प्रदीप कुमार वर्मा
भाजपा की अगुवाई वाली केंद्र की एनडीए सरकार की ओर से लाया गया वक्फ अधिनियम 1995 संशोधन बिल देश की संसद में पारित होकर भले ही कानून बन गया है लेकिन कानून बनने के बाद भी यह लगातार चर्चा में है। वजह, इस नए वक्फ कानून को लेकर कुछ मुस्लिम संगठन लगातार देशव्यापी विरोध कर रहे हैं। देश की राजधानी दिल्ली के जंतर-मंतर से शुरू हुआ विरोध अब उत्तर प्रदेश, बिहार, महाराष्ट्र एवं पश्चिम बंगाल से लेकर अन्य राज्यों तक जा पहुँचा है। ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा शुरू किए गए इस विरोध को कांग्रेस, सपा, राजद एआइएमआइएम तथा टीएमसी की ओर से घोषित एवं अघोषित रूप से खासा समर्थन मिल रहा है। भाजपा जहां नए वक्फ कानून के जरिए इसे मुसलमानों के लिए और अधिक उपयोगी तथा हितकारी बनाना चाहती है, वहीं, विपक्ष द्वारा इस नए कानून को हथियार बनाकर अपनी राजनीतिक विचारधारा और परंपरा के मुताबिक बिहार एवं पश्चिम बंगाल चुनाव में अपने परंपरागत वोट बैंक की खातिर मुस्लिम तुष्टिकरण को एक बार फिर से बढ़ावा दिया जा रहा है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में एनडीए सरकार द्वारा वक्फ बोर्ड के संबंध में लाया गया वक्फ अधिनियम 1995 संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों में पारित होने तथा महामहिम राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू के हस्ताक्षर के बाद अब कानून बन गया है । इस कानून के संबंध में केंद्र सरकार सहित भाजपा एवं एनडीए में शामिल अन्य राजनीतिक दलों का कहना है कि इस नए कानून के आने के बाद वक्फ बोर्ड के कामकाज में सुधार होगा तथा मुसलमानों के कल्याण के लिए इसकी मूल संकल्पना भी “साकार” हो सकेगी। इस कानून के जरिए वक्फ की ओर से संपत्ति के दावों की जांच के साथ बोर्ड में महिलाओं को जगह देने का प्रावधान है। इसके साथ ही नए वक्फ कानून का मकसद वक्फ बोर्ड के कामकाज में पारदर्शिता लाना भी है। राजनीति एवं कानून के जानकारों के मुताबिक नए वक्फ कानून ने पुराने वक्फ कानून के कई खंडों को रद्द करना भी है। जिसको लेकर ही सारा बवाल मचा है। इसके विपरीत कांग्रेस, समाजवादी पार्टी,टीएमसी एवं राष्ट्रीय जनता दल सहित अन्य विपक्षी पार्टियां नए वक्फ कानून को मुसलमानों के हितों के विरुद्ध बताकर इसका विरोध कर रही है।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी समेत अन्य विपक्षी दलों के नेताओं ने उनके राज्यों में नए वक्फ कानून को लागू नहीं होने देने का ऐलान भी किया है। विपक्षी दलों के विरोध का आलम यह है कि ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड द्वारा वक्फ संशोधन बिल से लेकर उसके कानून बनने के विरोध में यह सभी पार्टियों भाग लेकर विरोध का परोक्ष एवं अपरोक्ष रूप से समर्थन कर रहीं हैं।इससे पूर्व पटना में वक्फ संशोधन विधेयक के विरोध प्रदर्शन के दौरान राष्ट्रीय जनता दल के नेता एवं बिहार के पूर्व उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव कह चुके हैं कि यह विधेयक गैर संवैधानिक है तथा देश में भाईचारे को खत्म करने की कोशिश है। लोकतंत्र और भाईचारे को खत्म करने की कोशिश हो रही है। यही नहीं तेजस्वी ने कहा कि इस गैर संवैधानिक बिल का विरोध जरूरी है। उधर, एआईएमआईएम के सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी ने नए वक्फ कानून को लेकर मुसलमानों को एक तरह से भड़काने का काम किया है।
ओवैसी का कहना है कि इस नए कानून के जरिए सरकार की कोशिश वक्फ की जमीन, मस्जिद एवं कब्रिस्तान को छीनने की है जिसे किसी भी सूरत में बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हम सबको नए वक्फ कानून के खिलाफ एकजुट होना होगा। इस विरोध प्रदर्शन में राष्ट्रीय जनता दल के सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव एवं तेजस्वी यादव के शामिल होने को इस साल के आखिर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव से जोड़ा जा रहा है। वहीं, राजनीति के पंडितों का मानना है कि ममता बनर्जी द्वारा पश्चिम बंगाल में नए वक्फ कानून को लागू नहीं होने देने के ऐलान के पीछे भी मुस्लिम तुष्टिकरण तथा अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव ही हैं। मीडिया रिपोर्ट तथा एक अनुमान के मुताबिक रेलवे और रक्षा विभाग के बाद वक्फ बोर्ड कथित तौर पर भारत में तीसरा सबसे बड़ा भूमि धारक है। देश के विभिन्न वक्फ बोर्ड समूचे देश में 9.4 लाख एकड़ में फैली 8.7 लाख संपत्तियों को नियंत्रित करते हैं जिनकी कुल अनुमानित कीमत 1.2 लाख करोड़ रुपये है।
केंद्र सरकार का कहना है कि वक्फ की संपत्तियों पर मुस्लिम समाज के कुछ प्रभावशाली लोगों ने अघोषित तौर पर कब्जा कर रखा है जिससे वक्फ के प्रावधानों के मुताबिक गरीब मुसलमानों को इसका कोई लाभ नहीं मिल रहा है। केंद्र सरकार के मुताबिक नए वक्फ बिल के अमल में आने के बाद अब वक्फ की संपत्तियों को कब्जा से मुक्त कराया जा सकेगा तथा इनका बेहतर रख रखाव भी संभव होगा। यही नहीं, वक्फ बिल के प्रावधानों में संशोधन का सीधा लाभ गरीब तबके के मुसलमान को मिल सकेगा। राजनीति के पंडितों का मानना है कि राष्ट्रीय जनता दल का यह कदम बिहार चुनाव में “एम वाई ” समीकरण को फिर से मजबूत कर सत्ता प्राप्ति की कोशिशें में शामिल है। यही नहीं, वर्ष 2027 में उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव में भी सपा को भी यही “एम वाई ” समीकरण मजबूती प्रदान करेगा। इसके साथ ही इस विरोध प्रदर्शन को समर्थन देने के बहाने कांग्रेस की कोशिश भी अपने परंपरागत वोट बैंक को भी एक बार फिर से साधने की ही है।
सियासी गलियारों में इस बात की भी चर्चा है कि बिहार सहित पूरे देश मे होने वाले संभावित “ध्रुवीकरण” का लाभ भी चुनावी राजनीति के लिहाज से केंद्र की गद्दी पर काबिज भाजपा को भी मिलेगा। कुल मिलाकर देश में बह रही “हिंदुत्व” की हवा के बीच में नए वक्फ कानून ने एक बार फिर से हिंदू-मुस्लिम का मुद्दा छेड़ दिया है। फिलहाल नए वक्फ कानून को लेकर करीब तीन दर्जन याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग हैं। माननीय सुप्रीम कोर्ट ने इन याचिकाओं की सुनवाई बुधवार से शुरू भी कर दी है। इसके साथ ही देश के साथ सूबों की सरकारों ने भी नए कानून के समर्थन में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल कर अपनी आवाज बुलंद की है। इस पूरे मामले में मुस्लिम धर्म के मौलानाओं के बाद अब हिंदू धर्म के संत, महंत एवं धर्माचार्य ने भी एंट्री कर ली है। हिंदू धर्म आचार्य एवं प्रसिद्ध कथावाचक देवकीनंदन ठाकुर एवं आचार्य रामभद्राचार्य ने भी पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में हो रहे हिंदुओं पर अत्याचार को लेकर हिंदुओं के “जागने” की बात कहकर नए वक्फ कानून के नाम पर “मुस्लिम तुष्टिकरण” को एक बार फिर बहस का मुद्दा बना दिया है।