विकसित भारत के संकल्प में सहयोगी क्रांतियाँ

डॉ. नीरज भारद्वाज

विकसितभारत के संकल्प को पूरा करने में देश के हर क्षेत्र और व्यक्ति का बहुत महत्वपूर्ण योगदान है। विकसित भारत के संकल्प को साकार करने में और देश को आगे बढ़ाने में आजादी के बाद से ही समय-समय विभिन्न क्रांतियों ने एक बड़ी भूमिका निभाई है। क्रांति शब्द सुनकर माना यह जाता है कि लोगों का बड़ा समूह, राजनीतिक हलचल आदि। विचार करें तो क्रांति परिवर्तन का सूचक है। किसी भी क्षेत्र में परिवर्तन से पहले उसमें क्रांति होती है।

 स्वतंत्रता के बाद देश में अनाज की पैदावार को बढ़ाने के लिए हरित क्रांति लाई गई। 1960 के दशक के आखिरी दौर में पंजाब से हरित क्रांति की शुरुआत हुई। उस समय  खेती के तरीकों में बड़ा बदलाव हुआ। पारंपरिक तरीकों से अलग औद्योगिक व्यवस्था की ओर ध्यान दिया गया और ज़्यादा उपज वाली किस्म के बीजों को लाया गया।  खेती में मशीनी उपकरण, सिंचाई तंत्र, खाद और कीटनाशक के प्रयोग पर ज़ोर दिया गया। विचार करें तो आजादी के बाद देश में खाद्य सामग्री को लेकर बड़ा संकट रहा। अंग्रेज यहाँ से सभी कुछ लूट कर ले गए थे, हमें अपना जन और भूखंड मिला। अंग्रेज जन और भूखंड के भी दो हिस्से करके, दो देश बनाकर चले गए। उस समय देश के सामने कई बड़ी चुनौतियाँ थी। हमने धीरे-धीरे उन सभी का सामना करके समाधान निकाल लिए।

1970 के दशक में भारत में श्वेत क्रांति (दुग्ध क्रांति) की शुरुआत हुई। इस क्रांति को ‘ऑपरेशन फ़्लड’ के नाम से भी जाना जाता है। इसने दूध की कमी झेल रहे देश को दुनिया में सबसे ज़्यादा दुग्ध उत्पादन करने वाला देश बना दिया। देश अब नई चाल से चलने लगा। लाल क्रांति ने टमाटर और मांस के उत्पादन को काफी बढ़ावा दिया है। यह क्रांति काल 1980 के दशक में शुरू हुआ और 2008 तक चला। विचार करें तो आज भी हम इन सभी क्रांतियों का सहयोग ले रहे हैं। भारत में नीली क्रांति मत्स्य पालन का एकीकृत विकास और प्रबंधन योजना के कार्यान्वयन के लिए है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह सरकार द्वारा जलीय कृषि उद्योग के विकास के लिए की गई एक पहल है। इसका उद्देश्य इस व्यापार से जुड़े लोगों के जीवन यापन में सुधार करना है।

पीली क्रांति भारत में खाद्य तेलों और तिलहन फसलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए है। शुरूआत में इसका उद्देश्य भारत को तिलहन उत्पादन में आत्म निर्भर बनाना रहा और आज भारत इस क्षेत्र में आत्म निर्भर बन गया है। गुलाबी क्रांति जिसे पिंक रिवोल्यूशन भी कहा जाता है। भारत में गुलाबी क्रांति मांस और मुर्गी पालन क्षेत्र में तकनीकी तथा प्रक्रियागत सुधारों को दर्शाती है। काली क्रांति पेट्रोलियम खनिज तेलों के उत्पादन को बढ़ाने के लिए है। इसमें एथेनोल का उत्पादन भी बढ़ाया जायेगा, इस विचार को रखा गया साथ ही इसका संबंध कोयला उत्पादन से भी है। धूसर क्रांति उर्वरक उत्पादन में वृद्धि से है। रजत क्रांति भारत में अंडा उत्पादन और मुर्गियों की उत्पादकता बढ़ाने के लिए है। देश में आंध्र प्रदेश राज्य इसका सबसे बड़ा उत्पादक है। सुनहरी क्रांति का संबंध बागवानी उत्पादन में वृद्धि से है, जिसमें फल विशेषकर सेब उत्पादन से है। इसे शहद उत्पादन से भी जोड़ा जाता है। भारत सब्जी और फल उत्पादन में विश्व में दूसरे स्थान पर है।

इन्द्रधनुषी क्रांति इसमें हरित, पीली, नीली, लाल, गुलाबी, धूसर आदि अन्य सभी क्रांतियों को साथ लेकर चलने का लक्ष्य है। जुलाई 2000 में नई कृषि नीति को लागू किया गया, इसी को इन्द्रधनुषी क्रांति कहा गया है। सदाबहार क्रांति का उद्देश्य देश की मिट्टी को उन्नत बनाना, किसानों को लोन दिलाना, रेन वाटर हार्वेस्टिंग तथा कृषि शोध को बढ़ाना है। गोल क्रांति का संबंध देश में आलू के उत्पादन को बढ़ाना है। भारत चीन के बाद विश्व का दूसरा सबसे बड़ा आलू का उत्पादक देश है। भारत में सबसे अधिक आलू उत्तर प्रदेश में होता है। इन क्रांतियों से अलावा भी देश में अलग-अलग क्षेत्रों में क्रांतियाँ होती रही हैं। प्रेरित प्रजनन (induced breeding) क्रांति, स्वर्णिम क्रांति सिल्वर क्रांति आदि।

 इन सभी क्रांतियों के साथ आज तकनीकी क्रांति भी देश में तेजी से आगे बढ़ रही है। आज हमारा देश जवान, किसान, विज्ञान और अनुसंधान हर क्षेत्र में तेजी से कार्य कर रहा है। हमें राजनीतिक बातों के साथ-साथ इन सभी विषयों पर भी चर्चा-परिचर्चा करते रहना चाहिए।

डॉ. नीरज भारद्वाज

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