आत्माराम यादव पीव
जिन्दगी के 60 बसंत पंख लगाकर कब फुर्र से उड़ गए पता ही नहीं चला किन्तु एक पुराना वाकया याद आ गया जहा स्कुल से मिले चरित्र प्रमाणपात्र के बाद जीवन में पुलिस से प्रमाणित चरित्र प्रमाण पत्र माँगा गया, मैंने जबाव दिया की जब बिना चरित्र के अब तक गुजर गई तब वे पुलिस वाले जो खुद चरित्रहीन है वे कैसे और क्यों मेरे चरित्र की गारंटी लेंगेl चरित्र मेरा है इसलिए अपने चरित्र की गारंटी मैं खुद ले सकता हूँ, पुलिसवाले गारंटी दे यह बात गले नहीं उतरी थीl मेरे चरित्र के विषय में 100 प्रतिशत गारंटी मेरी मान्य होने चाहिए वाकी जो घटिया चरित्र को छुपाकर में अपने घर परिवार या बाल सखा आदि के साथ रहता हूँ वे मेरे सच्चे मित्र होने के साथ मेरे सुख दुःख के साथी भी है l मेरे विषय में मेरे मोहल्ले पड़ोस या साथ रहने वाले फिफ्टी फिफ्टी मेरे चरित्र का प्रमाण दे तो समझ आती है किन्तु जो पुलिस मुझे न जानते समझते मेरे चरित्र की गारंटी ले तो वैसी ही बात होगी जैसे आज महंगाई ढीठ- हरजाई-जैसी प्रेमिका के रूप में सोने की कीमतों को आसमान पर बिठाले है, भला सोने के उतार चढ़ाव को यह बाजार क्या जाने, जब बाजार भावों को नहीं समझ सकता तो पुलिस जो कहीं भी मेरे न तो आगे है और न पीछे है वह चरित्र की गारंटी कैसे ले सकती है? जरा विचार कीजिये मैं जीवन में कुछ बनना चाहता हूँ किन्तु न तो सरकार बनाने को तैयार है और न ही इस देश में एसी व्यवस्था है की लाखों रूपये की इंजीनियर, ला, प्रोफ़ेसर आदि की डिग्री लेने के बाद आप इंजीनियर, जज या कोई पद पर जा सकेl
देश में लाखो डिग्रीधारी है वे अपना चरित्र निर्माण कर समाज के समक्ष डाक्टर, इंजीनियर,जज,प्रोफेसर, वैज्ञानिक बनना चाहते है किन्तु आखिर में वे सारे डिग्रीधारी किसी सरकारी आफिस में बाबू, चपरासी या ड्रायवर बनकर संतुष्ट कर लेते है, जो ये नहीं बन सकते वे दाल रोटी के चक्कर में भागे भागे फिरते है, उनके पास काम नहीं है बस हाथ में कीमती मोबाईल थमा दिया है वे दो मिनिट का समय भी फुर्सत में नही होते किन्तु वे कोई छोटी मोटी कमाई कर नहीं कर रहे होते और मोबाईल में डूबे होते हैl अब इनका चरित्र कैसे बनेगा, ये लोग क्या होंगे, क्या ये अपने घर के प्रति परिवार के प्रति या समाज के प्रति अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन करेंगे इसकी गारंटी नही ली जा सकती है, असल में यह महामारी लगाकर सरकार भी निश्चिंत है और सरकार जानती है की जब तक मोबाईल का नशा टूटेगा तब तक ये युवा से बूढ़े हो चुके होंगे और फिर इनमें वह ताकत नहीं बचेगी जो विद्रोह कर सके? इनके चरित्र को लेकर अगर पुलिस इन्हें प्रमाण पत्र दे तो चोर चोर मोसेरे भाई के बीच चरित्र चित्रण होगाl मोबाईल में डूबी शिक्षित पीढ़ी और अशिक्षित युवा की चिंता बैलंस की होती है और अनेक युवती सोशलमिडिया पर दोस्त बनाये युवाओं को बेलेंस डलवाने के लिए फांस नही सकती किन्तु कुछ प्रौढ़ या बूढ़े मिल जायेंग जिसे वे जानू कहकर पुचकारते हुए बेलेंस डलवाने मे जंग जीत चुकी होती हैl इस प्रकार के प्रोढ़ आये दिन अपने अनुभव सुनाकर मुसकरा जाते है और एक जुए की तरह वे फिर जानू कहने वाली की दीदार में लुटने को तैयार होता है किन्तु जैसे ही उसे पता चलता है की वह लड़की नहीं कोई लड़का है जो लड़की की आईडी से उसका चरित्र ख़राब करने पर लगा है तब वह उस युवा के खौफ से खुद की एक गलती पर मोबाईल सिम बंद न किये जाने तक तबाह होते रहता है और उसके चरित्र में आई गिरावट के लिए वह प्रेम के जाल में खुद को फ़साने से लेकर माया-मोह के बंधन से खुदको मुक्त करने पर फिर चरित्र निर्माण मे लग जाते हैl
सोसलमिडिया से हटकर जो पुराने सिद्धांतवादी है जिन्हें आप लकीर के फ़क़ीर कह सकते है वे अपने चरित्र निर्माण के लिए पहले से ही अच्छी पुस्तकें रखते है जिनमें उनके प्राण बसते है, जो प्रेरणास्रोत होती हैl इसी क्रम में मैं भी अपने शो-केस के राजमहल में क़ानूनी ही नही अपितु साहित्यिक पुस्तकों का निवास बना चूका हूँl जहा पुस्तकालय का भंडार होता है वहां नजर डालते ही अनेक लोग आभासित करते है की इन पुस्तकालय के असली मालिक की आग्नेय दृष्टि बुलडाग-जैसी-पीछे करती है। भले इनके यहाँ खाने पीने के लिए तंगहाली नृत्य करती हो किन्तु अपने अभाव को भी ये अपना मित्र बना लेते है और आसमान छूती इस महँगाई से ये बेइन्तहा प्यार करते है जबकि इन्हें पता होता है की यह प्यार इनके मान सम्मान को डुबो चूका हैl ऐसे में कबीर बड़ा सहारा देते हैं। सोचता हूँ कि ‘पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ’ बाली श्रेणी में अपने को गिनाना मेरे-जैसे ‘विद्वान’ के योग्य नहीं है। अतः केवल ढाई अक्षर पढ़कर पंडित बनने के मोके खान-पान के मामले में अवधूत दत्तात्रेय का “प्रागवृत्येव संतुष्ये…” अपना सिक्का जमा चुका है। मात्र जीवन धारण के लिए भोजन होता है। स्वाद का मोह अनायास छूट गया है।
आज पानी दूध के भाव बिक रहा है, लोग बिसलरी पानी पीते पीते कभी बुद्ध न बन जाए यह बात उन लोगो की पत्नियों को चिंता में डाले हुए है की कही उनका पति इतना महंगा पानी पीकर कही अपना मन परिवर्तित कर उन्हें और बच्चों को छोड़ न जाए तब वह यशोधरा की तरह कोई राजकुमारी या राजरानी तो नहीं जो वह यह सदमा झेल सके? आज बाजार में कुल्लड़ों में गुड की चाय का चलन हो गया है, और वह चाय जो बिना दूध की है किन्तु पानी बिसलरी बोतल का नहीं सरकारी नल का फ्री का पानी इस्तेमाल हो रहा हैl पानी के दाम दूध से ज्यादा होने के बाबजूद पत्नी कभी गाय पालकर ग्वाला होने का धर्म निभाने का सोचती है तो कभी अलमारी में रखी महात्मा गांधी के चरित्र निर्माण में बकरी के दूध के फायदे जानकार गांधीवादी विचार से बकरी पालने का मन बनाकर असमंजस में है गाय पालू या बकरी? उसने गीता भी पढ़ी तब गीता से ‘शुनिश्चैव श्वपाके च याद आया। पत्नी के मन ने उसी ऊँचाई से उसे पुकारकर कहा – “सब जीव सामान हैं।” गाय पालने और बकरी पालने की बात इस पांडित्य वचन की आड़ में लेकर पत्नी ने निर्णय लिया की अपने स्वार्थ के लिए किसी भी जीव की स्वतंत्रता नहीं छीनना चाहिए बस घर में गाय या बकरी का प्रवेश रुक गया, पुरे परिवार ने राहत की सांक ली जिसमें पत्नी के मन में पैदा हुआ संदेह का बीज अंकुरण उसके शुभ संकल्पों से उसके चरित्र की श्रेष्ठता को साबित कर गयाl
चलते चलते देश के किसान के चरित्र की बात कर ली जाए तो किसान भले अन्नदाता कहलाता है किन्तु इस समय उसका चरित्र न तो अन्न के साथ न्याय कर रहा है और न ही धरती माता के साथ वह संवेदशील हैl कीटनाशकों और रसायनों के प्रयोग से आज गेहूँ, चावल, मक्का, बाजरा, ज्वार, चना आदि सारी फसले और सब्जियां जहरीली हो गई है जिसे खाने के बाद इन्सान अनेक तरह के गंभीर रोगों का शिकार हो असमय ही मर रहा है और गेहूं आदि खाने से वह ऊब गया है किन्तु मांसाहारी हो नही सकता इसलिए मज़बूरी में इस जहर को अपने शरीर में उतार रहा हैl लोगों के पास घरों में पर्याप्त जगह होने पर वे उत्तम रसायनरहित सब्जी उगा कर खुद इस्तेमाल कर रहे है किन्तु बचे हुए लोग किसान पर निर्भर है और उससे रसायनरहित जैविक खाद्वाली सब्जी और फसलों को उपलब्ध कराने की आस लिए है ताकि वह बीमार न हो l दूध की कमी से देश में नकली दूध, घी, पनीर मक्खन आदि का जहर हार्ट-अटैक्स का कारण बन रहा है शरीर रोगों का घर हो गया है किन्तु किसान अपना चरित्र इतना गिरा चूका है की उसे देख यमराज की कल्पना करने लगे हैl अगर जिस दिन किसान धरती की कोख को जहरीला करने से रोककर धरती के मित्र जीवों की खेतों में नरवाई जलाकर हत्या से रोकेगा और धरती को चोबिसों घंटे पैदा करने वाली समझ तीन चार फसलों में से दो फसल देकर मिटटी को बनने संवरने को मौका दे और रसायनों से परहेज कर जैविक खाद ही इस्तेमाल करे तब वह सच्चा अन्नदाता कहलाने के साथ उत्कृष्ट चरित्र का कहलायेगाl किसान को धरती ही नहीं अनाज का उपयोग करने वाले हर व्यक्ति के शरीर और आत्मा की ओर ध्यान देंगा होगा, चूंकि आत्मा के लिए शरीर का मकान सभी को चाहिए, अतः सेहत बनाने के ये सब आवश्यक है ताकि धरती पर मानव के साथ सारे जीव जंतु बने रहेl किसानों सहित सभी जहरीली भोजन सामग्री आदि के जिम्मेदारों ने अभी इंसानियत को भुला दिया है, इस पर पूरी तरह अंकुश लग्न चाहिए और आनेवाली समृद्धि की आशा का सूरज या चरित्रनिर्माण का सोना-कोई-न-कोई कभी न कभी तो चमकाएगा ही ताकि जीवन में जिन्दगी को दौड़ बीच में न थमे और हरेक मनुष्य प्राणी अपनी पूरी जिन्दगी बिना जहरीले खान पान के जिए । आप मेरी बात समझ गए होंगे इसलिए परमात्मा को साक्षी मानकर अपने जीवन के परम लक्ष्य अपने चरित्र को इस प्रकार मजबूत बनाये जिसे कोई भी ताकत न तोड़ सके, अगर आपका चरित्र अंगद के पैर की तरह अडिग रहा तो किसी भी शरीर को चाहे वह मनुष्य हो या जीव जंतु या प्राणी, उन्हें चिंता नही होगी, अगर यह हुआ तो निश्चित रूप से मानिए हर आत्मा परमात्मा से मिल सकेगीl
आत्माराम यादव पीव