेगा । यही सोच उनकी चीन को लेकर भी थी. उसे उन्होंने संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद की स्थायी सीट थाली में सजाकर दे दी थी । जब अमेरिका द्वारा यह सीट भारत को देने की पेशकश की गई तो उन्होंने चीन को इसके लिए ज्यादा योग्य माना और उसके लिए सिफारिश कर दी । आज भारत इस सीट को पाने के लिए गली-गली भटक रहा है । चीन को खुश करने के लिए ही नेहरू जी ने उसे तिब्बत पर कब्जा करने दिया ताकि वो खुश रहे लेकिन उस चीन ने भारत पर आक्रमण करके भारत की जमीन पर भी कब्जा कर लिया । ऐसे ही सिंधु जल समझौते के तहत भारत ने सांझी नदियों का 80 प्रतिशत पानी पाकिस्तान को दे दिया । हैरानी की बात यह है कि भारत ने अपने हिस्से का 20 प्रतिशत पानी भी पाकिस्तान की तरफ जाने दिया । इसके बावजूद पाकिस्तान ने समझौता होने के बाद भारत पर तीन बार युद्ध थोप दिया है ।
इसके अलावा पाकिस्तान पिछले 45 सालों से भारत को आतंकवाद की आग में जला रहा है । पंजाब में ऐसी आग लगाई कि वो भारत से अलग होते-होते बचा । पाकिस्तान की लगाई आग में जम्मू-कश्मीर अभी तक जल रहा है । इसके अलावा पाकिस्तान भारत के शत्रु राष्ट्रों के साथ मिलकर नई-नई साजिशें करता रहता है । हम अपनी तरफ से इस समझौते का पूरा पालन करते आ रहे हैं लेकिन पाकिस्तान ने इस समझौते का कभी पालन नहीं किया । इस समझौते का आधार ही यही था कि दोनों देश आपस में प्रेम पूर्वक रहेंगे । पाकिस्तान ने इन नदियों के पानी पर अपना पूरा हक मान लिया है इसलिए उसे लगता है कि वो कुछ भी करता रहे, भारत इस समझौते से पीछे हटने वाला नहीं है । इसकी वजह शायद यह है कि तीन युद्धों के अलावा उसके द्वारा फैलाये जा रहे आतंकवाद को अनदेखा करते हुए हम इस समझौते का पालन पूरी ईमानदारी से करते आ रहे हैं । एक सच यह भी है कि इतना पुराना समझौता दो देशों के बीच नहीं टिकता. 65 साल बाद इस समझौते पर दोबारा विचार करने की जरूरत तो वैसे भी महसूस की जा रही थी। मोदी सरकार पाकिस्तान को इस बारे में कई बार सूचित कर चुकी है।
2014 के बाद मोदी सरकार के सत्ता में आने से माहौल बदल गया है । 2016 में उरी में आतंकवादी हमले के बाद ही मोदी जी ने पाकिस्तान को चेतावनी दे दी थी कि अगर पाकिस्तान नहीं संभला तो इस समझौते पर भारत सरकार पुनर्विचार कर सकती है । मोदी सरकार अच्छी तरह जानती थी कि इस समझौते का ज्यादा दिनों तक पालन करना संभव नहीं है, इसलिए इन नदियों का पानी भारत लाने की तैयारी 2016 के बाद से ही शुरू कर दी गई थी । 22 अप्रैल 2025 को पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले एक दिन बाद भारत सरकार ने इस समझौते को निलंबित करने का ऐलान कर दिया था और अभी तक उस पर कायम है । पाकिस्तान को लगा कि भारत के पास पानी रोकने की कोई व्यवस्था नहीं है इसलिए वो चुप रहा । अब उसे धीरे-धीरे पता चल गया है कि भारत इस समझौते को रद्द करके उसे बर्बाद करने की पूरी तैयारी कर चुका है । बेशक हमारे पास आज पानी को रोकने की पूरी व्यवस्था नहीं है लेकिन हम पानी को रोक कर अपनी मर्जी से पाकिस्तान में भेज सकते हैं । हम पाकिस्तान को तब पानी नहीं देंगे जब उसको जरूरत होगी और जब देंगे तो इतना देंगे कि वहां बाढ़ आ जाएगी ।
इसके अलावा भारत सरकार ने इन नदियों के पानी का बड़ा हिस्सा भारत में लाने की तैयारी शुरू कर दी है । इसमें कुछ समय लगने वाला है लेकिन जब यह काम हो गया तो पाकिस्तान पानी-पानी चिल्लाने लगेगा । भारत सरकार जानती है कि पाकिस्तान सीधा होने वाला नहीं है इसलिए भारत सरकार अपने काम में जुट गई है । संयुक्त राष्ट्र में भी भारत ने स्पष्ट कह दिया है कि खून और पानी साथ-साथ नहीं बह सकते । भारत ने पूरी दुनिया को स्पष्ट रूप से समझा दिया है कि पाकिस्तान नहीं सुधरा तो संधि टूट जायेगी और इसकी पूरी जिम्मेदारी पाकिस्तान की होगी । जब इस समझौते के बारे में पूरे देश को पता चल गया है तो मोदी सरकार के लिए भी अब पीछे हटना मुश्किल हो गया है । देश की जनता हैरान है कि ये समझौता क्यों किया गया । सिंधु जल समझौते से मिलने वाला पानी पाकिस्तान के लिए बहुत जरूरी है, इसलिए उसे भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना चाहिए लेकिन पाकिस्तान ऐसा करने वाला नहीं है । वो भारत को दुश्मन मानता है इसलिए अभी भी वो लड़ने की बात कर रहा है जबकि अभी-अभी वो बुरी से भारत से जंग हार चुका है । हैरानी की बात है कि जिस देश ने घुटनों के बल बैठकर युद्ध-विराम की भीख मांगी हो, वही देश अभी भी युद्ध की धमकी देकर अपनी बात मनवाना चाहता है । मोदी सरकार पाकिस्तान के प्रति बेहद सख्त रुख अपना चुकी है और अब वो बातचीत के लिए भी तैयार नहीं है । मोदी जी ने कहा है कि अब सिर्फ आतंकवाद पर बात होगी । उन्होंने कहा है कि इसके अलावा सिर्फ पाक अधिकृत कश्मीर पर बात होगी । पाकिस्तान से पानी और व्यापार के सम्बन्ध में कोई बात नहीं होगी ।
अमित शाह ने सही कहा है कि भारत सरकार अब समझौते का निलंबन वापिस लेने वाली नहीं है । इसका सीधा मतलब निकलता है कि जल्दी ही भारत सरकार इस समझौते को सदा के लिए रद्द करने की घोषणा कर सकती है । मेरा मानना है कि पाकिस्तान के पास अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है. वो अगर अभी भी सुधर जाता है तो भारत से इस समझौते के तहत कुछ हासिल कर सकता है । अगर भारत ने इन नदियों का पानी अपने देश में लाने का प्रबन्ध कर लिया तो भारत से पाकिस्तान को कुछ भी हासिल करना मुश्किल हो जायेगा ।
राजेश कुमार पासी