डॉ घनश्याम बादल
बच्चों का पालन पोषण आज के ज़माने में कोई आसान नहीं है बल्कि उन्हें बचपन से ही सही दिशा दिखाने एवं उनके करियर संवारने के लिए माता-पिता को सजग रहना पड़ता है । एक ओर जहां उनके स्वास्थ्य एवं खान-पान पर ध्यान देना होता है वहीं उतना ही जरूरी है शिक्षा के क्षेत्र में उन्हें सही मार्गदर्शन देना एवं उनकी मदद करना । यदि बचपन से ही उन्हें सही शैक्षिक मार्गदर्शन मिल जाए तो इससे उनका आत्मविश्वास ही नहीं बढ़ता है अपितु उनके सीखने की ललक और क्षमता दोनों में ही अभिवृद्धि होती है।
बच्चों को घर पर शैक्षिक गाइडेंस देने के लिए पेरेंट्स को उचित एवं व्यवहारिक रणनीतियाँ अपनानी चाहिएं, जिससे पढ़ाई मज़ेदार और प्रभावी हो सके।
पढ़ाई हो नियमित
बिना पढ़ाई लिखाई के बच्चे का वर्तमान एवं भविष्य दोनों ही चौपट हो सकते हैं इसलिए उनकी शिक्षा दीक्षा पर माता-पिता को समुचित ध्यान देना चाहिए । बच्चों की पढ़ाई का समय एवं सीमा तय करते हुए व्यावहारिक होना बहुत ज़रूरी है। केवल एक आदर्शवादी टाइम टेबल बनाने से बात नहीं बनेगी बल्कि बच्चों की आयु, क्षमता, रुचि एवं एप्टीट्यूड देखकर रणनीति बनानी चाहिए ।
गृह कार्य में करें मदद
बच्चों के गृह कार्य एवं स्वाध्याय के लिए एक नियमित टाइमटेबल बनाएं ताकि पढ़ाई की आदत बने। इसमें खेलने और आराम का भी समय अवश्य शामिल करें ताकि संतुलन बना रहे। यदि आप बच्चे से हर समय पढ़ने की अपेक्षा करेंगे एवं उन्हें हर समय ‘पढ़ लो, पढ़ लो’ कहेंगें बच्चों पर अनावश्यक दबाव पड़ेगा एवं पढ़ाई में उसकी अरुचि भी विकसित हो सकती है। यह भी जरूरी है कि बीच-बीच में वे क्या पढ़ रहे हैं एवं उनकी क्या समस्या है इस पर भी जरूर ध्यान दें। उनके साथ मित्रवत व्यवहार करने की कोशिश करें लेकिन इतना भी नहीं कि वह आपकी बात मानने से ही इन्कार कर दे।
अध्ययन स्थल दें
कहावत है कि अध्ययन एवं चिंतन मनन के लिए एकांत स्थान का होना ज़रूरी है इसलिए बेहतर हो कि घर में एक कोना ऐसा रखें जहाँ बच्चे बिना किसी डिस्टरबेंस के पढ़ सकें। यदि घर में पर्याप्त स्थान है तो उनके लिए एक अलग स्टडी रूम या स्टडी टेबल की व्यवस्था ज़रूर करें ।
सहेजना सिखाएं
बच्चों को इस तरह का प्रशिक्षण भी जरूर दें कि अपनी ज़रूरी स्टेशनरी, किताबें और नोट्स व्यवस्थित रखें। बच्चों को अपना बैग विद्यालय के टाइम टेबल के अनुसार लगाना ज़रूर सिखाएं अन्यथा बच्चा विद्यालय में भी काफी समय पुस्तकें ढूंढने एवं बैग को व्यवस्थित करने में ख़राब कर करेगा।
आसान तरीका
एक आसान सा तरीका यह भी हो सकता है कि गृह कार्य करने के तुरंत बाद ही वह विद्यालय के अगले दिन के टाइम टेबल के अनुसार अपनी पुस्तकें एवं कॉपी तथा अन्य सामग्री बैग में व्यवस्थित कर ले। उसे यह भी प्रशिक्षण अवश्य दें कि विद्यालय में भी एक कालांश की पढ़ाई के बाद बच्चा कॉपी किताबें बैग में सबसे पीछे की ओर लगाता जाए जिससे हर बार आगे से किताबें,कॉपी एवं अन्य सामग्री आसानी से मिल जाएं। यदि यह रणनीति अपनाई जाएगी तो बच्चों को बार-बार बैग भी नहीं लगाना पड़ेगा ।
बैग भी चेक करें
माता-पिता को चाहिए कि समय-समय पर कभी बच्चे से स्वयं अपना बैग चेक कराएं और कभी उसकी अनुपस्थिति में भी उसका बैग ज़रूर चेक करें ताकि उसके बैग में अनावश्यक या अवांछित वस्तुएं या कॉपी किताबें आदि अव्यवस्थित न रहें।
छोटे लक्ष्य बनाएं
बच्चे छोटे होते हैं इसलिए उनके लक्ष्य भी छोटे-छोटे से ही तय करें एक साथ बड़ा या दूरगामी लक्ष्य उन्हें न दें। बड़े – बड़े चैप्टर्स को छोटे-छोटे हिस्सों में बाँटें। रोज़ का एक छोटा लक्ष्य तय करें जिससे बच्चा बोझ महसूस न करे।
बच्चों की रुचि देखें
अब वह ज़माना नहीं रहा जब सब कुछ आप स्कूल पर छोड़ देते थे । विद्यालय एवं शिक्षकों की भूमिका अब काफी सीमित हो गई है अतः बच्चों के अध्ययन में आपको भी सक्रिय होकर लगना पड़ेगा।
चार्ट्स, नोट्स, फ्लैश कार्ड्स, एक्टिविटीज़ और कहानियों से पढ़ाई में रुचि बढ़ाएं। वीडियोज़ और एजुकेशनल गेम्स का भी उपयोग कर सकते हैं । बच्चों की पीपीटी या प्रेजेंटेशन बनाने में तकनीकी मदद उनके उत्साह को दोगुना कर देगी।
खुद शामिल हों
हालांकि आज के व्यस्तता भरे जीवन में बच्चों के अध्ययन में खुद को शामिल करना आसान काम नहीं है लेकिन फिर भी यथासंभव बच्चों के साथ मिलकर पढ़ें या होमवर्क में उनकी मदद करें।उनसे सवाल पूछें और उन्हें सीखने का मौका दें इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है।
धैर्य बनाए रखें
बच्चों को पढ़ाते वक्त सबसे ज्यादा परीक्षा मां-बाप के धैर्य की होती है यदि बच्चा एक दो बार में समझाने पर नहीं समझ पा रहा है तो अपना टेंपर लूज न करें बल्कि थोड़े समय के लिए बच्चे को फ्री कर दें । उसे खुद करके देखने दें , केवल अपनी ही तकनीकी उस पर न थोपें कई बार आप देखेंगे बच्चा मां बाप से बेहतर अपने आप कर देता है।
सकारात्मक प्रतिक्रिया दें
बच्चा जब कभी उत्साह से भरकर कोई कार्य करता है और आपको दिखाता है तो
उसकी तारीफ़ करें, केवल अच्छे मार्क्स की रट न लगाए रखें । अक्सर देखने में आता है कि बच्चे अंक तो अच्छे ले आते हैं लेकिन व्यावहारिक एवं सामाजिक जीवन में में उतना अच्छा नहीं कर पाते इसलिए अंकों को बच्चों की योग्यता से न जोड़ें तो ही बेहतर होगा। ग़लती पर डाँटने की बजाय सुधारने का तरीका सिखाएँ।
स्कूल के टच में रहें
कम से कम सप्ताह में एक बार यह जानें कि बच्चा क्या सीख रहा है और कहाँ कठिनाई हो रही है। स्कूल टीचर्स के भी संपर्क में रहें। अधिकतर माता-पिता शिक्षक अभिभावक संगोष्ठी में इतनी हड़बड़ी में जाते हैं कि केवल साइन करके वहां से निकलना चाहते हैं और बच्चे के बारे में नकारात्मक सुनना नहीं चाहते इसलिए जब भी आप इन संगोष्ठियों में जाएं तो पर्याप्त समय लेकर जाएं एवं यदि बच्चे के बारे में कुछ नकारात्मक बताया जा रहा है तो उसे भी धैर्य पूर्वक सुनें एवं उसका क्या हल हो सकता है उसके बारे में शिक्षकों का मार्गदर्शन लें । यदि आप शिक्षक से सहमत नहीं है तो प्रशासनिक अधिकारियों से बात करें।
प्रेशर न बनाएं
बेशक पढ़ाई जरूरी है लेकिन इसका अर्थ यह नहीं कि आप बच्चे पर इतना प्रेशर डाल दें कि वह तनाव ग्रस्त रहने लगे या उसका मानसिक संतुलन बिगड़ जाए । इसलिए ज़्यादा दबाव न डालें, ज़रूरत हो तो ब्रेक दें।तनाव या चिंता के संकेतों को समझें और प्यार से बात करें।
खेल-खेल में पढ़ाएं
शिक्षाविदों एवं मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि बच्चे खेलने एवं क्राफ्ट कार्य बहुत मन से करते हैं। अतः पढ़ाई में खेल व एक्टिविटी की मदद लें, जैसे “गणित की रेस”, सुडोकू , वर्ग पहेली, अंत्याक्षरी, ब्रिक गेम आदि।
सौ टके की एक बात
और अंत में सौ टके की एक बात। बच्चों को हर हाल में प्रोत्साहित करना है । कमियां भी बताएं तो इस तरीके से कि बच्चा हतोत्साहित न हो । यें छोटी-छोटी सी बातें यदि ध्यान में रखेंगे तो आप बच्चों की बहुत बड़ी मदद कर पाएंगे और यह करना इसलिए भी जरूरी है क्योंकि यह बच्चा ही तो आपका भविष्य है ।
डॉ घनश्याम बादल