अब आओ ऊपर वाले तुम, गायों को अगर बचाना है…

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calf-cowअब आओ ऊपर वाले तुम, गायों को अगर बचाना है,

इंसान के बस की बात नहीं, वह स्वारथ में दीवाना है।।

जिस माँ का दूध पिया सबने, उस माँ पर नित्य प्रहार किया।

बदले में दूध-दही देकर, माता ने बस उपकार किया।

जो है कपूत उन लोगो को, गायों का पाठ पढ़ना है।। …..

कहने को हिंदू-जैनी है, लेकिन गो-वध भी करते है।

स्वारथ में अंधे हो कर के, पैसों की खातिर मरते है।

जो भटके है उन पथिकों को, अब तो रस्ते पर लाना है।

ये गाय नहीं है धरती पर, सबसे पावन इक प्राणी है,

यह अर्थतंत्र है जीवन का, भारत की मुखरित वाणी है।

भारत ही भूल गया सब कुछ, इसको नवपथ दिखलाना है।। ….

गायो को भोजन मिल जाए, बछडों को उनका दूध मिले,

तब मानव औ गौ-माता के रिश्तों का सुंदर फूल खिले।

बछडे को भी हक़ जीने का, गोपालक को समझाना है।। …..

हो धर्म कोई, भाषा कोई, सबने गायों को मान दिया,

इसलाम मोहब्बत करता है, बाइबिल ने भी सम्मान दिया।

क्या महावीर, क्या बुद्ध सभी ने, गौ को माता माना है।। …

कुछ स्वाद और पैसों के हित, मानव पापी बन जाता है,

पशुओं का भक्षण करता है, फ़िर अपनी शान दिखता है।

मानव के भीतर दानव का, बढ़ता अस्तित्व मिटाना है।।…

अब उठो-उठो चुप ना बैठो, अपने घर से बाहर आओ,

माता को अगर बचाना है तो उसकी खातिर मिट जाओ।

गौ हित में जान गयी तो फ़िर बैकुंठ्लोक ही जाना है।। …

हिन्दू आओ, मुसलिम आओ, सिख, ईसाई सारे आओ,

सबने गौ माँ का दूध पिया, अपनी माँ पर बलि-बलि जाओ।

12 COMMENTS

  1. वाह वाह ! बहुत ही सुन्दर कविता, गिरीश जी । गोमाता के प्रति श्रद्धावान् व उनकी रक्षा के लिए तत्पर बन्धुओं का शक्तिवर्धन करने वाली कविता है । इसमें लय और सङ्गीत जोड़ कर गाने पर कविता का प्रभाव और भी प्रचण्ड होगा, ऐसा मानना है ।

    भारतवासियों, जागो । गोहत्या पाप है और ऐसा जहाँ होता है, वहाँ केवल और केवल दुःख व यातनाएँ रहती हैं, ऐसा कहीं और नहीं, वेदों में लिखा है । जिन देशों में यह पाप होता है, वहाँ के लोग अत्यन्त धनवान् होने के बाद भी अत्यन्त पीडित हैं । पति-पत्नी के रिश्ते टूट जाते हैं और बच्चे माता पिता के जीवित होने पर भी अनाथों के जैसे रहत हैं । यहाँ देखो अमेरिका में “विवाह” की दुर्दशा को –
    https://www.divorcestatistics.org/

  2. aap ke kavita mae go ki sacchhi kahani hai jo sab ki pol kholti hai chay vo neta ,vaypari ho ya srkari adhakari ho sab ne go ke nam par apni hi jab-thaili bhari hai isiliye yeh haal hi ki desh may say go khatam hoti ja rahi hai .har admi sare kam nahi kar sakta aap apni kavita ke madyam sae jagtiti la rahi hai apna farz nibha rahe hae jo khilapf bol rahe hai unka to kam hi bolana hae kyoki vo kam to khuch kar hi nahi kar saktay hai

  3. Bharat ek sanskritik pradhan desh hai. Janha dharmo ko vishesh izzat di jati hai. Hindu dharm m prachin kal se gau ki pooja or doodh or anay prapt hone wali things k liye janwaro mein visisht esathn tha. Or ise iswar ke dawiya rup m mana or pooja jata tha .gau ki sangya mata se ki jatilekin aajkal jaise gau ka upbhog k liye sanhar ho raha jo bharat ki sanskriti k liye kalank sarkar bhi hath par hath dhari bethi hai inhe bachne k liye kam s kam yuvau ko aage aa kar iska purjur virodh karna chaiye varna ye hamre liye ek sharmnak baat hai.

  4. भाई गिरीश जी, दुर्योधन कभी किसी के समझाए नहीं समझता. आप तो स्वान्तः सुखाय लिखते हैं, रचनाकार का यही धर्म है. रावण, कंस और दुर्योधन धर्म की बात न कभी समझे न समझेंगे. गो की महानता गो घातकों और उनके समर्थकों, चाटुकारों को कहाँ समझ आन लगी. आप अपनी राह उत्साह और साहस से बढ़ रहे हैं, बढ़ते रहें. सज्जन आपके साथ जुड़ते रहे ,जुड़ते रहेंगे. साधुवाद और शुभकामनाएं.

  5. Kavita achhi hai,par satya se door hai.Maanta hoon gayon ka mahatwa Bharat jaise krishi pradhaan desh ke liye bahut hai,par aisa bhi nahi hai ki uske pare socha hi na jaye.Hamlogon me se bahut aise log honge jinhone gayon ka dudh kabhi piya hi na ho,kyonki dudh dene wale praniyon mein bhains bhi to hai,phir uske bare mein kyon na socha jaye.
    Rah gayee bhagwan ki baat to ,wah hai ya nahi yah to koi nahi jaanta.Baudh dharma mein mujhe bhagwan kahi nahi dikhe. Yah doosari baat hai aab to Budha ko bhi bhaagwan ka kalki awtaar maan liyaa hai kuch dharm ke thikedaron ne.
    Kahne ka matlab itna hi hai,ki jo hai ya nahi,uske baare mein matbhed ho to bhi ek insaan doosre insaan ko uske naam par gaali na de,aur gayon aur anya pasuon ko jo hamare liye upyogi hain,theek se rakhe.

  6. गौ माता पर लिखे गए अपने गीत पर प्रतिक्रियाओं को देख रहा हूँ. कुछ साथियों ने गाय-विषयक महत्वपूर्ण सुझाव दिये है. इन्हें मै गाय की दुर्दशा पर केन्द्रित कर के लिखे गए अपने नए उपन्यास (गाय की आत्मकथा अथवा देवनार के दानव) में शामिल करूंगा. एक-दो प्रतिक्रियाएं निराश करने वाली है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. ठीक है की सावरकर जी ने गाय को सामान्य पशु कहा, लेकिन इसका मतलब यह तो नहीं, हम उसे काट कर उसका मांस ही खा जाये? गाय को माँ कहने का मतलब है उसके प्रति श्रद्धा व्यक्त करना. हम जीवन भर गाय का दूध पीते है, दूध से बनी चीज़े खाते है, और बदले में हम उसे मां कह देते है, तो क्या बुराई है? हम भारतीय है. पश्चिम के लोग नहीं. हमारी अपनी संस्कृति और जीवन शैली है. इसे तो बचा कर रखें भाई. इतने आधुनिक और व्यवहारवादी न बनें, की हिंसक-भाव से भर उठें. किसान गाय नहीं पाल सकता तो किसी गौशाला को दान कर दे. पैसे न मिलें, तो कोई बात नहीं. गाय ने उसे बहुत कुछ दिया है. किसान को क्या इस बात का संतोष नहीं होना चाहिए कि गाय कटने से बच गई. ? अगर किसी को सिर्फ पैसे चाहिए तो फिर उसे पहले यह सोचना चाहिए की क्या वह मनुष्य है? एक सज्जन ने लिखा , ”कविता लिखने से क्या होगा” , तो क्या गाली देने से कुछ होगा? कविता या कोई भी रचना अचानक परिवर्तन नहीं लाती, यह धीमी प्रक्रिया है. रचना अनेक लोगों कमान बदल देती है. अब जिनके पास मन ही न हो तो वे क्या बदलेंगे.वैसे हिंसक लोग कहाँ बदलते हैं? फिर भी लेखक को अपना काम करनाचाहिये. परिवर्तन आता है धीरे -धीरे. मै आशान्वित हूँ, इसीलिए रचनात्मक हस्तक्षेप करता रहता हूँ. .

  7. भारतीय-गौवंश के बारे में कुछ ख़ास बातें जानने योग्य हैं. एक चिकित्सक के रूप में मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ कि संसार के लगभग सभी रोगों का इलाज भारतीय गौवंश के पञ्च-गव्य, स्पर्श तथा उनकी (गौवंश) की सेवा से संभव है. ऐलोपथिक दवाइयां बनाना-बेचना संसार का सबसे बड़ा व्यापार(हथियारों के बाद)बनचुका है या यूँ कहें की बनादिया गया है. ऐसे में अपने व्यापार को बढाने के लिए हर प्रकार के अनैतिक ,अमानवीय हथकंडे अपनानेवाली बहुराष्ट्रीय-कम्पनियां गौवंश के अस्तित्व को कैसे सहन कर सकती हैं, इस सच को समझना ज़रूरी है.
    भारतीय गौधन को समाप्त करने के हर प्रयास के पीछे इन पश्चिमी कम्पनियों का हाथ होना सुनिश्चित होता है, हमारी सरकार तो केवल उनकी कठपुतली है.इन विदेशी ताकतों की हर विनाश योजना की एक खासियत होती है कि वह योजना हमारे विकास के मुखौटे में हमपर थोंपी जाती है. गोउवंश विनाश की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. वह कैसे ——?
    १.दूध बढाने के नाम पर विदेशी गौवंश को बढ़ावा दिया गयाऔर इसके लिए अरबों रूपये के अनुदान दिए गए. भारतीय गौवंश की समाप्ति चुपके से होती चलीगयी. जबकि अमेरिकी और यूरोपीय वैज्ञानिक सन 1986-88 में ही जान चुके थे कि हालिसटीन , फ्रीजियन, जर्सी तथा रेड-डेनिश नामक अमेरिकन-यूरोपियन गौओं के दूध में ‘बीटाकेसिन ए-१’ नामक प्रोटीन पाया गया है जिससे मधुमेह , मानसिक रोग, ऑटिज्म तथा कई प्रकार के कैंसर यथा स्तन, प्रोस्टेट, अमाशय, आँतों, फेफड़ों तक का कैंसर होने के प्रमाण मिले हैं. यह महत्वपूर्ण खोज ऑकलैंड ‘ए-२ कारपोरेशन’ के साहित्य में उपलब्ध है. तभी तो ब्राज़ील ने ४० लाख से अधिक भारतीय गौएँ तेयार की हैं और आज वह संसार का सबसे बड़ा भारतीय गौ वंश का निर्यातक देश है. यह अकारण तो नहीं होसकता. उसने अमेरिकी गोवंश क्यों तैयार नहीं करलिया ? वह अच्छा होता तो करता न. और हम क्या कर रहे हैं ? अपने गो-धन का यानी अपना विनाश अपने हाथों कर रहे हैं न ?
    २.दूध बढाने का झांसा देकर हमारी गौओं को समाप्त करने का दूसरा प्रयास तथाकथित दुग्ध-वर्धक हारमोनो के द्वारा किया जा रहा है. बोविन- ग्रोथ (ऑक्सीटोसिन आदि) हारमोनों से २-३ बार दूध बढ़ कर फिर गौ सदा के लिए बाँझ होजाती है. ऐसी गौओं के कारण सड़कों पर लाखों सुखी गौएँ भटकती नजर आती हैं. इस सच को हम सामने होने पर भी नहीं देख पा रहे तो यह बिके हुए सशक्त प्रचारतंत्र के कारण.
    ३.गोवंश के बाँझ होने या बनाये जाने का तीसरा तरीका कृत्रिम गर्भाधान है. आजमाकर देख लें कि स्वदेशी बैल के संसर्ग में गौएँ अधिक स्वस्थ, प्रसन्न और सरलता से नए दूध होने वाली बनती हैं. है ना कमाल कि दूध बढाने के नाम पर हमारे ही हाथों हमारे गो-धन कि समाप्ति करवाई जारही है और हमें आभास तक नहीं.
    हमारे स्वदेशी गो-धन क़ी कुछ अद्भुत विशेषताएं स्मरण करलें—————–

    *इसके गोबर-गोमूत्र के प्रयोग से कैंसर जैसे असाध्य रोग भी सरलता से चन्द रोज़ में ठीक होजाते हैं.

    *जिस खेत में एक बार घुमा दिया जाए उसकी उपज आश्चर्यजनक रूप से बढ़ जाती है जबकि विदेशी के प्रभाव से उपज नष्ट हो जायेगी. चाहें तो आजमालें.
    इसके गोबर, गोमूत्र,दूध, घी,दही लस्सी के प्रयोग से भी तो फसलें और हमारे शरीर रोगी बन रहे हैं, इसे समझना चाहिए. विश्वास न हो तो आजमाना चाहिए.
    *हमने अपने अनेक रोगियों पर अजमाया है क़ी हमारी गौओं के गोबर से बने सूखे उप्क्प्लों पर कुछ दिन तक नंगे पैर रखने से उच्च या निम्न रक्तचाप ठीक होजाता है. सर से पूंछ क़ी और १५ दिन तक रोज़ कुछ मिनेट तक हाथ फेरने से भी पुराना रक्तचाप ठीक हो जाएगा.

    **एक बड़ी कीमती और प्रमाणिक जानकारी यह है कि हमारे गो- बैल के गोबर का टुकडा प्रातः-सायं जलाने से संसार के हर रोग के कीटाणु कुछ ही देर (आधे घंटे) में मर जाते हैं. यदि गोबर के इस टुकड़े पर थोडासा गोघृत लगादेंगे तो असर और बढ़ जाएगा. इस जलते उपले के ऊपर २-४ दाने मुनक्का, दाख, किशमिश या देसी गुड के रख कर जलाने से सोने पर सुहागा सिद्ध होगा. प्लेग, हेजा, तपेदिक तक के रोगाणु नष्ट होना सुनिश्चित है. नियमित दोनों समय २ -३ इंच का गोबर का टुकड़ा इसी प्रकार जलाएं तो असाध्य कीटाणु जन्य रोग ठीक होते नज़र आयेगे, नए रोग पैदा ही नहीं होंगे. हमने ॐ और गोबर के इस प्रयोग से ऐल्ज़िमर के ३ रोगियों का इलाज करने में सफलता प्राप्त क़ी है, आप भी अपनी गोमाता पर विश्वास करके ये कमाल कर सकते हैं.

    अब ऐसे में संसार क़ी दवानिर्माता कम्पनियां आपकी गो के अस्तित्वा को कैसे सहन कर सकती हैं. इनकी समाप्ति के लिए वे कुछ भी करेंगी,कितना भी धन खर्च करेंगी, कर रही हैं. विडम्बना यह है कि जिस सच को गो- वंश नाशक कम्पनियां अच्छी तरह जानती हैं उसे आप नहीं जानते. अपने अस्तित्व क़ी रक्षा के लिए, प्राणिमात्र की रक्षा के लिए और सारे निसर्ग क़ी रक्षा के लिए भारतीय गोवंश क़ी रक्षा ज़रूरी है, इस सच को जितनी जल्दी हम जान समझ लें उतना अछा है,हमारे हित में है.

  8. डा. मधुसुदन जी ! भारतीय और विदेशी गो में मूलभूत अंतर पायागया है. केवल भारतीय गौएँ हैं जिनमें निम्न गुण हैं, विदेशी में नहीं.
    १.रचना में अंतर: *भारतीय गोवंश के चर्म में १५००से १६०० छिद्र प्रति वर्ग सेंटीमीटर होते हैं जबकि विदेशी में ४००-५०० होते हैं. इसके कारण हमारी गौएँ भारी गर्मी भी आसानी से सह जाती हैं. उनका शारीर अधिक पसीना निकालता है, अधिक ऊर्जा तथा औक्सिज़न ग्रहण करता है जिस से भीतर -बाहर शुधि-सफाई रहती है. *हमारी गौओं की पीठ गोल होती है, बाल मोटे होते हैं ,कुत्ते जैसे बारीक नहीं; आँखें बहुत सुन्दर होती हैं, गले में झालर होने के बारे में हम सब जानते हैं.
    *इसके इलावा हमारी गो अत्यंत संवेदनशील, करुणा पूर्ण, ममता से भरी और अत्यंत बुद्धिमान होती है. स्मरण शक्ति भी असामान्य होती है. संपर्क में रहे बिना इसे समझना ज़रा कठिन है. शायद विश्वसनीय न लगे, पर कहे से कहीं अधिक गुण हमारी गौओं में हैं. ईश्वरीय और अलोकिक गुणों की चर्चा अभी हम नहीं कर रहे.
    गो के बारे में कुछ वैज्ञानिक तथ्यों को जानना रोचक रहेगा. भारतीय गोवंश के दूध में बीटा-केसिन ए-2 नामक प्रोटीन पाया जाता है जिस से अनेक रोग ठीक होते हैं जबकि अधिकांश विदेशी गोवंश में बीटा-केसिन ए-1 प्रोटीन मिला है जिस से अनेक असाध्य रोग पैदा होते हैं. (कृपया प्रमाण और विस्तार के लिए ” स्वास्थ्य ” स्तम्भ में ‘हार्मोन दूध के विरोध वाला लेख देखें)
    हमारे गो-घृत से कोलेस्ट्राल (LDL) नहीं बढ़ता. अतः ह्रदय रोगी भी इस घी का भरपूर सेवन कर सकते हैं .ध्यान यह रहे कि घी केवल दही जमाकर बनाया जाय.
    योग और आयुर्वेद शास्त्रों के अनुसार भारतीय गो के शारीर में सुर्यकेतु नाडी (पीठ में) होती है जिस के कारण सूर्य की किरणों से गो के दूध में स्वर्ण अंश पैदा होता है. स्वर्ण अनेकों असाध्य रोगों का नाशक है. दूध में पायागया केरोटिन केंसर रोधक है . सेरिब्रोसाईट नामक पदार्थ से बुधि तीव्र होती है. इस दूध से पौरुष बल तथा शुक्राणुओं की वृद्धि होने के प्रमाण आधुनिक वैज्ञानिकों ने ढूंढे हैं.(प्रमाणों के लिए डा. जानी, जामनगर, रीडर-पंचकर्म, आयुर्वेद महा विद्यालय से संपर्क कर सकते हैं)
    अंत में इतना कहना है कि हमारा गोवंश इश्वर कि अद्भुत देन है जिसकी तुलना संसार के किसी पदार्थ से नहीं कि जा सकती. उसकी ऐसी दुर्दशा,ऐसी उपेक्षा ?
    नहीं जानते तो जान लेना चाहिए कि अमेरिका, यूरोपीय देशों के फूलों में सुगंध नहीं होती, भारतीय फूलों कि कोई तुलना नहीं. अब कोई पूछे कि भारत पर ही ईश्वर कि ऐसी कृपा क्यों ? तो यह मुझ अल्पज्ञ की समझ से बाहर है. पर इतना हम भारतीय जानते हैं कि ईश्वर बार बार केवल भारत में जन्म लेता है-अवतरित होताहै, गंगा जैसी अद्भुत नदी हमें सौपता है, ६ ऋतुएँ और सुगन्धित पुष्प हमें देता है,गोमाता जैसा वरदान हम भारतियों को देता है ,और ऐसे अद्भुत -पवित्र देश में मुझको जन्म देता है तोयह मेरा सौभाग्य है. उन भग्य हीनों में मैं अपना नाम नहीं लिखवाना चाहता जो यहाँ जन्म लेकर भी इसके प्रति कृतज्ञता भाव से वंचि हैं.
    वन्दे मातरम् !

  9. मैं विश्वनाथ से कुछ सवाल पूछना चाहता हूं, विश्वनाथ, कृपया इनका उत्तर देना ज़रूर देना
    १ – प्रकृति क्या है?
    २ – क्या तुम दूसरी कोई धरती बना सकते हो?
    ३ – क्या तुम दूसरा कोई सूरज बना सकते हो?
    ४ – क्या तुम खारे पानी से भरे समुद्रों को पीने योग्य बना सकते हो?
    ५ – कया तुम अपने आप को बूढा होने से रोक सकते हो?
    ६ – क्या तुम सोचते हो कि तुम्हें मौत नहीं आऐगी?
    अगर तुम ये सब कर सकते हो तो तुम भगवान हो, मगर अफसोस यह संभव नहीं है। भगवान की मर्ज़ी के बिना तो एक पत्ता तक नहीं हिलता भाई।

    —-सुशील कुमार पटियाल ९२१०९८६५७५

  10. पहली बात की इस दुनिया और पुरे भ्रमांड का निर्माण कुदरत [नेचरल पावर ] से हुवा है ! भगवान-अल्ला -येशु ये सभी के निर्माता है
    ये बाते सिर्फ किताबो और धर्म ग्रन्थ में ही रहे तो ठीक है ! अगर भगवान होता तो दुनियामे ही स्वर्ग होता ,यहाँ तो धर्म के नामपर
    जितना खून बहा है उतना तो KISI MAHAYUDH में BHI बहा है ! MANDIR ,MASJID में LOG MAR रहे KABHI BHAGDAD में तो
    KABHI BOMB SFOT में ! MUSIBAT से BHAWAAN BACHATA है तो MUSIBAAT में DALTA KAUN है ? दुनियामे ROJ DHARMKE
    ANDHI SOCHSE LOG MAR रहे है ! अगर दुनियामे DHARMO का JANM ही NAHI होता तो INSAN INSAN का BHAI होता !
    LADNA JHAGADNA NAHI होता ! धर्म में BHI ANEK GUTH है ! AAJ LOG DHARMKA PALAN KARKE SUKHI NAHI है !
    तो PARLOK स्वर्ग NARAK KISANE DEKHA है ? अगर HOGA तो KOI SABIT KARE ??

  11. हम अभी भी धार्मिक पाखंडता की खाल ओढे है ! और प्राचीन परंपरा ,बिना सैर पैर की बातों पर अंध विश्वास करते चले जा रहे है !
    हम ये भूल गए है की आधुनिक ज़माने में जीना है तो हठ धर्मी और बचपना छोड़ना होगा ! माना की गाय एक उपयुक्त पशु है !
    लेकिन गाय को जरुरतसे ज्यादा महत्त्व देना सही नहीं है ! अगर गाय दूध देना बंद करे ,बच्चे देना बंद करे तो किसान जिसे खुदका
    पालन पोषण और उसके बचोंका पालन पोषण करना मुस्किल हो तो वो बिना फायदे के गाय क्यों पालेगा ? और हम हजारो सालोसे
    गाय को पूजते है ,स्वतंत्र वीर सावरकर जो बुद्धिवादी और आधुनिक वादी थे वे कहते थे की , की गाय सिर्फ एक उपयुक्त पशु है !
    और इन्सान उससे ज्यादा सुपेरियर प्राणी है इसलिए हमने उसकी पूजा करने के बजाय गाय ने इन्सान की पूजा करनी चाहिए !
    उस वक्त भी धर्मो के ठेकेदार उनके खिलाफ जमकर हंगामा किया था ! क्या हम कभी वास्तववादी नहीं सोच सकते ! ३३ करोड़
    देव गाय के अन्दर बसते है ! क्या इसमें वास्तविकता है ?? लेकिन नहीं हम फिरभी भी आंख मूंदकर धर्म की बाते मानेंगे !
    अगर धर्म ने कहा सूरज पृथ्वी के चक्कर लगता है [बाइबल ] एक ऊँगली पर पर्वत उठाना , कुर्बनिके बाद बच्चे का जीवित होना !
    क्या सभी धर्मके इन बातोंपर सचाई है ? सभी चमत्कार या तो भूतकाल में हो गए या फिर भविष्य में होनेवाले है ,जैसे परलोक -स्वर्ग!
    वर्तमान में कोई चमत्कार नहीं दिखलाता ,इसलिए की आज धर्मके ठेकेदार झूठे पड़ जायेंगे ! अगर हिम्मत है तो कोई चमत्कार कर के
    दिखा दे !!

  12. कविता लिखने पढने से क्या होगा । गो-रक्षा कि बात कर वोट बटोरने वालो से क्या होगा। गाय की स्वदेशी नस्ल के विकास पर काम होना चाहिए। गो-पालन के लिए ईच्छुक व्यक्तियो और संस्थाओ को सुलभ तरीके से उचित मुल्य ले कर स्वदेशी नस्ल की गाय उप्लब्ध कराने वाले संस्थान स्थापित किए जाने कि आवश्यकता है । लेकिन मै देखते हु कि गाय का नाम जप कर अपनी रोटी सेंक रहे है ज्यादातर लोग ।

  13. गिरीशजी हृदय स्पर्शी और प्रतिध्वनित प्रास वाली कविता/गीत प्रदान करनेके लिए धन्यवाद। गांधीजी के विचारोंकी अवहेलना करके आजका शासन कौनसे अधिकारसे उनका नाम लेता है? पता नहीं!जब मै अकस्मात कत्ल खानोंको अनैच्छिक किंतु बलात्‌ संयोग वश देखता हूं, तो मनसे उस दॄश्यको हटाना कठिन होता है।जड चेतनमे परमात्मा के दर्शन करने वाले पूरखे कहां, और चंद मुद्रा को प्राप्त करनेके लिए गौ की हत्या सहने वाले हम जैसे जंतु कहां? आपकी रचना का पुरस्कार तो जब गौवध पर सारे भारतमे प्रतिबंध होगा, तब प्राप्त होगा? वो पुरस्कार भी आपको प्राप्त हो, ऐसी कामना करता हूं।

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