आधुनिक भारतीय नारी

भारतीय नारी के अनेक स्वरूप हैं। उसके बारे में जब-जब सोचती हूँ तो लगता है कि किस नारी की बात करूँ? कहाँ से बात शुरू की जाए? विश्व गुरु के पद पर आसीन भारत की उन ऋषि-पत्नियों की, जो ज्ञान व विद्वत्ता में इतनी आगे कि शास्त्रार्थ में याज्ञवल्क्य जैसे ऋषियों को भी टक्कर देतीं गार्गी, अपाला, मैत्रेयी? अष्टावक्र जैसे विद्वान को जन्म देने की लालसा में पति द्वारा अपने शिष्यों को दिए गए ज्ञान को आत्मसात करतीं, परन्तु इसी कारण अपने पति द्वारा श्रापित कुरूप संतान को जन्म देने को विवश माँ? अपने पति के साथ युद्ध में उसके साथ जा उसकी शक्ति बन अर्द्धांगिनी का धर्म निभाने वाली वीरांगनाओं की बात करूँ या फिर आज की अत्याधुनिक कहलाने वाली उस नारी की जो अपने भौतिक सुखों के लिए अपने परिवार, पति यहाँ तक कि अपने बच्चों का भी त्याग कर केवल धन को ही सर्वोपरी मान बैठी हैं? आधुनिक समाज की अत्याधिक पिछड़े वर्ग की अनपढ़, समाज से उपेक्षित महिलाओं पर होते हर अत्याचार को सहती नारी? या फिर पढ़े-लिखे समाज में रहने वाली आधुनिकता की होड़ में भाग लेती, मध्यम व निम्न मध्यम वर्ग की नारी जो बराबरी की होड़ में अपना सब कुछ भूलती जा रही हैं-अपने संस्कार, अपनी परिपाटी, परिवार यहाँ तक कि अपना ‘स्व’ भी।

प्राचीन समय से ही भारत जगद्गुरू के स्थान पर आसीन रहा है। विश्व का स्वर्ग भारत कहा गया है। भारत का भाल-कश्मीर जिसके लिए ये शब्द कहे गये कि विश्व में यदि कहीं स्वर्ग है तो यहीं है। अखंड भारत का चित्र जब सामने रखा हो तो ऐसा लगता है कि मानो पूर्ण श्रृंगार किए, हरी-लाल साड़ी में लिपटी भारतीय नारी ही तो है जिसे हमने माँ का रूप दिया। यहां बहने वाली हवाओं में, यहाँ के वातावरण में ही गार्गी, अपाला, मैत्रेयी जैसी विदुषी महिलाओं का निर्माण हुआ। दुर्गा, लक्ष्मी जैसी शक्तियाँ यहीं अवतरित हुईं। धन्य है यह धरती, जहाँ राम-कृष्ण जैसे आलौकिक, दिव्य आत्मा को जन्म देने वाली माताओं का आशीर्वाद प्राप्त हुआ।

इस देश की मिट्टी ने माँ सीता का निर्माण किया है। माँ सीता! घर-घर में राम-सीता की पूजा की जाती है। मंदिर में कितना सुंदर राम दरबार लगा है। लेकिन कभी उनके गुणों को भी आत्मसात करने का विचार किया? माता सीता, जिसने कदम-कदम पर अपने पति श्रीराम का साथ दिया। वनवास तो मात्र राम के लिए था, परन्तु सीता ने पति धर्म का निर्वाह करते हुए उनके साथ 14 वर्ष तक सभी कठिनाइयों का सामना किया। त्यक्त होने के बावजूद भी अपने शिशुओं में सभी सर्वोचित संस्कार तो विकसित किए ही, रघुवंश की परंपराओं के प्रति भी उनमें पूरी आस्था निर्माण की। वह आस्था, वह प्रेम, विश्वास जिसे 14 वर्षों का वनवासी जीवन, उसकी कठिनाइयां और बाद में त्यक्त जीवन भी जिसकी जड़ें न हिला सका, वे सभी तो हम भूल रहे हैं। तनिक सुख के लिए परिवार से विमुखता? बच्चों के कर्तव्य से विमुखता? उसी का परिणाम है समाज में उन्मुक्त, उच्छृंखल युवा पीढ़ी। तरुण मन भावी जीवन के सपने संजोने की बजाय किसी उन्मादी माहौल में पल रहा है। जड़ों में पैठता जाता आतंकवाद, अपने तनिक सुख की पिपासा, थोड़ा शारीरिक सुख, झूठी मानसिक खुशी के लिए आवश्यकता से भी अधिक साधन जुटाए हैं हमने अपने लिए। उसी का परिणाम है कि बच्चे रिश्तों की मर्यादा तक भुला बैठे हैं और अपनी जन्मदात्री माँ पर ही पलट वार करते हैं।

पर आज हम कुछ ऐसी आधुनिक महिलाओं का स्मरण करना चाहते हैं जिनकी उपलब्धियाँ हमें प्रेरणा देती हैं। चेनम्मा, रानी दुर्गावती, रजिया सुल्ताना, महारानी लक्ष्मीबाई, माँ जिजाबाई या देवी अहिल्याबाई तो अब हमारे लिए इतिहास बन गईं हैं। स्वामी विवेकानंद के साथ आई मार्गरेट जिसने पूरे समर्पण भाव से इस देश के लिए कार्य किया और भगिनी निवेदिता के नाम से प्रसिद्ध हुईं। या फिर महर्षि अरविंद के साथ कार्य करने के आई मार्गरेट जो श्रीमाँ के नाम से प्रसिद्ध हुईं। आज भी पांडुचेरी में उनके द्वारा निर्मित ऑरोविल के नाम से बहुत बड़ा आश्रम चल रहा है। राष्ट्र सेविका समिति जैसे महिला संगठन का गठन करने वाली वंदनीया मौसी जी के नाम से प्रसिद्ध लक्ष्मी बाई केलकर जैसी अनेक महिलाएं आज भी इतिहास लिख रही हैं। इस कड़ी में कल्पना चावला का नाम तो एक ऐसा नाम है जो अविस्मरणीय है। राजनीति में मैडम कामा, इंदिरा गाँधी, समाज सेवा के क्षेत्र में मेधा पाटेकर खेलों में सानिया मिर्जा या फिर सुनीता विलियम जैसे अनेक नाम हैं। हर क्षेत्र में आज महिलाएं कुछ बेहतर कर रही हैं। बल्कि वे हर क्षेत्र में ये चमत्कार कर रही हैं कि वे पुरुषों से बेहतर हैं। परंतु गुलाम मानसिकता से जकड़े समाज में वह इतना प्रताड़ित की गईं कि आज वह यही सब करने में जुटी हुई है, और जहाँ वह कमज़ोर पड़ती है कि पुरुष प्रधान समाज उसे प्रताड़ित करने का कोई मौका नहीं छोड़ता।

परिणति? वह भूल रही है कि ईश्वर ने उसे एक आलौकिक शक्ति दी है। वह है सृजन करने की। इसी शक्ति के कारण हम उसे किसी से भी अलग नहीं कर सकते, बल्कि वह ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति है। बस आवश्यकता है उसे पहचानने की। हममें वो शक्ति है कि हम इस समाज को जैसा चाहें वैसा ही ढाल सकते हैं। बच्चों को जो शिक्षा देना चाहें दे सकते हैं। यानि कि इस देश, समाज को जैसा बनाना चाहें बना सकते हैं। आज पुनः इस देश को आवश्यकता है माँ जिजा की। माँ सीता की या फिर पुत्री का धर्म निभाने वाली सुकन्या की। उसे अपने परिवार, अपने समाज व अपने देश के लिए पुनः उस वैदिक स्त्री के रूप में आना होगा। लेकिन इसकी जिम्मेवारी अकेले उसकी नहीं, हम सभी की होगी। तो फिर कोई ताकत हमें रोक नहीं पाएगी और हम पुनः विश्व गुरु के चरण को छूने को तैयार होंगे।

– गुंजन

-लेखिका समाजसेवी है।

10 COMMENTS

  1. मेघा पाटकर का नाम लिया तो तीस्ता सीतलवाड़, सोनिया गांधी, अरुंधति राय और टेरेसा को क्यों छोड़ दिया। सिर्फ विदेशी कनेक्सन वाली महिलाओ के महिमामण्डन के लिए यह लेख लिखा गया प्रतीत होता है। वैसे नारी के रूप में में किसी भी नाम के प्रति असम्मान करना मैं नही चाहता। लेकिन भारत की आधुनिक नारी की बात करने जब हम बैठेंगे तो किरण बेदी, चन्दा कोचर, सुधा मूर्ति, माँ अमृतानन्दमयी, लक्ष्मीबाई केलकर आदी की चर्चा नही होती तो उस आलेख की पूर्णता संदिग्ध कही जाएगी।

  2. ये क्या बकवास है ! निवेदिता , श्री माँ और पान्डूचेरी / पोंडिचेरी के अलावा और कुछ भी नहीं इस बकवास लेख में …..

  3. Jai Shri Ram
    आपके विचार अविस्मरनीय हैं, आपने जो कहा बिलकुल सही कहा

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