
दिसंबर में शादी की पचासवीं साल गिरह मनाई थी कई साड़ियाँ उपहार में मिल गई एक दो भाई दोज पर मिली थी अलमारी मे रख दीं कल अलमारी खोली तो मुझसे लड़ने को तैयार थीं एक बोली “कम से कम ब्लाउज़ तो सिलवा लेती कि जब मौका आये तो पहन लो।” मैने कहा “बहना लॉकडाउन में तेरा मौक़ा कहाँ आयेगा!” उधर हैंगर पर लटके सूट चिल्लाये “ओ साड़ी!तेरा मौका तो आने से रहा ये तो हमें ही अलमारी से नहीं निकालती।” नीचे एक बास्केट में चार पाँच सूट बोले…. “हम पुराने हो गये है….. कभी हम भी शान से तुम्हारी तरह हैंगर में लटके रहते थे…… अब आलम ये है कि हर तीसरे चौथे दिन मैडम वाशिंग मशीन मैं डाल देती हैं घूम घूम कर चक्कर आने लगे है। हमें रिटायर कर दें तब तुम्हारी भी यही हालत होगी,पर मैडम आसानी से रिटायर नहीं करती बूढ़ी हो गई हैं न। काश,हम किसी नव योवना की अलमारी में होते” “चुप , नवयौवना …वो क्या तुम जैसों को ख़रीदती…. जब तक हैंगर में हो ख़ुश रहो।” हैंगर वाले बोले “हम तो अलमारी में साँस नहीं ले पा रहे हैं,घुटन हो रही है।”
हैंगर और बास्केट वाले सूटों की बातें सुनकर बेचारी साड़ियाँ कोमा में चली गईं….