एक दूसरे के विचारों का आदर करना  ही लोकतन्त्र का तक़ाज़ा है।

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विजय सहगल 

19 दिसम्बर 2024 का दिन भारतीय लोकतन्त्र के लिये शर्मसार करने वाला था। पक्ष और विपक्ष के राजनैतिक मतभेद आपसी मनभेद मे बदल गये, यहीं आपसी सम्बन्धों का अधोपतन, हिंसक धक्का मुक्की और अनैतिकता की पराकाष्ठा तक जा पहुंची। इस हिंसक धक्का मुक्की मे माननीय भाजपा  सांसद प्रताप सारंगी और मुकेश राजपूत घायल हो गये। इस हिंसक धक्का मुक्की मे सारंगी जी को चोट के कारण, माथा लहू-लुहान हो गया, जिसमे 5-6 टांके लगाने पड़े और सांसद मुकेश राजपूत को बेहोशी की हालत मे दिल्ली के राम मनोहर लोहिया हॉस्पिटल के  आईसीयू मे भर्ती करवाना पड़ा। ये घृणित कृत्य किसी गली छाप व्यक्तियों के बीच होता तो भी समझा जा  सकता था लेकिन ऐसी धक्का मुक्की उन माननीय सांसदों के बीच हुई जिन पर देश के 140 करोड़ लोगो के प्रतिनिधित्व करने की ज़िम्मेदारी थी।

दुर्भाग्य ये कि इस धक्का मुक्की का आरोप नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर लगाया गया। राजनैतिक दृष्टि से नेता प्रतिपक्ष का कद, शासक  पक्ष के प्रधानमंत्री  के समकक्ष होता है। ये अत्यंत ही चिंताजनक और दुःखद है कि नेता प्रतिपक्ष जैसे  जिम्मेदारी और सम्मानजनक पद पर आरूढ़ राहुल गांधी पर इस हिंसक धक्का-मुक्की के आरोप लगाये गये। इस हिंसक धक्का मुक्की के विरुद्ध, भाजपा सांसदों द्वारा नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी के विरुद्ध पुलिस मे प्राथमिकी दर्ज़ कराई गयी है।  यही नहीं नागालैंड की भाजपा  महिला राज्यसभा सदस्य फांगनोन कोन्याक ने भी नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी पर  आरोप लगाया कि राहुल गांधी, मेरे सामने आ गए और ऊंची आवाज मे उनसे दुर्व्यवहार किया जिससे वे असहज महसूस कर रही थी। एक महिला सांसद से राहुल गांधी का ऐसा दुर्व्यवहार भी अप्रशंसनीय कहा जाएगा। इस आशय की शिकायत भी माननीय सांसद कोन्याक द्वारा राज्यसभा के सभापति को दे दी गयी।     

भाजपा सांसद प्रताप सारंगी और मुकेश राजपूत ने आरोप लगाया कि नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने उनको धक्का दिया जिससे वे गिर पड़े और चोटिल हो गये। कॉंग्रेस की ओर से ये बतलाया जा रहा है कि राहुल गांधी  चोटिल हुए सांसद प्रताप सारंगी को देखने पहुंचे!! नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी ने अपनी सफाई मे कहा कि विपक्षी सांसद अंबेडकर की प्रतिमा से शांतिपूर्वक संसद भवन की ओर जा रहे थे मगर, संसद भवन की सीढ़ियों पर भाजपा के सांसदों के हाथों मे लकड़ियाँ थी और वे विपक्षी सांसदों का रास्ता रोककर खड़े हो गये थे।            

पर टीवी और सोश्ल मीडिया मे वाइरल हो रहे विडियो मे राहुल गांधी के हाव-भाव, बोलचाल और शारीरिक भाषा को देखकर तो ऐसा कतई नहीं दिखता?  वीडियो मे राहुल गांधी का इस संदर्भ मे प्रत्युत्तर कि धक्का उन्होने (प्रताप सारंगी ने दिया, आश्चर्य और हतप्रभ करने वाला था. कैसे 70 वर्षीय सांसद सारंगी उनको धक्का दे सकते है? भारतीय संस्कृति और संस्कारों का ये तक़ाज़ा था कि धक्का-मुक्की के आरोप-प्रत्यारोप से विलग राहुल गांधी का ये नैतिक और मानवीय कर्तव्य था कि वे 70 वर्षीय लहूलुहान घायल,  वरिष्ठ सांसद प्रताप सारंगी का हाल चाल पूंछते और जाने अनजाने हुए कृत्य पर खेद प्रकट करते, तो न केवल नेता प्रतिपक्ष के पद अपितु सांसद के साथ कॉंग्रेस मे  नेहरू-गांधी जैसे प्रतिष्ठित,  सम्मानीय  परिवार के सदस्य की पद प्रतिष्ठा मे वृद्धि होती और वे अपने पद के साथ न्याय कर पाते पर अफसोस यहाँ भी राहुल गांधी आपने अहंकार, घमंड और श्रेष्ठता के भाव से ग्रसित नज़र आये? जब उन्हे मालूम था कि भाजपा सांसद पहले से ही मकर द्वार के सामने खड़े होकर प्रदर्शन कर रहे हैं और सुरक्षा बलों ने संसद भवन मे प्रवेश हेतु,  किनारों पर से रास्ता बनाया हुआ है, तब प्रदर्शनरत  सांसदों के बीच से ही राहुल गांधी के, संसद भवन मे प्रवेश करना उनकी हठधर्मिता दर्शाता है। जानबूझ कर प्रदर्शनरत भाजपा सांसदों के बीच मे से जबर्दस्ती प्रवेश करने को राहुल गांधी की  ढिठाई, धृष्टता, बेहयाई न कहा जाय तो क्या कहा जाय? उनका ताकत और बल पूर्वक धक्का देकर दोनों सांसदों को घायल करना, उनकी मंशा पर बहुत बड़ा प्रश्न चिन्ह खड़ा करती  है?  गाहे-बगाहे उनका ऐसा व्यवहार  आम जनता और राजनैतिक दलों मे ये धारणा बलवती करता  है कि  नेहरू गांधी परिवार का सदस्य होने के नाते वे  अपने आपको आम लोगो से श्रेष्ठ और कानून से ऊपर मानते हैं?

वहीं दूसरी ओर कॉंग्रेस  अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खडगे ने लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को पत्र लिख कर शिकायत की है कि मकर द्वार पर भाजपा सांसदों ने उनके साथ धक्का मुक्की की है जिससे उनका संतुलन बिगड़ने के कारण वह गिर पड़े। उन्होने जाँच की मांग की है।   

लोकसभा और राज्य सभा के सभापति और पुलिस के समक्ष  राहुल गांधी के विरुद्ध शिकायत दर्ज़ कराई गयी है। जाँच के उपरांत ही इस विषय मे आगे कार्यवाही सुनिश्चित की जायेगी परंतु ये आवश्यक है कि माननीय सांसदों को अपने आपसी राजनैतिक मतभेदों को मत और मतांतरों से परे एक दूसरे के विचारों का आदर करना चाहिये, यही  लोकतन्त्र का तक़ाज़ा है।

विजय सहगल 

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