समाज

आरक्षण समाज निर्माण का औजार बने

डॉ अनिल जैन

आरक्षण समाज निर्माण का औजार बने, समाज को टुकड़ों में बटने वाला हथियार नहीं |

एक चिकित्सक के रूप में हम यह कह सकते हैं कि शरीर के किसी अंग के कमजोर होने या उसमें कोई दोष उत्पन्न होने के स्थिति में अन्य अंगों के वनिस्पत रोगग्रस्त अंग का इलाज पहले और जल्दी करना पूरे शरीर को स्वस्थ रखने के दृष्टि से जरुरी होता है | समाज के स्वास्थ्य का ख्याल भी कुछ उसी प्रकार रखना जरुरी है | सामाजिक-आर्थिक आधार पर हमारे भारतीय समाज के भूत,वर्तमान और भविष्य पर चर्चा जरुरी है, जिससे कि आरक्षण भविष्य में देश के तरक्की का आलंबन बने, न कि सामाजिक मज़बूरी रूपी अपंगता की वैशाखी | सनातन शब्द निरंतरता का प्रतिक है जिसमें कोई ठहराव भी नहीं है और कोई हठधर्मिता भी नहीं | इसीलिए सनातन जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिवर्तन सहज है | भारत की सांस्कृतिक धारा का पहचान वही है किन्तु समयानुरूप इसके सामाजिक, आर्थिक, और राजनीतिक प्रवाह में कई मोड़ भी दिखता है | हिंदी साहित्य की मूर्धन्य विदुषी महादेवी वर्मा अपने पुस्तक ‘भारतीय संस्कृति के स्वर’ में लिखतीं हैं कि भारतीय सांस्कृतिक धारा के किसी एक मोड़ पर खड़े होकर पीछे की धारा का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है, उसके वास्तविकता का साक्षात्कार करना दुर्लभ है क्यों की यह धारा तो सनातन है | भारतीय समाज में हुए किसी भी बदलाव को जब हम इस नदी के प्रवाह के रूप में देखेंगे तो पाएंगे कि बहुत सी बातें सिर्फ अनुमानित हीं है, जिसे हम इतिहास के रूप में पढ़ रहे हैं | कुछ प्रमाणों के आधार पर भारत का सामाजिक इतिहास अब 5000 वर्ष की हो गई है,जिसे वामपंथी इतिहासकार भी मानने लगे हैं | लेकिन स्मृतियों, संहिताओं, पुराणों और वेद के काल पर कोई निश्चितता नहीं बन पाई है | और यह सत्य है कि इन ग्रंथों का रचना काल पाँच हजार वर्ष से भी अधिक है | साथ हीं इन ग्रंथों में वर्णित समाज का काल ग्रन्थ के रचना काल से भी कहीं ज्यादा है | ऐसे में सामाजिक ढांचें और उसमें हुए निरंतर बदलाव का अध्ययन भी वैदिक काल से होना अपरिहार्य है | आरक्षण का लाभ सिर्फ जरुरतमंदों को ही मिलना चाहिए और जरुरतमंद कौन है इसका निर्धारण उसके जाति,पंथ या क्षेत्रीयता से नहीं हो बल्कि उसके जीवन यापन के मूलभूत सुविधाओं के उपलब्धता और अनुपलब्धता के आधार पर हो | सैकड़ों वर्षों से दबे और सुविधाओं से वंचित अपने ही समाज के बंधू-बांधवों को वो सभी सुविधाएँ मिले जिससे की समाज में उनकी प्रतिष्ठा और आगे बढ़ने का समान अवसर उन्हें भी प्राप्त हो सके | आरक्षण सर्वांगीं विकास में सहायक हो, न कि समाज को जाति,पंथ या किसी अन्य मुद्दे पर बांटने का औजार बन जाय, यह भी ध्यान में रखने योग्य है | लेकिन एक और बात काफी महत्वपूर्ण है कि आरक्षण की जरुरत और आरक्षणवादी मानसिकता के फर्क को समझना होगा | सरकारी नौकरी में आरक्षण के आधार पर भर्ती के बाद पदोन्नति का आधार भी आरक्षण ही हो यह जरुरी नहीं है बल्कि पदोन्नति में अवसर की समानता का अधिकार लागू हो | आरक्षण के सबसे बड़े दोष को अर्थात क्रीमी लेयर को पहचानना और उसे हटाना भी जरुरी है ताकि उसी समाज के अन्य लोगों को सुविधा मिले और जल्दी ही आरक्षण विहीन समरस समाज की स्थापना हो | आरक्षण का मुद्दा आन्दोलन का रूप न ले साथ ही आरक्षण देश के तरक्की में भविष्य का सबसे बड़ा रोड़ा न बने | जब गरीब, गरीब ही रह जाये और जाति,पंथ के नाम पर आरक्षण लेने वाला तब भी आरक्षित बना रहे |

वास्तव में जरुरत हमारे सोच में बदलाव लाने की भी है | हम सब एक ही उदर से पैदा हुए हैं अर्थात हम सभी सहोदर है यदि ये भाव समाज में निहित हो जाये तो क्या हमारा समाज एक आदर्श समाज नहीं बन सकता ! जिस आदर्श समाज कि कल्पना मनु ने किया, जिस समर्थ समाज कि कल्पना चाणक्य ने किया | वह समाज में ‘सहोदर’ भाव की जाग्रति से संभव है | सरकारी सुविधाओं में आरक्षण मात्र से समाज के उस पिछड़े वर्ग का उत्थान नहीं होगा, बल्कि प्रत्येक समर्थ का यह कर्त्तव्य बनता है कि वह अपने उदारता,सहिष्णुता का परिचय दे और अपने सामर्थ्य के अनुरूप सामाजिक कार्यों में सहयोग सुनिश्चित करे |