आदमी को पसंद नहीं मानवीय धर्म दर्शन

—विनय कुमार विनायक
आदमी को पसंद नहीं मानवीय धर्म दर्शन
आज आदमी हो रहा है बहुत अधिक दुर्जन
आदमी में बढ़ रहा है ईर्ष्या द्वेष व जलन
आदमी करने लगा है बहुत छल-छंद प्रपंच!

आज आदमी हो गया बहुत अधिक हिंसक
अब आदमी शांत नहीं,हो रहा है विध्वंसक
आदमी जाने क्यों दुर्जन को बनाता आदर्श
अत्याचारी के दुष्कर्म पर क्यों मनाता हर्ष?

आज आदमी का आदर्श तैमूर लंग हो गया
आज आदमी आदमी से बहुत तंग हो गया
आदमी को चंगेज औरंगजेब अंग्रेज है प्यारा
आदमी को गजनवी गोरी बाबर लगे न्यारा!

आदमी के लिए सिर्फ आदमी स्वजाति नहीं
आदमी के पैमाने आज नहीं सज्जन व्यक्ति
आदमी को वो प्यारा जो है स्वधर्मी मजहबी
आदमी को प्रिय स्वधर्मी दुर्जन गुंडा मवाली!

आदमी स्वधर्म मजहब का पहनता है गंदगी
स्वधर्मी असुर दैत्य पूज्य लगे चाहे हो दुर्गुणी
मानव जाति विरादरी का दरिंदा बनते आदमी
आदमी को सजाति हैवान लगता विश्वसनीय!
—विनय कुमार विनायक

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