
जिस दिन ईश्वर ने अपना वसीयतनामा
इंसान के नाम लिख दिया
इंसान ने खोद डाली सारी खदानें
सोना,चान्दी, हीरे-मौती
निकाल कर अपनी तिजौरी भर ली।
धरती की सारी सुरंगे
स्वार्थी इंसान ने खोज ली
और सारी तिजौरियों को
बहुमूल्य रत्न भण्डारों से भर ली।
उसने पहले नदियों के पानी को बेचा
नदियों के किनारों की रेत मिटटी को बेचा
वह अब जमीन के टुकड़े-टुकड़े बेच रहा है
वह हरे भरे पेड़-पौधों को बेच रहा है
वह जंगल-पहाड़ बेच रहा है
वह जिंदगी-मौत बेच रहा है
भगवान के मुफ्त दिये सारे उपहार
यह इंसान बेखौफ बेच रहा है।
ईश्वर की वसीयत इंसान को क्या मिली-
वह भूल गया है सारी इंसानियत
और सभी नदियो में सभी समुद्रो में
खुदकी नाव-जहाजें चलवाकर कमा रहा है।
आकाश में उड़ रहे है उसके विमान
वह कर रहा है देश का नेतृत्व
और उसके देश
प्रक्षेपात्र भेज रहे है अंतरिक्ष में।
इंसान इंसान ता न बन सका
पर वह व्यापारी बन गया है
और बेच रहा है
इस सृष्टि की सम्पूर्ण सम्पदा-
धरती,पहाड़ और आकाश
चन्द्रमा,सूर्य और प्रकाश
पद,प्रतिष्ठा और पदवी
मुक्ति,भोग और सादगी
इंसान ने धरती को
अपने कदमों में झुका लिया है।
ईश्वर की वसीयत पाकर
इंसान खुद को विलक्षण मान बैठा है
वह अपने मन में ईश्वर की
करूणा का अन्वेषण किये बिना
पीव अहंकार से भरा हुआ है
कि वह वसीयतकर्ता ईश्वर को
अब अपना नौकर रख सकता है।