
“मॉनसून सत्र में बिस्मिल्लाह खां विवि बनाने की मांग का जवाब देते हुए कला
संस्कृति मंत्री प्रमोद कुमार ने स्पष्ट शब्दों में कहा की जमीन कोई दे तो वहीं
विवि बनाया जाएगा। उस्ताद के नाम पर काम करने की जरुरत है। बिस्मिल्लाह
खां पर शोध करने वाले लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव कहते हैं कि बिहार की
मिट्टी में जन्मे उस्ताद के ऊपर कुछ करना है तो डुमरांव की भूमि से बेहतर और
क्या हो सकती है। यहीं उनका जन्म हुआ साथ ही यहां बहुत बड़ा सरकारी भू-
भाग भी उपलब्ध है।”
भारत रत्न शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने संगीत की दुनिया में एक
नया प्रयोग किया। डुमरांव राज की रसन चौकी पर बचने वाली शहनाई पर
शास्त्रीय धुन बजाकर इसे संगीत की मल्लिका बना दिया। अपनी शहनाई पर
भोजपुरी और मिर्जापुरी कजरी पर ऐसी तान छेड़ी पूरी दुनिया शहनाई की
मुरीद हो गई। लेकिन अफसोस कि आज अपने ही आंगन में बेगाने हो गए है
बिस्मिल्लाह खां।
शहनाई नवाज उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पर मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने पुस्तक
लिखी “शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां” जिसका 15 नवंबर 2009 को
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने किया था। इस मौके पर राज्यसभा अध्यक्ष
हरिवंश, फिल्म निर्माता प्रकाश झा, पूर्व सांसद जगदानंद सिंह भी शामिल हुए
थे। उसके बाद वर्ष 2013 में पटना में ही आयोजित बिस्मिल्लाह खां पर
आधारित कार्यक्रम के दौरान लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने डुमरांव में
बिस्मिल्लाह खां विश्वविद्यालय की घोषणा कर दी, जिसकी तारीफ करते हुए
विधान पार्षद डॉ.रणबीर नंदन ने सराहनीय कदम बताया था। यह सिलसिला
यहीं नहीं थमा और श्री श्रीवास्तव ने उस्ताद के जीवन पर एक 44 मिनट की
डॉक्टूमेंट्री का निर्माण किया जिसे 2017 में बिहार सरकार के एक कार्यक्रम में
लोकार्पित किया गया।
ज्ञात हो कि तत्कालीन भू-राजस्व मंत्री तथा वर्तमान कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष मदन
मोहन झा के पास मुरली मनोहर श्रीवास्तव ने डुमरांव (बक्सर) में सरकारी
अनुपयोगी बंजर लगभग 5 एकड़ भूमि के बारे में लिखकर दिया। श्री झा ने
डुमरांव में भूमि आवंटन के लिए जांच करने के लिए पत्र तो भेज दिया। लेकिन
अफसोस कि इतने साल गुजरने के बाद भी जिले के अधिकारी इस पर कारगर
कदम नहीं उठा पाए। और आज तक मामला उसी तरह अधर में लटका हुआ है।
जबकि वर्ष 1979 में भोजपुरी फिल्म “बाजे शहनाई हमार अंगना” के मुहूर्त और
संगीत निर्देशक के लिए बिस्मिल्लाह खां को डुमरांव निवासी डॉ.शशि भूषण
श्रीवास्तव लेकर आए थे। डुमरांव महाराजा बहादुर कमल सिंह के बड़े बाग में
उसका मुहूर्त हुआ था और श्री श्रीवास्तव के घर ही 15 दिन बिस्मिल्लाह खां
ठहरे हुए थे।
बिस्मिल्ला खां साहब पर शोध करने वाले लेखक मुरली मनोहर श्रीवास्तव इस
तरह से उस्ताद के नाम पर की जा रही राजनीति से काफी आहत है। कहते हैं कि
भोजपुरी के सबसे बड़े संवाहक, पांच समय के नमाजी इस सच्चे मुसलमान ने
मंदिरों में शहनाई वादन किया इनसे बड़ा हिंदु-मुस्लिम एकता का वाहक भला
कौन हो सकता है। लेकिन इनके ऊपर सही तरीके से किसी ने नजर-ए-इनायत
नहीं की, जिसको लेकर श्री श्रीवास्तव काफी नाराज रहते हैं।
इसके पहले बिस्मिल्लाह खां का डुमरांव स्टेशन पर संगमरमर के टूकड़ों से चित्र
उकरने के लिए दानापुर रेलमंडल के डीआरएम से कई बार वार्ताएं हुईँ। चित्र तो
बना लेकिन उसे सिर्फ पेंटिंग करके अपना पल्ला झाड़ लिया गया है। सबसे बड़ा
दुर्भाग्य ये है कि उस्ताद बिहार के हैं और इसी मिट्टी में उनका अस्तित्व मिटता
हुआ दिख रहा है। जबकि शहनाई वादक उस्ताद बिस्मिल्लाह खां पर पिछले 25
वर्षों से लगातार काम करने वाले मुरली मनोहर श्रीवास्तव, उस्ताद के आबाई
गांव डुमरांव में बिस्मिल्लाह खां विश्वविद्यालय खोलने को संकल्पबद्ध हैं। कहते
हैं सरकार अगर साथ दी तो ठीक है वर्ना आम जनता से चंदा लेकर भी
विश्वविद्यालय का निर्माण कराएंगे।
वर्षाकालीन सत्र में बिस्मिल्लाह खां विवि बनाने की मांग का जवाब देते हुए
कला संस्कृति मंत्री प्रमोद कुमार ने स्पष्ट शब्दों में कहा की जमीन कोई दे तो वहीं
विवि बनाया जाएगा। उस्ताद के नाम पर काम करने की जरुरत है। बिहार की

मिट्टी में जन्मे उस्ताद के ऊपर कुछ करना है तो डुमरांव की भूमि से बेहतर और
क्या हो सकती है। यहीं उनका जन्म हुआ साथ ही यहां बहुत बड़ा सरकारी भू-
भाग भी उपलब्ध है। जरुरत है सरकार को भूमि उपलब्ध कराने की तथा बक्सर
के तत्कालीन जिलाधिकारी को दिए गए पत्र की जांच कराने की ताकि उस्ताद के
नाम पर विश्वविद्यालय की स्थापना हो सके। वैसे भी विश्वविद्यालय को लेकर
बिहार वर्तमान सरकार बहुत ही संवेदनशील है। उस्ताद की स्मृतियों को संजोने
के लिए मुरली मनोहर श्रीवास्तव पूरी तरह से संकल्पबद्ध हैं।