
—विनय कुमार विनायक
चंद मिली जीवन की सांस,
ईश्वर का कर लें अरदास!
पहला ईश्वर माता पिता हैं,
दूजा गुरु को करें अहसास!
देश धर्म जीव रक्षण कर्म है,
वक्त मिले तो मंदिर दरगाह!
मानव तन मिला है भाग्य से,
मत करें इसको यूं ही बर्बाद!
पशु से इतर होता मानव तन,
बुद्धि विवेक मानव के पास!
ये तन पशु-पक्षी, मीन से हीन,
तैर,उड़ नहीं सकते भू आकाश!
मनुज को कुछ नहीं इतराना,
बुद्धि-विवेक का मानव दास!
बुद्धि को मत गिरवी रखना,
तर्क विवेक मत रखिए ताख!
तर्क करें, कुछ फर्क नहीं खुदा
खुद में,खुदी में खुदा का वास!
खुद और खुदा के बीच ना कोई,
अक्ल के सिवा कुछ नहीं खास!
झुंड तिर्यक योनि पशु पक्षी का,
मानव सृष्टि ईश्वर की तलाश!
तलाशे परमात्मा सिर्फ मानव की
आत्मा,खुद करने को आत्मसात!
मत पड़ें जाति वर्ण नस्ल धर्म के
पचड़े में, ईश्वर मन का विश्वास!
एक विश्वास पे चलते चलें, मानव
खुद का नियंता खुद, जबतक सांस!