रक्षा बंधन जैसे पवित्र त्यौहार के तुरंत बाद हरियाणा के हिसार शहर से आई एक चौंकाने वाली खबर ने लोगों को झकझोर कर रख दिया। सीएम फ्लाइंग टीम, स्वास्थ्य विभाग और पुलिस की संयुक्त कार्रवाई में एक ऐसे गिरोह का भंडाफोड़ हुआ, जो मिठाई की दुकानों पर नकली और गला-सड़ा मावा सप्लाई कर रहा था। दो अलग-अलग स्थानों पर छापेमारी कर 8.55 क्विंटल सड़ा हुआ मावा बरामद किया गया, जो गंदगी के बीच भंडारित था।
त्यौहारों पर मिठाई का सेवन भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा है, खासकर रक्षा बंधन पर लगभग हर घर में मिष्ठान जरूर बनता या खरीदा जाता है। लेकिन, इसी भावनात्मक जुड़ाव का फायदा उठाते हुए कुछ लोग न केवल मुनाफाखोरी कर रहे हैं, बल्कि सीधे लोगों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ भी कर रहे हैं। जांच में सामने आया कि यह गिरोह मात्र ₹130 प्रति किलो के भाव से मावा शहर की नामी-गिरामी दुकानों तक पहुंचा रहा था, जबकि वही मावा उपभोक्ताओं को ₹500 किलो तक के भाव में बेचा जा रहा था। इस तरह उपभोक्ता न केवल लुट रहे थे, बल्कि ज़हर को मिठाई के रूप में खा भी रहे थे।
इस नकली व सिंथेटिक मावे का असर स्वास्थ्य पर कितना घातक हो सकता है, इसका अंदाज़ा इसी बात से लगाया जा सकता है कि शहर के अस्पतालों में पेट और पाचन से संबंधित रोगियों की लंबी कतारें लगनी शुरू हो गई हैं। डॉक्टरों के अनुसार, ऐसे मिलावटी मावे में हानिकारक रसायन, सड़ा दूध और कृत्रिम रंग होते हैं, जो फूड प्वॉइजनिंग, अल्सर, लीवर व किडनी की गंभीर बीमारियों का कारण बन सकते हैं। कई मामलों में यह स्थिति जानलेवा भी साबित हो सकती है।
चिंता की बात यह है कि यह कोई पहली या आखिरी घटना नहीं है। यह गोरखधंधा कितने समय से चल रहा था, इसकी कोई ठोस जानकारी नहीं है। सवाल यह भी है कि जिन मिठाई विक्रेताओं ने सस्ते भाव में यह मावा खरीदा, क्या उन्हें इसकी असलियत का अंदाजा नहीं था? क्या उन्हें नहीं पता था कि इतनी कम कीमत में मिलने वाला मावा असली नहीं हो सकता? यदि उन्हें मालूम था, तो यह और भी गंभीर अपराध है, क्योंकि उन्होंने जानबूझ कर उपभोक्ताओं को मौत परोसी।
इस पूरे मामले में दोषी केवल नकली मावा बनाने वाले ही नहीं, बल्कि वे व्यापारी भी हैं, जिन्होंने मुनाफे के लालच में बिना गुणवत्ता जांच किए इसे बेचा। उपभोक्ता के भरोसे और स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करना किसी भी सूरत में माफ नहीं किया जा सकता।
प्रशासन की इस कार्रवाई की सराहना की जानी चाहिए, लेकिन यह भी सच है कि ऐसे मामलों पर अंकुश लगाने के लिए केवल छापेमारी ही काफी नहीं है। आवश्यक है कि—
नकली और मिलावटी खाद्य पदार्थों के मामलों में दोषियों को सख्त से सख्त सजा दी जाए।
खाद्य पदार्थों की गुणवत्ता जांच के लिए नियमित निरीक्षण हों।
दुकानों पर बिकने वाले मावे व मिठाई के नमूनों की लैब टेस्ट रिपोर्ट सार्वजनिक की जाए।
उपभोक्ताओं में जागरूकता फैलाई जाए ताकि वे सस्ते और संदिग्ध उत्पाद खरीदने से बचें।
त्यौहार खुशियों का प्रतीक होते हैं, न कि अस्पतालों की लंबी कतारों का कारण। इसलिए ज़रूरी है कि समाज, प्रशासन और व्यापारी—सभी मिलकर यह सुनिश्चित करें कि मिठास के नाम पर किसी की जिंदगी से खिलवाड़ न हो। हिसार का यह मामला एक चेतावनी है कि यदि समय रहते सख्ती नहीं बरती गई, तो नकली खाद्य पदार्थों का यह जाल हमारे घरों तक पहुंचकर स्वास्थ्य को चौपट कर देगा।
मिठाई का स्वाद तभी तक मीठा है, जब तक वह सुरक्षित है; वरना यह मीठा ज़हर हमारे जीवन की सबसे बड़ी कड़वाहट बन सकता है।
– सुरेश गोयल धूप वाला