बहुत सुना बचपन से भाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
अभी खबर दिल्ली से आई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
अर्थशास्त्र के पण्डित होकर बोझ बढ़ाते लोगों पर
अपने खाते रोज मलाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
प्रमुख देश का बोल रहे थे या कोई रोबोट वहाँ
महिमा से मंडित मँहगाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
धवल वस्त्र था अबतक उनका राजनीति में रहकर भी
अपने पर छींटा रोशनाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
किसी को मोहित कर न पाया अपने क्रिया-कलापों से
वही आज है बना कसाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
बिना रीढ़ के लोग अभीतक कुछ उनके आगे-पीछे
बस उनकी बातें दुहराई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता
जब दिल्ली ही ऐसा बोले सुमन चमन का क्या सोचे
मजबूरी की राम दुहाई, नहीं पेड़ पे पैसा उगता