उर्दू में है शेर ज्यों, दोधारी शमशीर |
हिंदी में दोहा अटल, सही लक्ष्य का तीर |
शेरो में शायर भरे, पूरे मन के भाव |
इसी भाँति दोहा करे, सीधे मन पर घाव |
गजल शेर का एक जुज, हो इनसे परिपूर्ण |
पर दोहा है चतुष्पद, भाव भरे सम्पूर्ण |
दोहा पूर्ण यथार्थ है, भरा सार्थक तत्व |
अक्षर-अक्षर चुन रखा, बढ़ता गया घनत्व |
दोहे में शक्ति बहुत, नहीं जरा अतिरेक |
चहूँदिशि शर संधानता, जड़ा शब्द हर एक |
दो पंक्ति इस छंद की, दो धारी तलवार |
रही कहीं थोड़ी कमी, देती खाल उतार |
एक बार त्रुटि से रचा, होता है कब ठीक |
चाहे कुछ कर डालिए, हो ना पाए नीक |
कविता में सिरमौर है, ये छंदों का छंद |
मन-मस्तक पर प्यार से, करे वार निर्दवन्द |
दोहा रचना है कठिन, सरल नहीं यह जान |
कम शब्दों में भाव ले, भरने हैं निज प्रान |
यद्यपि दोहा एक है, अलग-अलग हैं भाग |
चार भाग करते निहित, जीवन का हर राग |
वाह अति सुंदर………. लाजवाब
धन्यवाद | स्नेह बनाए रखें |
प्रथम और तीजा चरण , तेरह मात्रा मान .
दूजा और अंतिम चरण , ग्यारह मात्रा जान ..
अंतिम वर्ण लघु चाहिए , गुणी गिनत गण-मान्य .
दोहे लिखे रहीम ने ,पाया बहु धन -धान्य ..
श्रीराम तिवारी
आपने पढने की कृपा की धन्यवाद | स्नेह बनाए रखें |