प्रतिस्पर्धी युग में अंक जीवन नहीं हैं 

देश में सीबीएसई और विभिन्न राज्यों की अन्य बोर्ड परीक्षाओं के रिजल्ट(परिणाम) लगभग-लगभग मई माह में घोषित हो चुके हैं। जिन बच्चों ने इन बोर्ड परीक्षाओं में अच्छे अंक हासिल किए हैं, वे बच्चे और उनके अभिभावक बहुत ही खुश हैं। लेकिन जो बच्चे किसी कारणवश बोर्ड(दसवीं और बारहवीं) की परीक्षाओं में अच्छे अंक हासिल नहीं कर पाए हैं अथवा अनुत्तीर्ण हो गये हैं, उन बच्चों व बच्चों के अभिभावकों के चेहरों पर चिन्ता की अनेक लकीरें हैं, तो वहीं दूसरी ओर वे नाखुश व निराश नजर आ रहे हैं। परीक्षा परिणाम आने पर अच्छे अंक हासिल नहीं कर पाने पर बच्चों के साथ ही अभिभावकों का नाखुश होना स्वाभाविक, लाज़िमी है, लेकिन जो बच्चे बोर्ड में अपनी अच्छी परफोर्मेंस नहीं दे पाए हैं,उनको हाल फिलहाल माता-पिता,अभिभावकों और शिक्षकों के साथ की बहुत जरूरत है। इस समय उन्हें(बच्चों को) मानसिक सपोर्ट देने की जरूरत है। अभिभावकों को अपने बच्चों को यह समझाना चाहिए कि बोर्ड की परीक्षाएं या कोई भी परीक्षा जीवन की अंतिम परीक्षा नहीं होती है। उन्हें अपने बच्चों को यह समझाना चाहिए कि असफलताएं हमारे जीवन का हिस्सा होतीं हैं और असफलताएं ही हमें जीवन में सफल होना सिखातीं हैं। ख़राब परिणाम देखकर कभी-कभी बच्चे अतिवादी कदम(आत्महत्या तक) उठा लेते हैं और वे घोर तनाव से और अवसादग्रस्त हो जाते हैं। जीवन उन्हें नीरस-नीरस सा लगने लगता है, ऐसे में अभिभावक और शिक्षकों को यह चाहिए कि वे अपने बच्चों को किसी भी हाल और परिस्थितियों में निराश नहीं होने दें, और उनमें सकारात्मक सोच विकसित कर उन्हें लगातार प्रेरित व प्रोत्साहित करें। वास्तव में, असफलता ही सफलता की असली सीढ़ी है, जो हमें सिखाती है और हमारे विकास में मदद करती है ।असफलता से हमें सीखने और आगे बढ़ने का मौका मिलता है, और इससे हम मजबूत बनते हैं। हमें बच्चों को यह सिखाना चाहिए कि असफलता मिलने पर निराश नहीं होना है, बल्कि इससे हमें सीखना चाहिए और आगे बढ़ना चाहिए।सकारात्मक दृष्टिकोण बहुत जरूरी है।असफलता को एक अवसर के रूप में देखना चाहिए, जिससे हम और मजबूत बन सकते हैं। हमें बच्चों को ठोस योजना बनाने में मदद करनी चाहिए और उन्हें यह बताना चाहिए कि वे अपने लक्ष्य निर्धारित करें, योजना बनाएं, और योजनाओं को सफल करने में जुट जाएं। कोई भी असफलता हमें अपनी कमजोरियों को समझने और सुधार करने का मौका देती है। हम अपने बच्चों को यह बताएं कि जीवन में आत्म-विश्वास का होना बहुत ज़रूरी है। वास्तव में, असफलता से सीखते हुए हम और मजबूत बनते हैं और आगे बढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं।असफलता से हमें अनुभव मिलता है जो हमें भविष्य में बेहतर तरीके से तैयार करता है।असफलता से हमें एक नया दृष्टिकोण मिलता है, जो हमारी प्रगति पथ को नई दिशा देता है। बहरहाल,मई जून का समय हमारे यहां स्कूली नतीजों के साथ ही विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं के परिणाम आने का भी समय होता है और ऐसी संवेदनशील परिस्थितियों में बच्चों को सकारात्मक वातावरण प्रदान करने, उन्हें संघर्ष करने का काम केवल माता-पिता, अभिभावक और शिक्षक ही कर सकते हैं। वास्तव में, माता-पिता, अभिभावकों को बच्चे की कोशिशों की सराहना करनी चाहिए, उन्हें नकारात्मकता से दूर रखना चाहिए, और उनकी रुचियों को प्रोत्साहित करना चाहिए । याद रखिए कि बच्चे की मेहनत को पहचानना और उसे सफल बनाने में मदद करना, यह महत्वपूर्ण है। अभिभावकों को यह चाहिए कि वे अपने बच्चों को उनकी इच्छा और रूचि के हिसाब से सही गाइडेंस लेकर ही विषयों का चुनाव करवाए। अभिभावकों को बच्चों पर विषय विशेष के चुनाव को लेकर कोई भी दवाब नहीं डालना चाहिए। बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि 

अपेक्षित अंक न आने पर बच्चे टूट जाते हैं और माता-पिता की नाराज़गी से उनका आत्मविश्वास और भी गिर जाता है। यहां पाठकों को बताता चलूं कि हाल ही में अलीगढ़ के एक बेसिक शिक्षा अधिकारी ने अपने बेटे की सीबीएसई कक्षा 12वीं की मार्कशीट को सोशल मीडिया पर शेयर किया। उनके बेटे को मात्र 60% अंक मिले, लेकिन इसके बावजूद उन्होंने ना केवल बेटे को बधाई दी, बल्कि उन्होंने अपने बच्चे के लिए मोटिवेशनल संदेश-‘जीवन को कहीं से भी, कभी भी शुरू किया जा सकता है। मेरे बेटे ने 60% अंकों के साथ इंटरमीडिएट परीक्षा उत्तीर्ण की है। बेटे को ढेर सारी बधाई और शुभकामनाएं।’ लिखा। उन्होंने आगे लिखा कि-‘रिजल्ट नहीं, नजरिया मायने रखता है।’ बहरहाल, कहना ग़लत नहीं होगा कि कोई भी माता पिता बच्चों से बहुत सी अपेक्षाएं रखता है, लेकिन दुखद बात यह है कि हम सफलताओं या असफलताओं की स्वीकार्यता के प्रति नयी पीढ़ी को मानसिक रूप से तैयार नहीं करते।हम हमेशा अपने बच्चों की तुलना दूसरों बच्चों से करते हैं, लेकिन तुलना दूसरों से नहीं की जानी चाहिए, क्यों कि प्रत्येक बच्चे में व्यक्तिगत अंतर पाये जाते हैं। परीक्षा परिणाम के समय बच्चों को संबल प्रदान किया जाना बहुत आवश्यक और जरूरी है। हमें यह चाहिए कि हम अपने बच्चों को यह समझाएं कि किसी  परीक्षा विशेष में असफल होना जीवन में असफल होना नहीं है। होना तो यह चाहिए कि हम अपने बच्चों को असफलताओं का सामना करना सिखाएं। वास्तव में जब हम दिशाहीन होते हैं, हमारे लक्ष्य निर्धारित नहीं होते हैं, तभी हम असफल होते हैं। ज्ञानीजन कहते हैं कि अगर हम अपने जीवन को एक बड़ी संभावना को हासिल करने की दिशा में एक क़दम बना लें, तो फिर असफलता नाम की कोई चीज़ रहेगी ही नहीं। सच तो यह है कि  सफलता किसी और का विचार है। हमारे धर्म, समाज और  संस्कारों ने हमें ऐसा मानने के लिये प्रशिक्षित किया है।वह जो इस जीवन को एक बड़ी संभावना को पाने की दिशा में एक शुरुआती क़दम के रूप में देखता है, उसके लिये असफलता जैसी कोई चीज़ ही नहीं है। हम हमारे जीवन की सभी परिस्थितियों का उपयोग अपने आपको ज्यादा मजबूत और बेहतर बनाने के लिये कर सकते हैं, या फिर बैठ कर रो सकते हैं। हमारे पास यही विकल्प हैं और सफलता और असफलता हमारे स्वयं पर निर्भर है। हम अपने जीवन को जैसा चाहें वैसा बना सकते हैं। वास्तव में, असफलता जैसी कोई चीज़ है ही नहीं। ये बस एक विचार है, क्योंकि सफलता भी एक मूर्खता से भरा विचार ही है। हमें यह चाहिए कि हम दुनिया को बदलने की बजाय अपनी इस सोच को बदलें। अगर हम बस वही बदल देते हैं तो सब कुछ बढ़िया हो जायेगा। 

सुनील कुमार महला

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