जब मैं खाना चाहता था
अपना रुखा-सूखा खाना ।
वह मेरी नींद चुराना चाहता था
जब मैं सोना चाहता था
थक-हारकर एक पूरी नींद ।
वह मेरे प्यास के पीछे भी पड़ गया
जब मैं पीना चाहता था
चुल्लू भर पानी ।
वह मेरे घर को हथियाना चाहता था
जब मैं नहीं था
अपने उस फुटपाथ पर ।
उसने पूरी ताकत लगा दी
हड़प करने के पीछे
लेकिन फिरभी
मैंने खाना खाया
नींद ली
प्यास भी बुझायी
किसी तरह ।
हाँ, नहीं बच सका
मेरा घर
जो छतविहीन थी
फिरभी
मैं खुश हूँ
अपनी जीत पर
कि मैंने उससे
अपना खाना
अपनी नींद
और अपनी प्यास बचायी
घर की चिंता
न तब थी
न अब है ।
मोतीलाल