अब ‘नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार’ पृथ्वी पर रखेगा नजर

रामस्वरूप रावतसरे

भारत आंध्र प्रदेश राज्य में श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 30 जुलाई 2025 को एक बेहद महत्वाकांक्षी मिशन के सेटेलाइट ‘निसार’ को जीएसएलवी-एफ16 प्रक्षेपण यान के जरिए लॉन्च किया गया। ये सेटेलाइट केंद्र से उड़ान भरकर सूर्य की समकालिक ध्रुवीय कक्षा में स्थापित होगा।

निसार का पूरा नाम ‘नासा-इसरो सिंथेटिक अपर्चर रडार’ है। ये एक अत्याधुनिक पृथ्वी-अवलोकन सेटेलाइट है जिसे भारत के इसरो और अमेरिका के नासा ने संयुक्त रूप से विकसित किया है। इस सेटेलाइट का वजन 2,392 किलोग्राम है और यह दुनिया का पहला बड़ा उपग्रह है। इसमें दो फ्रीक्वेंसी बैंड लगाए गए हैं। एल-बैंड एनएएसए की ओर से और एस-बैंड इसरो द्वारा लगाए गए हैं। यह दोहरे बैंड वाला रडार सिस्टम इस मिशन को पृथ्वी की सतह पर होने वाले परिवर्तनों को किसी भी अन्य उपग्रह की तुलना में अधिक सटीकता से देखने में सक्षम बनाता है।

जानकारी के अनुसार लॉन्च के बाद पहले 90 दिनों तक यह इन-ऑर्बिट चेकआउट चरण में रहेगा। इस चरण के दौरान उपग्रह को वैज्ञानिक संचालन के लिए तैयार किया जाएगा। इसके बाद इसका वैज्ञानिक संचालन शुरू होगा। इससे मिले डेटा सभी उपयोगकर्ताओं को कुछ ही घंटों में सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध होगा और साथ ही इसके लिए कोई शुल्क भी नहीं लगेगा। ऐसे में यह भारत की पर्यावरण योजना, आपदा प्रबंधन और वैज्ञानिक शोध के लिए एक बड़ा वरदान साबित होगा। अपनी स्कैनिंग क्षमता के जरिए ये सेटेलाइट पृथ्वी की सतह पर हो रहे बदलावों को मिलीमीटर स्तर तक की सूक्ष्मता से माप सकता है। इस लिहाज से निसार सेटेलाइट भारत के लिए बेहद महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भूकंप, भूस्खलन, ज्वालामुखी और सुनामी जैसे हर तरह की प्राकृतिक आपदाओं की निगरानी कर सकता है। साथ ही ये हिमखंडों की गतिविधियाँ, समुद्र स्तर में वृद्धि, भूजल और वन क्षेत्रों की स्थिति और कृषि पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को भी ट्रैक करने में सक्षम है।

इसके प्रक्षेपण पर भारतीय खगोलशास्त्री और अंतरिक्ष वैज्ञानिक प्रोफेसर आरसी कपूर के अनुसार “यह नासा और इसरो के बीच एक महत्वपूर्ण सहयोग है। यह पृथ्वी से लगभग 743 किलोमीटर की ऊँचाई और 98.4 डिग्री के झुकाव के साथ पर उसकी कक्षा में स्थापित किया जाएगा। यह उपग्रह लगभग 12 दिनों में पूरी पृथ्वी का स्कैन करेगा। इसके बाद यह प्रतिदिन काफी मात्रा में डेटा हमें देगा। इसके कारण आपदा प्रबंधन के साथ पृथ्वी की कई ऐसी जानकारियाँ मिलेंगी जो वर्तमान और भविष्य की कई परेशानियों का समाधान कर सकती हैं। इसके साथ ही पृथ्वी का गहराई से अध्ययन करने वालों के लिए ये बेहद उपयोगी होगा। आज की तारीख में, यह पृथ्वी का सबसे उन्नत अवलोकन उपग्रह बनने जा रहा है।”

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, नासा के वैज्ञानिकों का कहना है कि प्रत्येक प्रणाली का सिग्नल पृथ्वी की सतह पर अलग-अलग आकार की विशेषताओं के प्रति संवेदनशील होता है और प्रत्येक प्रणाली अलग-अलग विशेषताओं जैसे नमी की मात्रा, सतह की खुरदुरापन, और गति को मापने में विशेषज्ञता रखती है। अपनी कक्षा में जाने के बाद सेटेलाइट की सिंथेटिक अपर्चर रडार (एसएआर)तकनीक पृथ्वी की सतह पर रडार तरंगें भेजेगी। ये तरंगें सतह से टकराकर लौटेंगी। रिटर्न सिग्नल के समय और उसके फ़ेज में हुए बदलाव को मापा जाएगा।

निसार सेटेलाइट पृथ्वी का अवलोकन एल-बैंड एसएआर के 1.257 जीएचजेड के माध्यम से करेगा। ये लंबी तरंग दैर्ध्य वाली रेडियो तरंगें होती हैं। यह तकनीक घने जंगलों और मिट्टी के नीचे तक होने वाले परिवर्तनों के साथ सतह पर होने वाली विकृतियों को भी ट्रैक करने में सक्षम है। इसके अलावा, एस-बैंड एसएआर , 3.2 जीएचजेड की छोटी तरंग दैर्ध्य वाली रेडियो तरंगों का उपयोग करता है। इससे फसलों, पानी की सतह और जमीन की सतही जानकारियों का विस्तृत विश्लेषण कर सकने में सक्षम बताई जा रही है।

इसरो के अनुसार, सेटेलाइट पहली बार स्वीप सिंथेटिक अपर्चर रडार तकनीक का उपयोग कर 242 किमी के चौड़े क्षेत्र को भी उच्च स्थानिक विभेदन के साथ स्कैन कर सकेगा। आसान भाषा में कहा जाए तो स्वीप एसएआर एक रडार तकनीक है जिसमें बड़े क्षेत्र को कम समय में विस्तृत तौर पर स्कैन किया जा सकता है। यह तकनीक कई छोटे रडार एलीमेंट्स को एक साथ और अलग-अलग कोणों से चलाकर सतह की काफी स्पष्ट तस्वीर तैयार करती है। इसी तरह स्थानिक विभेदन का मतलब है कि एक तस्वीर में कितनी अधिक जानकारी दिख रही है। जितना अधिक रेजोल्यूशन होगा उतनी ही साफ और सूक्ष्म डिटेल मिलेगी। निसार हर 12 दिन में पृथ्वी को स्कैन करेगा और किसी भी मौसम, दिन या रात में हाई रेजोल्यूशन वाले तस्वीर देगा। इसके दोहरे रडार पेलोड और स्वीप एसएआर तकनीक इसे और अधिक बेहतर बनाते हैं।

इससे वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं को बेहद कम समय में सटीक और व्यापक डेटा मिल सकता है। ये जलवायु परिवर्तन, कृषि और आपदा प्रबंधन के लिए बेहद जरूरी है। निसार मिशन भारत और अमेरिका के बीच अंतरिक्ष सहयोग में बढ़ती साझेदारी को दर्शाता है। इसे लेकर केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह के अनुसार “यह मिशन केवल एक उपग्रह प्रक्षेपण नहीं है। यह एक ऐसा क्षण है जो दर्शाता है कि विज्ञान और वैश्विक कल्याण के प्रति समर्पित 2 लोकतंत्र मिलकर बहुत कुछ हासिल कर सकते हैं, इसे दिखा रहा है। निसार न सिर्फ भारत और अमेरिका को सेवा देगा बल्कि दुनिया भर के देशों को भी खास तौर पर, आपदा प्रबंधन, कृषि और जलवायु निगरानी जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण डेटा देगा।”

वैश्विक पटल पर देखें तो दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन से जुड़ी कई घटनाएँ अक्सर देखने को मिल रही हैं। निसार उन सभी घटनाओं की जानकारी पहले से ही संभावित करेगा। इससे आपदा प्रबंधन के साथ कई घटनाओं को होने से पहले ही रोका जा सकेगा। निसार भूकंप, भूस्खलन, बाढ़, ज्वालामुखी विस्फोट और तूफानों की लगभग वास्तविक समय में निगरानी करेगा। इससे आपातकालीन सेवाएँ तेजी से काम करेंगी। वैज्ञानिकों को जलवायु मॉडल को बेहतर बनाने और क्षेत्रीय प्रभावों को समझने में मदद मिलेगी। निसार कृषि और जलवायु परिवर्तन पर असर की भी निगरानी करने में सक्षम है। फसल वृद्धि, भूमि उपयोग और सिंचाई स्तर की निगरानी कर फसल उत्पादन का पूर्वानुमान, जल प्रबंधन और सूखे की पहचान पहले से किया जा सकेगा।

इसके अलावा ये सेटेलाइट भूमि धंसने और संरचनात्मक ढाँचों में होने वाले बदलावों को देख सकेगा। इससे पुलों, सड़कों और बांधों की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकेगी। वन और जैव विविधता संरक्षण में भी निसार बाहद कारगर सिद्ध होगा। इससे वनों की कटाई और प्राकृतिक आवासों की निगरानी संभव होगी। इसके जरिए अवैध कटाई और संकटग्रस्त प्रजातियों की भी पहचान की जा सकती है।

जानकारों के अनुसार यह मिशन भारत को वैश्विक जलवायु वार्ताओं में एक डेटा-संपन्न और तकनीकी रूप से सक्षम भागीदार बनाने में मदद करेगा। ये मिशन इस बात को सिद्ध करता है कि भारत अब केवल डेटा उपभोक्ता नहीं बल्कि डेटा प्रदाता और नीति निर्माता की भूमिका में आ गया है।

रामस्वरूप रावतसरे

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