क्या ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’  विधेयक को लेकर सरकार असमंजस में है ?

रामस्वरूप रावतसरे

     वन नेशन वन इलेक्शन बिल को संसद में पेश करने को लेकर सरकार असमंजस में है। पहले रिपोर्ट आई कि सरकार की ओर से केंद्रीय कानून मंत्री अर्जुनराम मेघवाल सोमवार (16 दिसंबर) को इसे लोकसभा में पेश करेंगे हालाँकि, सोमवार को लोकसभा की संशोधित कार्य सूची में इस विधेयक का नाम शामिल नहीं किया गया है जबकि पहले इसे सूचीबद्ध किया गया था। वहीं, केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने इसकी जरूरत क्यों है, वो बताया है।

    अमित शाह ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ की वकालत की है। उन्होंने इससे संघीय ढाँचे को कमजोर करने के आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “वन नेशन वन इलेक्शन कोई नई बात नहीं है। साल 1952 का चुनाव एक साथ हुए थे। 1957 में आठ राज्यों की विधानसभाएँ भंग कर दी गईं ताकि अलग-अलग तारीख होने के बावजूद उनके एक साथ चुनाव कराए जा सकें। तीसरी बार भी यही प्रक्रिया अपनाई गई।”

  मीडिया के एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा केरल में सीपीआई (एम) सरकार को गिराने के बाद इसे रोक दिया गया था। इसके बाद इंदिरा गाँधी ने बड़े पैमाने पर सरकार गिराने की प्रथा अपनाई। यहाँ तक कि 1971 में सिर्फ चुनाव जीतने के लिए समय से पहले लोकसभा को भंग कर दिया गया था। यहीं से बेमेल शुरू हुआ और चुनाव अलग-अलग होने लगे। बिल को राष्ट्रपति चुनाव मॉडल बताने और इससे भाजपा को फायदा होने के आरोपों को अमित शाह ने खारिज कर दिया। उन्होंने कहा, “यह बिल्कुल गलत है। ओडिशा में विधानसभा चुनाव और लोकसभा चुनाव एक साथ कराए गए थे लेकिन भाजपा हार गई। साल 2019 में हमें पूरे देश में भारी जनादेश मिला लेकिन हम आंध्र प्रदेश में हार गए।” इस बिल को आधिकारिक रूप से संविधान (129वाँ संशोधन) विधेयक 2024 कहा जाता है।

    जानकारी के अनुसार केंद्रीय मंत्रिमंडल ने ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ विधेयक को मंजूरी दी है। इसे 16 दिसंबर को संसद में पेश करने की बातें सामने आ रही थीं। संसद का अंतिम सत्र 20 दिसंबर को चलेगा हालाँकि, इस सत्र में अब इसके पेश किए जाने को लेकर असमंजस की स्थिति बताई जा रही है। वहीं, विपक्षी दलों ने वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक का विरोध किया है और इसे संघीय ढाँचे के खिलाफ बताया है। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव ने कहा कि इस कानून के बन जाने से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को यह मौका मिल सकता है कि वह राज्यों और केंद्र की सरकारों को भंग कर दें और दोबारा चुनाव कराएँ। उन्होंने यह भी कहा कि इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री मोदी के जुमलों पर विश्वास नहीं करना चाहिए। वहीं, कॉन्ग्रेस सांसद सुखदेव भगत ने इसे देश के संघीय ढाँचे पर प्रहार बताया।

     इस विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 82ए (लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव) को शामिल करने और अनुच्छेद 83 (संसद के सदनों की अवधि), 172 (राज्य विधानसभाओं की अवधि) और 327 (विधानसभाओं के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति) में संशोधन करने का प्रस्ताव है। इस बिल में निम्नलिखित प्रावधान हैं-

     एक साथ चुनाव- विधेयक में संविधान के अनुच्छेद 82ए को शामिल किया गया है, जो ‘लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए एक साथ चुनाव’ की अनुमति देगा। इसमें एक साथ चुनाव को लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं के गठन के लिए आयोजित आम चुनावों के रूप में परिभाषित किया गया है। इस विधेयक में कहा गया है कि आम चुनाव के बाद लोकसभा की पहली बैठक की तारीख को जारी की गई ‘सार्वजनिक अधिसूचना’ द्वारा राष्ट्रपति इस अनुच्छेद के प्रावधानों को लागू करेंगे। अधिसूचना की तारीख को नियत तारीख कहा जाएगा। नियत तिथि (अधिसूचना की तिथि) के बाद और लोकसभा के कार्यकाल खत्म होने से पहले हुए गठित विधानसभाएँ लोकसभा के कार्यकाल के साथ ही खत्म हो जाएँगी।

   विधेयक का अनुच्छेद 82ए(3) विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। इसमें कहा गया है कि लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल की समाप्ति से पहले, चुनाव आयोग लोकसभा और सभी विधानसभाओं के लिए ‘एक साथ’ आम चुनाव कराएगा। संविधान के भाग एक्सवी(चुनाव) के प्रावधान उन चुनावों पर जरूरी परिवर्तनों के साथ लागू होंगे, जो आवश्यक हो सकते हैं और जिन्हें चुनाव आयोग आदेश निर्देश दे सकता है। जब विधानसभा के चुनाव स्थगित करने की आवश्यकता हो, विधेयक की धारा 82ए(5) में कहा गया है कि जब चुनाव आयोग की यह ‘राय’ हो कि किसी विधानसभा के चुनाव लोकसभा के आम चुनावों के साथ नहीं कराए जा सकते तो वह राष्ट्रपति को ये आदेश देने की सिफारिश कर सकता है कि उस विधानसभा के चुनाव बाद की किसी तिथि में कराए जा सकते हैं।

     विधानसभा का कार्यकाल लोकसभा के साथ ही समाप्त हो जाएगा, चाहे स्थगन हो या न हो, विधेयक में कहा गया है कि यदि विधानसभा का कार्यकाल स्थगित भी कर दिया जाता है तो संविधान के अनुच्छेद 172 में वर्णित किसी भी बात के बावजूद, पूर्ण कार्यकाल उसी तिथि को समाप्त होगा जिस तिथि को आम चुनावों में गठित लोकसभा का पूर्ण कार्यकाल समाप्त हुआ था।

     मध्यावधि चुनाव, अनुच्छेद 83 में खंड 3 से 7 को सम्मिलित करने का प्रस्ताव है, जो ‘मध्यावधि चुनाव’ के बारे में बात करता है। इसमें कहा गया है कि जब लोकसभा 5 वर्ष की पूर्ण अवधि से पहले भंग हो जाता है तो विघटन की तिथि और पूर्ण अवधि की समाप्ति के बीच की अवधि एक पूर्ण अवधि (जो पूरी नहीं हुई हो) होगी। बिल के अनुसार, विघटन के बाद मध्यावधि चुनाव होंगे और एक नई लोकसभा का गठन केवल अपूर्ण (पूर्ण अवधि के बीच बाकी बची) अवधि के लिए किया जाएगा। हालाँकि, गठित नई लोकसभा तत्काल पूर्ववर्ती लोकसभा की निरंतरता नहीं होगी। अनुच्छेद 172 में इन खंडों को सम्मिलित करके विधानसभाओं के लिए इसी तरह के मध्यावधि चुनाव प्रस्तावित हैं।

रामस्वरूप रावतसरे

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