
जबकि इसके ठीक विपरीत अमरीका में यह आलेख लिखे जाने तक (अमरीका के रात्री ढाई बजे तक) लादेन की हत्या का जश्न मनाया जा रहा है| वहॉं का राष्ट्रपति सार्वजनिक रूप से घोषणा कर रहा है कि उन्होंने जो कहा था, वह कर दिखाया| उन्होंने आतंकवाद के पर्याय लादेन को मार गिराया और साथ ही यह सन्देश भी दिया है कि जो कोई भी अमरीका के खिलाफ आँख उठाने या आँख दिखाने की कौशिश करेगा, उसका हाल सद्दाम और लादेन जैसा ही होगा|
हालांकि लादेन और सद्दाम की कोई तुलना नहीं की जा सकती, लेकिन अमरीका ने दोनों को ही पकड़ा और उड़ा दिया| सारे संसार में से किसी ने भी आवाज उठाने की हिम्मत नहीं की, कि सद्दाम को न्याय पाने के लिये राष्ट्रपति पद के अनुकूल निष्पक्ष प्रक्रिया का लाभ मिलना चाहिये था| अमरीका ने सद्दाम पर मुकदमा चलाने का भी मात्र नाटक ही किया था| अन्यथा अमरीका चाहता तो घटना स्थल पर भी उसे मार सकता था|
लादेन के मामले में अमरीका ने किसी की परवाह नहीं की और टीवी पर दिखाये जा रहे लादेन के चित्र से साफ दिख रहा है कि बहुत नजदीकी से लादेन की आँखों और ललाट पर गोली मारी गयी हैं| ऐसे लोगों से निपटने का सम्भवत: यही एक सही तरीका है| इसके विपरीत भारत अलर्ट जारी करके न जाने क्या दिखाना चाहता है|
भारतीय शासकों और हक्मरानों को अमरीका, चीन आदि देशों से आतंकवाद और भ्रष्टाचार के मामले में कुछ सबक लेने की जरूरत है| चाहे आतंकवादी कोई भी हो, उसे पकड़े जाने के बाद सच्चाई और षड़यन्त्र उगलवाये जावें और मुकदमा चलाकर वर्षों मेहननवाजी करने के बजाय, उनको ऊपर वाले की अदालत में भेज दिया जाये तो आतंकवादियों तथा उसे पनपाने वालों को सख्त सन्देश जायेगा|
परन्तु हमारे यहॉं तो कारगिल में सेना द्वारा घेर लिये गये पाकिस्तानी आक्रमणकारियों तक को भी सुरक्षित पाकिस्तान लौट जाने के लिये समय दिया गया| दिये गये समय में अपने साजो-सामान और भारतीयों को मारने के लिये लाये गये हथियारों सहित वापस नहीं लौट पाने पर, भारत की सरकार द्वारा फिर से समय बढाया गया और दुश्मनों को आराम से पाकिस्तान लौट जाने दिया गया| इसके बाद तत्कालीन भारत सरकार द्वारा भारतीस सेना के हजारों सिपाहियों की बलि देने के बाद, अपने इस शर्मनाक निर्णय को भी ‘‘कारगिल विजय’’ का नाम दिया गया|
चाहे संसद पर हमला करने वाले हों या मुम्बई के ताज पर हमला करने वाले| चाहे अजमेर में ब्लॉट करने वाले हों या जयपुर में बम धमाकों में बेकसूरों को मारने वाले हों| आतंकी चाहे गौरे हों या काले हों| इस्लाम को मानने वाले हों या हिन्दुत्व के अनुयाई| उनमें किसी प्रकार का भेद करने के बजाय, सभी के लिये एक ही रास्ता अख्तियार करना होगा| तब ही हम आतंकवाद पर सख्त सन्देश दे पायेंगे| बेशक आतंकी अफजल गुरू हो या असीमानन्द ये सभी नर पिशाच भारत के ही नहीं, बल्कि सम्पूर्ण मानवता के दुश्मन हैं| जिन्हें जिन्दा रहने का कोई हक नहीं है|
अमरीका पाकिस्तान में घुसकर लादेन को मार सकता है तो हम दाऊद को क्यों नहीं निपटा सकते? दाऊद तो पाकिस्तान में बैठा है, लेकिन कसाब, असीमानन्द, अफजल गुरू, प्रज्ञासिंह जैसों को तो हमने ही मेहमान बनाकर पाल रखा है| क्या हम फिर से किसी विमान अपहरण का इन्तजार कर रहे हैं, जब भारत का कोई मन्त्री विमान वापस प्राप्त करने के बदले में इन आतंकियों को छोड़ने का सौदा करके भारत का मान बढायेगा?
अब समय आ गया है, जबकि हमें अमरीका से सबक लेना चाहिये और कम से आतंकवाद के मामले में अमरीका की नीति और भ्रष्टाचार के मामले में चीन की नीति पर विचार किया जावे|
आदणीय श्री मधुसूदन जी, देश में आतंकवाद क्यों पैदा हो रहा है? इस पर कभी पूर्ण निष्पक्षता के विचार करें तो आपको सभी सवालों के जवाब मिल जायेंगे, लेकिन निष्पक्ष और संवेदनशील हृदय किसी भी बाजार में नहीं मिलता है! आतंकवादियों से निपटने के बारे में मेरे विचार क्या हैं, उन्हें आप यहॉं पर पढ चुके हैं! जो आप जैसी एकांगी विचारधारा का चश्मा लगाकर देखने वाले लोगों के गले नहीं उतरे|
लेकिन मेरे ये विचार भी आपको पचे नहीं, क्योंकि आपको गैर-हिन्दू आतंकी तो आतंकी नजर आते हैं, जबकि हिन्दू आतंकी तो बेचारे और देशभक्त नजर आते हैं|
हिन्दू आतंकियों के कृत्य तो गैर-हिन्दू आतंकियों के कृत्यों की प्रतिक्रिया में किये गये न्यायसंगत और पवित्र धार्मिक कार्य नजर आते हैं| आपको मैं प्रारम्भ से आदर और सम्मान की दृष्टि से देखता रहा और उन्हें निष्पक्ष विद्वान टिप्पणीकार मानता रहा, लेकिन ऐसी घटिया और आदिम युग की याद दिलाने वाल टिप्पणी पढकर मुझे अहसास हुआ है, मैं आपसे वैचारिक धोखा खाता आया हूँ| आपकी इस टिप्पणी से प्रमाणित हो गया कि आरएसएस और कट्टर हिन्दूवादी ताकतें फिर से इस देश पर ‘रामराज्य’ के बहाने ‘मनुवादी व्यवस्था’ लागू करने के लिये किस कदर लोगों के दिमांग पर कब्जा किये हुए हैं| उन्हें गैर-हिन्दू आतंकी तो आतंकी नजर आते हैं, लेकिन प्रज्ञासिंह, असीमानन्द और उनके साथी तो प्रक्रियावादी मासूम देशभक्त और हिन्दुधर्मरक्षक नजर आते हैं| जिसे वे किसी न किसी बहाने न्याय संगत ठहराने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते हैं|
मेरा आप जैसे लोगों से सीधा सवाल है कि संसार की कोई भी क्रिया पहली क्रिया नहीं होती है| एक गैर-हिन्दू आतंकी के कृत्य को उसकी पहली क्रिया मानकर, प्रतिक्रिया स्वरूप हिन्दू आतंकियों द्वारा हमला करके निर्दोष लोगों की जान लेना कतई न्यायसंगत नहीं है| हकीकत में गैर-हिन्दू आतंकी की वह कथित ‘क्रिया’ भी किसी अन्य की पूर्ववर्ती ‘क्रिया’ की ‘प्रतिक्रिया’ ही होती है|
इस प्रकार की प्रवृत्ति आदिम युग में तो ठीक मानी जा सकती थी, लेकिन सभ्य समाज में ऐसी बातों का कोई औचित्य नहीं है| हालांकि आप लोग जिस मनुवादी विचारधारा के पोषक हैं, वह आदिम युगीन और मानव मानव में भेद करने वाली व्यवस्था है| अत: आपको ऐसे तर्क सुहाते हैं|
इसलिए यहॉं पर एक सवाल प्रवक्ता के मार्फ़त और आतंकवादी पैदा करने वाले विचारों के जन्मदाताओं और समर्थकों से पूछा जाना प्रासंगिक है, कि जिन भूदेवों ने सम्पूर्ण स्त्री जाति, सम्पूर्ण दलित, सम्पूर्ण आदिवासियों और सम्पूर्ण पिछड़ों को हजारों साल तक अमानवीय, बल्कि पशुवत जीवन जीने को विवश किया है, क्या आपकी ‘‘जैसे को तैसा’’ नीति के अनुसार उनके साथ भी अब और आगे आने वाले हजारों सालों तक वैसा ही व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए?
सभी लादेन थोड़े ही है?
क्रिया पहले होती है| उस क्रिया की फिर प्रतिक्रिया होती है| भारतमें, पाकिस्तानी आतंककी प्रतिक्रिया हुयी, दोनों बराबर कैसे?
प्रश्न: कोई मुझे उत्तर दें, की पहले पाकिस्तानी आतंक शुरू ना होता, तो उसकी भारतीय प्रतिक्रिया होती क्या?
=अंधेर नगरी चौपट राजा | टके सेर भाजी, टके सेर खाजा|= या यह कहो ना, की सब घोड़े बारा टक्के|
Question : Action takes place first or reaction ? यह बताओ|
घटिया लेख और उससे भी घटिया लेखक