जीवधारियों में शायद मनुष्य एक ऐसा प्राणी है जिसके बच्चे की परवरिश सबसे अलग व संघर्षपूर्ण है | पहले माता बच्चे को नौ महीने अपनी कोख में पालती है उसके उपरान्त जब बच्चा सूर्य की रोशनी देखता है तो माता-पिता के लिए उसका सरंक्षण व पालन-पोषण चुनौती भरा होता है |
पहले माता-पिता के आमतौर पर आधा दर्ज़न से ज्यादा ही बच्चे हुआ करते थे लेकिन अब बढ़ती महंगाई व शिक्षा के चलते लोगों ने एकल परिवार व छोटे परिवार की पद्धति को अपनाया है | जहाँ सयुंक्त परिवार के अपने कुछ फायदे थे वहां एकल परिवार की अपनी कुछ खामियां है | सयुंक्त परिवार में बच्चे अपने बजुर्गों से आदर्श जीवन बिताने की कार्यशैली सीखते थे तथा परिवार में एक-दूसरे के लिए त्याग करने की भावना पैदा होती थी | जब कभी परिवार पर कोई संकट आता था तो सभी सदस्य सांझे तौर पर उस दर्द को अनुभव करते थे तथा उसका समाधान खोज निकालते थे | बच्चे अपने से बड़ों की इज्ज़त करते थे तथा उनके दिए उपदेशों की अनुपालना करते थे | परन्तु आज एकल परिवार पद्धति में न तो घर में बुजुर्ग रहे और न ही कोई संस्कार | यदि किसी परिवार में कोई बुजुर्ग रहता भी है तो परिवार में उसे एक बोझ के रूप में समझा जाता है | बुजूर्गों की देखभाल केवल लोक-लाज़ का विषय बन गया है | परिवार में आज बच्चों को संस्कार देने के लिए न तो दादा-दादी है और न ही माता-पिता के पास समय है | परिणामस्वरूप मनुष्यजाति की औलाद आज रास्ते से भटक रही है |
ऐसा नही है कि आज का युवा जुझारू नहीं है या वह परिस्थितियों से लड़ने की क्षमता और हिम्मत नहीं रखता | वस्तुतः वह पहले के युवाओं से अधिक प्रभावशाली ढंग से अपने कार्य को कर सकता है | आवश्यकता बस उसके सामने सच्चे आदर्श प्रस्तुत करने की है | वास्तव में माता-पिता व शिक्षक बच्चों के आगे आदर्श प्रस्तुत करने में नाकाम हो रहे हैं | बढ़ते हुए भौतिकवाद के चलते पैसा कमाने के लिए नैतिक मूल्यों को बलि चढ़ा दिया जाता है | जब स्वयं माता-पिता में एक-दूसरे के प्रति बलिदान करने की भावना नही होगी तो स्वभाविक है कि बच्चों में भी यह संस्कार विकसित नही हो सकता | आज ज्यादातर घरों में मियां-बीबी के बीच में कलेश चल रहे हैं जिनके चलते उनके बच्चे पथ भ्रष्ट हो रहे हैं | माता-पिता के पास पैसा अधिक होने की वजह से वे अपने बच्चों को हर सुविधा उपलब्ध करवाने के चक्कर में उन्हें बर्बादी की तरफ ले जा रहे हैं | कम बच्चे होने की वजह से माता-पिता के दिमाग में असुरक्षा की भावना रहती है जिसके कारण उनके बच्चे इस परिस्थिति का लाभ उठाते है तथा अपनी इच्छा पूर्ति के लिए अपने माता-पिता को ब्लैकमेल करते हैं |
आज के समय में पैसा कमाने के लिए व्यक्ति हर नैतिक व अनैतिक साधन प्रयोग कर रहा है | प्रकृति का यह नियम है कि अनैतिक तरीके से कमाया हुआ धन परिवार में अशांति लाता है | पैसा अधिक होने की वजह से आज स्कूल के बच्चों से लेकर विश्वविद्यालय तक प्रत्येक लड़का-लड़की के पास कीमती मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप नैट सुविधा के साथ माता-पिता ने उपलब्ध करवा रखें है जोकि बच्चों को बिगाड़ने में सबसे ज्यादा कारगर साबित हो रहे हैं | नैट सुविधा होने की वजह से आज बच्चे इस प्रकार के दृश्य व बातें मोबाइल फ़ोन पर तथा कंप्यूटर पर देख रहे हैं जिनको देख व सुन कर बड़े-बड़े ऋषि-मुनियों की भी तपस्या भंग हो सकती है | यही कारण है कि आज किसी भी शिक्षा संस्थान में चले जाएँ उसके चारों तरफ सड़कों, पार्कों व जंगलों में अधिकतर लड़के-लड़कियां अश्लील हरकतें करते हुए देखे जा सकते हैं | ऐसा लगता है जैसे मानों कामदेव ने इन बच्चों पर कामबाण छोड़ रखा हो | यहाँ तक कि लड़कियां भी नशे में डूबी हुई नज़र आने लगी है | माता-पिता ने अपने बच्चे पढ़ने के लिए इन संस्थानों में भेजे होते हैं लेकिन उन्हें नही मालूम कि वे कितना समय अपनी पढ़ाई पर व कितना ऐश-परस्ती पर लगाते हैं | ज्यादातर लड़कों को माता-पिता ने मोटरसाईकिल व अन्य वाहनों से लैश कर रखा है जिस कारण वे हर कहीं दुर्घटना का शिकार हो रहे हैं | यहाँ तक कि कुछ बच्चे स्कूलों और कालेजों में नशावृति के शिकार हो चुके हैं तथा कुछ एक ड्रग्स के व्यापार में भी संलिप्त हो गये हैं | आलम यह है कि माता-पिता या तो इन सब बातों से अनभिज्ञ हैं या फिर आँखें मूंद कर बैठे हैं | शिक्षकों का एकमात्र ध्येय पैसा कमाना बन गया है इसीलिए वे भी अच्छे नागरिक पैदा करने में अक्षम हो गये हैं | अत: माता-पिता के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती अपने बच्चों को सही मार्ग पर ले जाने की है और यह तभी संभव है जब माता-पिता व शिक्षक स्वयं बच्चों के सामने आदर्श पेश करें | जब माता-पिता व शिक्षक स्वयं नशावृति के शिकार हो तो वे अपने बच्चों से नशे से दूर रहने की अपेक्षा नही कर सकते | यदि माता-पिता स्वयं अनैतिक तरीके से धन अर्जित करके घर चला रहे हो तो उस घर में शैतान का आना स्वभाविक है |
आज की पीढ़ी की बर्बादी के पीछे माता-पिता व शिक्षकों का सबसे बड़ा योगदान है | यदि माता-पिता व शिक्षक उच्च कोटि के आदर्श रखते हों तो उनके बच्चे व शिष्य कदापि अपने मार्ग से विचलित नही हो सकते | इसीलिए माता–पिता सावधान! आपके बच्चे आपकी नजरों के दायरे में इस प्रकार रहने चाहिए जिसका पता आपके बच्चों को भी न लग पाए कि उनके माता-पिता उन पर नज़र रखें हैं | यदि किसी माता-पिता के बच्चे रास्ते से भटक रहे हैं तो तुरंत बच्चों के शिक्षकों से संम्पर्क करें | यदि स्थिति ज्यादा खराब है तो किसी समाजसेवी संस्था से परामर्श करके सुधार लाने का प्रयतन करें | स्थिति के नियंत्रण से बाहर होने पर स्थानीय पुलिस का सहारा लेने से भी संकोच न करें |
बच्चों को सही मार्ग पर ले जाने व भौतिकवाद व कलयुगी सोच से बचाने के लिए माता-पिता को बच्चे के पैदा होने से लेकर अपने पैरों पर खड़ा होने तक लगातार संघर्षमय रहना चाहिए | याद रखें आदर्श व संस्कार पैसों से नही खरीदे जा सकते लेकिन इतना जरुर है कि अधिक पैसों के कारण आदर्श व संस्कार टूटते नज़र आते हैं | इसीलिए बच्चों को जेब खर्च कम से कम दें, उनके खर्च करने के तरीकों पर नज़र रखें, उनके दोस्तों की जानकारी रखें तथा स्कूल व कालेज में होने के दौरान उन पर पैनी नज़र रखें | यदि कोई लड़का-लडकी माता-पिता के सामने कोई ऐसी मांग रखता है जो उसकी मंजिल पाने के लिए आवश्यक नही, तो उसे पूरा न करें | माता-पिता स्वयं नशावृति से दूर रहें व आसपास के क्षेत्र में भी नशाखोरी समाप्त करने के लिए कार्य करें | कभी भी घूसखोरी व अनैतिक तरीकों से कमाया हुआ धन अपने परिवार पर खर्च न करें | अपने बच्चे को अपने से बड़ों व शिक्षकों की इज्ज़त करना सिखाएं तथा मानसिक व शारीरिक तौर पर स्वस्थ रखने के लिए योग का सहारा लें |
बच्चों की शिक्षा के लिए शिक्षण संस्थानों की संख्या बढ़ाई जा रही है, लेकिन वे संस्थान अपने मूल प्रयोजन की पूर्ति कितने अंशों में कर पा रहे हैं, इस ओर कोई ध्यान नही देना चाहता | बच्चों से अच्छा जीवन जीने की उम्मीद तो सभी करते है, लेकिन जीवन की बारीकियां और वास्तविकताएं उन्हें समझाने के लिए न माता-पिता तैयार होते हैं न ही शिक्षक | बच्चों से संयमशीलता की आशा करने वाले बच्चों के लिए अच्छा आदर्श व वातावरण प्रस्तुत करने से हमेशा कतराते रहते हैं | बच्चों की शक्ति का मनचाहा उपयोग कर लेने में सभी को उत्साह है, लेकिन उसका “विचलित मन” ठीक करने में किसी की रूचि नही है | आदेश के अनुगमन के लिए बच्चों को बहुत से उपदेश तो दिए जाते हैं, लेकिन यदि वे उस रास्ते पर चलना चाहें तो उनका साथ देने के लिए कोई तैयार नही होता | ऐसे सैंकड़ों उदहारण सामने दिखाई देते हैं, जिनमें यह कटु सत्य है कि नई पीढ़ी से जितनी अधिक अपेक्षाएं की जाती हैं, व्यावहारिक स्तर पर उनके प्रति उतनी ही उपेक्षा भी बरती जाती है | उनके हित की कामना करने वाले तो बहुत हैं, लेकिन उनके हित को संवारने वालों की कमी है | यह अभाव मिटाना होगा, तभी नई पीढ़ी से प्रगति के स्वपन साकार हो सकेंगे |
माता-पिता सावधान ! अपने बच्चों का रखें ख्याल अन्यथा बुढ़ापे में होंगे बुरे हाल |
बी. आर. कौंडल
श्री कौंडल जी द्वारा प्रस्तुत रचना माता पिता को सावधान करते कल के संयुक्त अथवा आज के एकल परिवार में बच्चों के आधुनिक लालन-पालन द्वारा उनमें अच्छे सार्थक आदर्श एवं संस्कार पर गंभीर वार्ता है| आज अद्भुत सूचना-प्रौद्योगिकी के आगमन व उसके प्रयोग के अच्छे बुरे प्रभाव से अछूता न रह पाते भारतीय युवाओं के जीवन पर माता पिता के अतिरिक्त उनके सामाजिक वातावरण का विशेष महत्व है| उस आधुनिक सामाजिक वातावरण के स्वयं अंग होते हुए माता पिता में उत्तम आदर्श व अच्छे संस्कार अवश्य ही एक अच्छे समाज की नींव हैं| ऐसी स्थिति में केवल माता पिता ही नहीं, समस्त समाज नागरिकों में अच्छे आदर्श एवं संस्कार की संरचना कर पाए गा| ऐसे समाज में संतान के न होने पर बूड़े दम्पति का भी नहीं होगा बुरा हाल!