रोकते क्यों हो
रूक पाऊँगा
इतनी शक्ति नहीं
तुम मुझको रोको
माँ के आँचल में
पिता के स्नेह में
घर के आँगन में
सात किताबें पढे हो
चापलूसी और परिक्रमा से
आठ सीढियां चढ़े हो
गरीबों की रोटी छीन
अपनी कोठियां भरे हो
घमंड इसका, जरा सोच
मातृछाया से दूर
परमपिता की छांह में
खुले आसमान में
सप्तऋषियों का मैंने ज्ञान पढ़ा है
उनके सान्निध्य में
अष्ट सिद्धियाँ पाया हूँ
अपनी नौनिधि लूटाकर
गरीबों की झोली भरी है
ज्ञान से भरे दंभी कण्व को
गुणगान का परिणाम देख
है वक्त का पहिया घूमने का
उसमे अपना नया किरदार देख
एकबार सिन्धु को नष्ट किया
फिर भी मैंने वेद दिया
वेद उपनिषद् छोड़ दिया
फिर भी मैंने शंकराचार्य दिया
वक्त को तुमने बाँट दिया
बेवक्त अगर आऊँ
तो रोकते क्यों हो
राम नहीं कृष्ण नहीं
ईसा नहीं क्रिस्ट नहीं
मै तो रामदेव हूँ।
-स्मिता