अशोक कुमार झा
“तुम पानी रोकोगे, हम तुम्हारी सांसें बंद कर देंगे” – यह लफ्ज़ किसी आतंकी माफिया के नहीं, बल्कि एक देश की फौज के प्रवक्ता के हैं।
21वीं सदी के लोकतांत्रिक और वैश्विक मूल्यों के दौर में जब पूरी दुनिया जलवायु परिवर्तन, शांति, और समावेशी विकास पर बात कर रही है, उस समय पाकिस्तान जैसे देश की सेना ने एक बार फिर यह सिद्ध कर दिया है कि वह न केवल आतंकी संगठनों की सरपरस्त है, बल्कि स्वयं आतंकी सोच की औपचारिक प्रतिनिधि भी है।
पाकिस्तान की आतंकी भाषा: जनरल या जिहादी?
पाकिस्तानी सेना के प्रवक्ता लेफ्टिनेंट जनरल अहमद शरीफ चौधरी द्वारा भारत को खुलेआम धमकी दी गई –
“अगर आप हमारा पानी रोकेंगे, तो हम आपकी सांसें बंद कर देंगे।”
यह बयान न केवल अवांछित है, बल्कि पूरी सभ्यता के मुँह पर तमाचा है। जब एक राष्ट्र की वर्दीधारी प्रतिनिधि इस तरह की भाषा का इस्तेमाल करता है, तो यह स्पष्ट हो जाता है कि वह लोकतंत्र या कूटनीति की नहीं, बल्कि कट्टरता, जिहाद और नफरत की भाषा में विश्वास करता है।
इस कथन के पीछे छिपी मानसिकता और रणनीति को समझना बेहद जरूरी है। यह सिर्फ भारत के खिलाफ युद्ध की धमकी नहीं, बल्कि भारत की आत्मा और अस्तित्व पर हमला है।
सिंधु जल संधि: संयम का प्रतीक, अब निर्णायकता का युग
1960 में भारत और पाकिस्तान के बीच विश्व बैंक की मध्यस्थता से हुई सिंधु जल संधि आज तक एकतरफा रूप से भारत द्वारा निभाई जाती रही है। हिंदुस्तान ने अंतरराष्ट्रीय संधियों और कूटनीतिक मर्यादाओं का पालन करते हुए पाकिस्तान को वह पानी दिया, जिसकी वजह से उसकी ज़मीन, उसकी फसल और उसका अस्तित्व टिका हुआ है।
लेकिन बदले में क्या मिला?
कारगिल, पठानकोट, उड़ी, पुलवामा, और अब पहलगाम – खून, विस्फोट, और आतंक!
भारत का 23 अप्रैल 2025 का निर्णय, जिसमें सिंधु जल संधि के कुछ प्रावधानों को निलंबित किया गया, न केवल न्यायसंगत था, बल्कि एक आवश्यक रणनीतिक उत्तर भी था। पाकिस्तान की आतंकी मशीनरी को यह समझना होगा कि अब पानी बहाना, अपने ही नागरिकों की हत्या के बराबर होगा।
पहलगाम हमला: शांति की कोशिशों पर बारूद
जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में 26 निर्दोष पर्यटकों की हत्या – यह न केवल मानवता पर हमला था, बल्कि हिंदुस्तान की सहिष्णुता और धैर्य की परीक्षा थी। यह हमला आतंकवाद की पराकाष्ठा था, और उसी के जवाब में भारत ने अपने जल संसाधनों के प्रबंधन को राष्ट्रीय सुरक्षा नीति से जोड़ा।
इस निर्णय से बौखलाए पाकिस्तान ने पहले हाफिज सईद के वीडियो वायरल करवाए और फिर सेना के प्रवक्ता की ज़ुबान से वही भाषा बुलवाई। यह प्रमाण है कि पाकिस्तानी सेना और आतंकवाद एक ही सिक्के के दो चेहरे हैं।
“सांसें बंद” धमकी: यह सिर्फ शब्द नहीं, एक रणनीतिक घोषणा है
इस तरह की भाषा महज़ बयान नहीं है – यह एक राष्ट्र द्वारा दूसरे राष्ट्र के खिलाफ घोषित असममित युद्ध है। यह चेतावनी नहीं, बल्कि खुलेआम “आत्मघाती जिहाद” की घोषणा है, जो पाकिस्तान ने न केवल भारत बल्कि स्वयं के नागरिकों पर भी थोपी है।
क्या यह वही पाकिस्तान नहीं है जिसने परमाणु बम को “इस्लामी बम” कहकर प्रचारित किया था?
क्या यह वही पाकिस्तान नहीं है जिसने ओसामा बिन लादेन को अपने सैन्य अड्डे पर वर्षों तक छुपाया?
और क्या यह वही पाकिस्तान नहीं है जिसकी संसद में तालिबानी आतंकवादियों को “शहीद” कहा गया?
भारत की रणनीति: संयम के बाद अब प्रतिशोध का युग
भारत अब सिर्फ निंदा, विरोध या डोज़ियर से बात नहीं करेगा। अब भारत की भाषा होगी – प्रभाव, परिणाम और प्रतिबंध।
भारत के पास पाँच स्पष्ट रणनीतिक कदम हैं:
1. सिंधु जल संधि का पूर्ण पुनर्मूल्यांकन और स्थगन:
अब पाकिस्तान को एक भी अतिरिक्त बूंद पानी नहीं मिलनी चाहिए।
2. पाकिस्तानी सैन्य नेतृत्व को आतंक समर्थक घोषित करना:
संयुक्त राष्ट्र और FATF में मुकम्मल डोज़ियर के साथ पाकिस्तान की सेना के प्रवक्ताओं और ISI अधिकारियों को ब्लैकलिस्ट करवाना।
3. पारंपरिक और डिजिटल युद्धक्षेत्र में जवाब:
पाकिस्तान की झूठी कूटनीति और आतंकी नीति को ग्लोबल मीडिया और सोशल प्लेटफॉर्म्स पर बेनकाब करना।
4. भारत में जल प्रबंधन का नया युग:
उत्तर भारत से दक्षिण भारत तक नदी जोड़ परियोजनाओं और जल पुनर्निर्देशन कार्यों को युद्ध स्तर पर लागू करना।
5. राष्ट्रीय जल सुरक्षा अधिनियम:
जल संसाधनों को अब केवल पर्यावरणीय या सिंचाई मुद्दा न मानकर सीधे राष्ट्रीय सुरक्षा से जोड़ा जाए।
विश्व मंच पर दोहरा मापदंड:
मानवाधिकार कहाँ हैं जब भारत पर हमला होता है?
जब एक देश की फौज दूसरे देश की “सांसें बंद” करने की धमकी दे रही है, तो क्यों नहीं संयुक्त राष्ट्र, अमेरिका, यूरोप या इस्लामिक सहयोग संगठन इस पर प्रतिक्रिया दे रहे?
क्या भारत के नागरिकों की जान की कीमत नहीं?
क्या हिंदुस्तान को शांतिपूर्ण बने रहना ही उसकी कमजोरी समझा जाएगा?
अब विकल्प नहीं, केवल संकल्प का समय है
भारत को अब इस संकट को अवसर में बदलना होगा।
जिस दिन पाकिस्तान ने हमारे पानी पर सवाल उठाया, उसी दिन हमने यह तय कर लेना चाहिए कि अब हम उनके अस्तित्व की नींव – पानी – को ही पुनर्परिभाषित करेंगे।
क्योंकि अब युद्ध केवल सरहद पर नहीं लड़ा जाएगा। यह युद्ध हमारी नदियों में लड़ा जाएगा, हमारी नीतियों में, और हमारी एकता में।
अब न पानी बहेगा, न माफ किया जाएगा
भारत अब 1960 वाला नहीं है। यह 2025 का नया भारत है – जो अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए शब्दों से नहीं, निर्णयों से जवाब देगा। पाकिस्तान को यह समझ लेना चाहिए –
“अगर तुम हमारी सांसें बंद करने की बात करोगे, तो हम तुम्हारे प्यासे झूठ को इतिहास की कब्र में दफना देंगे।”
यह अब सिर्फ पानी की लड़ाई नहीं रही – यह विचारधारा, भविष्य और वजूद की लड़ाई है। और हिंदुस्तान अब पूरी तैयारी के साथ मैदान में उतर चुका है।
अशोक कुमार झा