कविता

कविता:आरक्षण की वेदी पर…-बीनू भटनागर

आरक्षण के मुद्दे पर,

यों तो सब दल साथ खड़े हैं,

इतनी छीना झपटी देखकर,

हम तो शर्मसार खड़े हैं।

संसद तो बन गया अखाड़ा,

कुश्ती देखो, देखो दंगल,

सारे पहलवान खड़े हैं।

 

जाति आधारित आरक्षण का,

अब कोई आधार नहीं है,

इसके चलते जिनके पू्र्वज,

ऊँची कुर्सी पा चुके हैं,

उन्हीं के वंशज बार बार,

आरक्षण क्यों पा रहे हैं।

 

देखो वो रिक्शेवाला,

हिन्दू है या मुसलमान,

दलित है या सवर्ण,

ख़ून पसीना बहा बहा कर,

अपनी रोटी कमा रहा है,

उसके बेटे को तो हम,

डाक्टर नहीं बना रहे हैं।

 

देखो वो पण्डित बेचारा,

दान दक्षिणा धोती कु्र्ता पाकर,

अपनी रोटी रोज़ी कमा रहा है,

दलित नहीं है इसीलिये,

उसकी बेटी को हम आरक्षण,

नहीं दिला रहे हैं।

अफ़सर नहीं बना रहे हैं।

 

 

आरक्षण की वेदी,

पर कितनी आशायें,

मलीन हुई हैं,

कितने होनहार छात्रों की,

उम्मीदें शहीद हुई हैं,

फिर भी हमारे नेता,

जात पांत मे बाँट बाँट कर,

वोटों का गणित लगा रहे हैं।

इसीलियें बस सारे दल,

इस मुद्दे पर साथ हुए हैं।

 

स्वतन्त्रता के सत्तरवे दशक मे,

जाति आधारित आरक्षण का,

अब कोई औचित्य नहीं है,

फिर भी साल दर साल हम,

आरक्षण का प्रतिशत,

क्यों बढा रहे हैं।