
—विनय कुमार विनायक
अब सच कहने का दौर नही है
अच्छाई को अब ठौर नही है
अब गालियां, लानत-मलामत
उनके सिर पे ठीकरा फोड़ना है
जो यहां के वासिंदे नही हैं
यही सच्चे लोकतंत्र की मही है
कल के चोर अब चोर नही है
सच्चाई का अब खैर नही है
अब तो सिर्फ वादे ही वादे हैं
अब अच्छे दिन सिर्फ यादें हैं
वादों के पुलिंदे हैं बड़े-बड़े
ठेकों के नुमाइंदे हैं बौने-बौने
जो जाति धर्म कुकर्म के बंदे हैं
बुराई से अब कोई बैर नही है
जमीं तो कबके बिक चुकी है
आसमां बेचनेवालों का
सिरमौर आज कहीं नहीं यहीं है
हांक लगी है बड़े जोर का
लो खरीद लो बिना दाम का
सौदागर है वो बिना सामान का
काम देगा वो बड़े आराम का
ठेका,लूट,कमीशनखोर गिरोह का
सरगना कोई और नही है
कमजोर का महाशोर वही है
अब कर्म कोई घोर नही है
सुनो सुनो गौर से सुनो उनको
अब गोरी, गजनवी से बड़ा
इस लोकतंत्र में मुंहजोर वही है
कुछ जाने या ना जाने
सब्जबाग दिखाना वो जानता
एक शाम चूल्हे का इंतजाम
अपने बूते जो करे ना करे
वो दूसरों की मसीहाई पुरजोर करे
आज जादूगर घनघोर वही है
अब सच कहने का दौर नही है!