पाकिस्तान को पाकिस्तानी ही अब बचा सकते हैं

पंकज गांधी जायसवाल


“बकौल जिन्ना, स्टेनोग्राफर के टाइपराइटर से बना पाकिस्तान अकेले जिन्ना ने गढ़ा था।” यह कथन इस बात का प्रतीक है कि जिस राष्ट्र का जन्म एक अधकचरे, आत्म-केंद्रित और अहंकारपूर्ण दृष्टिकोण से हुआ हो, उसकी नियति लंबे समय तक स्थिर और समृद्ध नहीं रह सकती। द्वि-राष्ट्र सिद्धांत की नींव में जिन्ना का वहम, कुंठा और असुरक्षा बसी थी जो उन्हें गांधी, नेहरू, और मौलाना आज़ाद जैसे नेताओं के समक्ष स्वयं को ‘कमतर’ मानने की मानसिकता से उपजी थी। एक ऐसा राष्ट्र जिसका निर्माण विभाजनकारी सोच और असत्य सिद्धांतों पर हुआ हो, वह राष्ट्र एक दिन भीतर से दरक जाएगा, यह तय था।.

वो अपने सपने के पाकिस्तान को टाइपराइटर से उतार कर संविधान के रूप में बांच ही नहीं पाए थे कि बंटवारें के तुरंत बाद उनकी मृत्यु हो गई. इसके बाद से ही पाकिस्तान एक भ्रमित राष्ट्र हो गया जिसको दो दो बार संविधान बनाना पड़ा. आज पाकिस्तान भ्रम के इस मुहाने पर खड़ा है कि वह तय नहीं कर पा रहा है कि पाकिस्तान को उसके कायदे आजम के सपने का पाकिस्तान बनाना है या जिया उल हक़ के सपने का. जिन्ना की मृत्यु के बाद सत्ता की कुर्सी की लड़ाई ऐसी छिड़ी कि पकिस्तान आज खंड खंड पाकिस्तान के मुहाने पर आकर खड़ा हो गया है. जिस जिन्ना ने द्विराष्ट्र जैसे फेल कार्ड को यूज किया, वही द्विराष्ट्र का सिद्धांत आज उसके गले का हड्डी बना हुआ है.

भारत ने तो 1947 से लगातार सिद्ध किया कि जिन्ना  कैसे पाकिस्तानियों को अँधेरे में रख 25 करोड़ पाकिस्तानियों को अंधेरी सुरंग में डाल खुद निकल लिए जबकि बंटवारे की जिद्द करते वक़्त जिन्ना को अपनी बीमारी और अपनी बची उम्र के बारे में पता था. मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू और महात्मा गांधी जैसे वकीलों के बीच जिन्ना वकील की कुंठा ने आज २५ करोड़ पाकिस्तानियों के भविष्य को अन्धकार में डाल दिया है.

अपने जन्म के समय से ही पाकिस्तान एक अपंग राष्ट्र के रूप में सदा ही अस्थिर रहा. जिन्ना की मृत्यु (1948) और लियाकत अली खां की हत्या (1951) के बाद नेतृत्व संकट आज तक संभल नहीं पाया। 1956 में पाकिस्तान ने अपना पहला संविधान अपनाया, खुद को “इस्लामी गणराज्य” घोषित किया तो 1958 में पहली बार जनरल अयूब खान के नेतृत्व में सेना ने तख्ता पलट कर सत्ता पर कब्जा किया। 1969 में अयूब खान को हटाकर याह्या खान सत्ता में आया तो अपनी गलतियों और अहम् और वहम की वजह से बांग्लादेश को खोया. 1971 में भुट्टो प्रधानमंत्री बने और नये सिरे से राष्ट्रनिर्माण की कोशिशें की. 1973 में नया संविधान लागू हुआ तो 1974 में पाकिस्तान ने अहमदिया समुदाय को गैर-मुस्लिम घोषित कर दिया. 1977 में फिर सैन्य तख्ता पलट जनरल जिया उल हक़ के नेतृत्व में हुआ और भुट्टो को फांसी दे दी गई। ज़िया का कट्टर इस्लामीकरण अभियान शुरू हुआ. शरीयत कानून, मदरसों का विस्तार होने लगा। जाहिलियत का विस्तार होने लगा और 1988 में ज़िया की भी विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई. 1988 से 1999 के बीच बेनज़ीर भुट्टो और नवाज शरीफ के बीच सत्ता का अदल-बदल होता रहा लेकिन पाकिस्तान के शासन में जो एक बार सेना का दखल बन गया था ,उस कारण भ्रष्टाचार, सेना और ISI का प्रभाव जारी रहा।

नवाज शरीफ भारत से प्यार की पींगे बढ़ा ही रहे थे कि फिर एक सैनिक सत्ता ने परवेज मुशर्रफ के नेतृत्व में भारत और शरीफ दोनों के पीठ में छुरा घोंप कारगिल युद्ध छेड़ दिया. कारगिल युद्ध के बाद नवाज शरीफ का तख्ता पलट कर मुशर्रफ सत्ता में आए। फिर बेनजीर भुट्टो की भी हत्या हो गई. नवाज शरीफ परवेज मुशर्रफ के बीच लुका छिपी का खेल जारी रहा. कभी ये विदेश भागे तो कभी वो विदेश भागे. इसी बीच सेना के दुलारे बने इमरान को सेना 2018 में सत्ता में ले आई पर बाद में इसी इमरान खान से सेना का मोह भंग हो गया और सेना ने साजिशन इमरान खान पूर्व प्रधानमंत्री को जेल में डाल दिया और कठपुतली प्रधानमंत्री शाहबाज शरीफ को गद्दी पर बैठा दिया.

इन सब चीजों के बीच सेना और न्यायपालिका का लगातार हस्तक्षेप जारी रहा. पाकिस्तान में आटे से लेकर हर चीज महँगी होती गई. आर्थिक संकट गहराता गया. वह IMF से बेलआउट की गुहार लगाता रहा. पाकिस्तान की जनता इन विफलताओं के कारण सड़क पर ना उतर पाए, इसलिए पाकिस्तान की सेना  हमेशा भारत को एक दुश्मन के रूप में अवाम के सामने प्रोजेक्ट करती रही . बिना सैन्य और सुरक्षा खतरे के सेना को अपने शासन के वजूद का आधार नहीं मिल पाता. इसके लिए भारत के साथ दुश्मनी और इसके लिए कश्मीर का इस्तेमाल उनकी स्थायी नीति बन गई जिसके कारण आज पाकिस्तान की जनता पिस रही है. पाकिस्तान की भारत-विरोध रणनीति और “सुरक्षा राज्य” की मानसिकता ने उसके संसाधनों को सैन्य खर्च और आतंकियों को समर्थन में झोंक दिया न कि सामाजिक विकास में। इस कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था IMF, अमेरिकी अनुदान .चीन और खाड़ी देशों के कर्ज पर आधारित रही. अब सच्चाई ये है कि पाकिस्तान की सेना ने पाकिस्तान को फंसा दिया है. पाकिस्तान आज चारो  तरफ भारत, अफगानिस्तान, ईरान और बलूचिस्तान से घिर गया है और यह कभी भी कोलैप्स हो सकता है.

पाकिस्तान की सेना उन्हें भारत के डर का अफीम पिलाती रहती है और अपने वजूद को बचाये रखती है. चूंकि भारत से उलट पाकिस्तान में सेना ब्यूरोक्रेसी की तरह नागरिक प्रशासन में घुसी हुई है, इसलिए नागरिक सरकार भी उन्हें  डोमिनेट नहीं कर पाती क्यूंकि ऐसा करने से पाकिस्तान की व्यवस्था कुछ समय के लिए कोलैप्स हो जाएगी और इसी का फायदा वहां की सेना उठाती रहती है.

इस तरह का अपंग राष्ट्र हैंग सत्ता की स्थिति आ जाए तो सम्पूर्ण क्रांति ही इसका समाधान है जिसमें अंतरिम अवधि के लिए एक अंतरिम सरकार या सलाहकार का गठन हो, नए संविधान और सिस्टम की रचना हो और फिर से पाकिस्तान को एक लोकतांत्रिक गणराज्य के रूप में स्थापित किया जाय. मौजूदा पाकिस्तान की बेवकूफी पाकिस्तान में सम्पूर्ण क्रांति का आधार पैदा कर रही है. भारत को बस सधे क़दमों से बढ़ते हुए पाकिस्तानियों को ही इस पाकिस्तान का भविष्य खाने वाले सेना और नेताओं को खिलाफ खड़ा करना चाहिए. भारत को पाकिस्तान के अवाम के साथ मिलकर एक तरफ तो खुद आतंक के अड्डों को ख़त्म करना चाहिए तो दूसरी तरफ पाकिस्तान की इस दूसरी मुक्ति वाहिनी को लोकतान्त्रिक तरीके से लड़ने के लिए नैतिक और रसद समर्थन दे. उन्हें उनके भविष्य निर्माण के लिए खुद से तैयार करना चाहिए. अब पाकिस्तान को सिर्फ पाकिस्तानी ही बचा सकते हैं, और कोई नहीं.

पंकज गांधी जायसवाल

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