विधानसभा चुनाव से रूबरु महाराष्ट्र और हरियाणा

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तनवीर जाफ़री
चुनाव आयुक्त द्वारा महाराष्ट्र की 288 तथा हरियाणा की 90 विधानसभा सीटों पर होने वाले आम चुनावों की विधिवत् घोषणा कर दी गई है। कार्यक्रम के अनुसार 15 अक्तूबर को इन राज्यों में चुनाव संपन्न होंगे जबकि वोटों की गिनती का काम 19 अक्तूबर को होगा। हरियाणा में इस बार 1.62 करोड़ मतदाता चुनाव में मतदान कर सकेंगे जबकि 8. 26 करोड़ मतदाता महाराष्ट्र में मतदान में शिरकत करेंगे। हालांकि भारतीय जनता पार्टी द्वारा पूरे उत्साह के साथ इन दोनों राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों की प्रतीक्षा की जा रही थी। परंतु पिछले दिनों उत्तराखंड,बिहार,कर्नाटक,मध्यप्रदेश,उतरप्रदेश,राजस्थान,गुजरात राज्यों में हुए विधानसभा तथा संसदीय उपचुनावों में भाजपा को मिली शिकस्त के बाद भाजपा संगठन में खलबली मच गई है। पार्टी ने जिस प्रकार मुज़फ्फरनगर में सांप्रदायिक तनाव के वातावरण में लोकसभा चुनावों के समय उत्तर प्रदेश के प्रभारी तथा वर्तमान पार्टी अध्यक्ष अमित शाह के ‘बदला लेने’ जैसे गैरजि़म्मेदाराना वक्तव्य की आड़ में तथा साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ के ज़हरीले भाषणों की छत्रछाया में लोकसभा की 71 सीटें जीती थी पार्टी को उम्मीद थी कि शायद वही प्रयोग उपचुनावों में भी दोहरा कर पार्टी अपनी विजय पताका फहरा सकती है। और अपनी इसी रणनीति के तहत पार्टी ने योगी आदित्यनाथ को उत्तर प्रदेश के उपचुनावों का प्रभारी नियुक्त कर उन्हें राज्य में घूम-घूम कर ज़हर उगलने के लिए ‘अधिकृत’ कर दिया था। मज़े की बात तो यह है कि चुनाव आयोग ने तो लव जेहाद पर जनता में सांप्रदायिकता फैलाने तथा एक के बदले सौ लड़कियां ले जाने जैसे उनके बेहूदे व गैरजि़म्मेदाराना एवं भडक़ाऊ बयानों पर तो संज्ञान लिया तथा इन्हें नोटिस भी जारी किया। परंतु भाजपा नेताओं की ओर से न तो योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध कोई कार्रवाई की गई और न ही उसे नियंत्रित करने हेतु कोई सार्वजनिक बयान जारी किया गया। यहां यह कहना गलत नहीं होगा कि या तो आदित्य योगी भाजपा के बनाए हुए मास्टर प्लान पर काम कर रहे थे या फिर उनके ज़हरीले व आपत्तिजनक वक्तव्यों को भाजपा का समर्थन हासिल था।
बहरहाल, इस विष मंथन का परिणाम यह निकला कि भारतीय जनता पार्टी न केवल उतरप्रदेश में 11 में से केवल तीन सीटें हासिल कर सकी बल्कि लोकसभा की भी एक सीट वह प्रदेश में जीत नहीं पाई। यही नहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की संसदीय सीट के अंतर्गत पडऩे वाली एक विधानसभा सीट भी भाजपा नहीं जीत सकी। राजस्थान में भी 4 सीटों के उपचुनाव में तीन सीटों पर कांग्रेस को विजय मिली। उतराखंड में लोकसभा चुनावों के फौरन बाद ही उपचुनाव हुए थे जिसमें भाजपा को तीनों सीटों पर हार का मुंह देखना पड़ा था। वहां तो भाजपा के पूर्व मुख्यमंत्री रमेश पोखरियाल निशंक भी विधानसभा का उपचुनाव हार गए। कहने का तात्पर्य यह है कि मात्र तीन महीने के भीतर ही यह नज़र आने लगा है कि जनता अब भाजपा के झूठे वादों तथा उसके आडंबर से भलीभांति वाकि़फ हो गई है। सौ दिन में काला धन देश में वापस लाने का दावा करने वाले भाजपाई नेता अब या तो इधर-उधर अपनी नज़रें बचाते फिर रहे हैं या फिर यह कहते नज़र आ रहे हैं कि काला धन वापस लाना आसान नहीं। मंहगाई भी यूपीए शासनकाल से कहीं आगे जा रही है। जबकि पार्टी के रणनीतिकार जनता को आंकड़ों से बहलाने की कोशिश कर रहे हें। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हालांकि अपनी नेपाल व जापान यात्रा में किए जा रहे ‘भावनात्मक’ प्रदर्शनों के द्वारा जनता पर अपनी छाप छोडऩे की कोशिश कर रहे हैं चीनी राष्ट्रपति के भारत दौरे के समय भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया। परंतु   राजनैतिक विश£ेषक इन सभी बातों को मोदी का महज़ ड्रामा व भ्रमित विदेश नीति का नाम दे रहे हैं।मिसाल के तौर पर चीन व जापान एक-दूसरे के धुर विरोधी तथा एक-दूसरे से गहरा बैर रखने वाले देश हैं। ऐसे में नरेंद्र मोदी द्वारा बनारस के विकास के लिए जापान से समझौता करना तथा दूसरी ओर देश में स्मार्ट सिटी बनाने के लिए चीन से समझौता करना यह दोनों आपस में विरोधाभासी निर्णय हैं। लगभग उसी तरह जैसे कि मोदी ने अपने शपथग्रहण समारोह में तो पाक प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ को निमंत्रण देकर अपनी उदारता का तथा सार्क देशों में सबसे बड़े देश का प्रधानमंत्री होने का परिचय दिया था। परंतु सत्ता में आते ही उन्होंने पाकिस्तान द्वारा सीमा पर की जा रही घुसपैठ के चलते पाकिस्तान से बातचीत के दरवाज़े बंद कर दिए। गोया ‘शाल-साड़ी डिप्लोमेसी’ पर व्यर्थ समय नष्ट किया गया। ऐसी ही स्थिति चीन के साथ भी जारी है। दोनों देशों के नेता लंच व डिनर में मशगूल रहे और चीनी सैनिकों की घुसपैठ सीमा पर बदस्तूर जारी है।
लगभग 4 महीने के भाजपा के शासनकाल में जनता को किस प्रकार लोकलुभावनी नीतियों व बातों से बहलाने की कोशिश की जा रही है तथा अपने सांप्रदायिक एजेंडे को जिस तरह आगे बढ़ाया जा रहा है जनता बहुत जल्दी इन बातों से वाकि़फ हो चुकी है। कम से कम उपचुनावों के परिणाम तो ऐसी ही संदेश दे रहे हैं। ऐसे में महाराष्ट्र व हरियाणा में जहां कि कांग्रेस की सरकारें सत्ता में हें, क्या इन राज्यों में भाजपा अपने सपनों को पूरा करते हुए कांग्रेस को पराजित कर सकेगी? जहां तक हरियाणा का प्रश्र है तो प्रदेश के मुख्यमंत्री  भूपेंद्र सिंह हुड्डा अपनी सरकार की उपलब्धियां चुनाव घोषण से पूर्व ही अपने विभिन्न प्रकार के प्रचार माध्यमों के द्वारा  आम लोगों तक पहुंचाते रहे हैं। उनका दावा है कि राज्य में सैकड़ों ऐसी योजनाएं हैं जिसमें वे दावे के साथ यह कह रहे हैं कि देश के अन्य राज्यों की तुलना में हरियाणा का स्थान पहले नंबर पर है। वैसे भी उन्हें विपक्षी दलों से इतनी चुनौती नहीं मिल रही है जितनी कि पार्टी के बागी नेताओं द्वारा पेश की जा रही है। जिस प्रकार 2009 में चौधरी भजनलाल को मुख्यमंत्री न बनाए जाने के चलते भजनलाल परिवार ने पार्टी से बग़ावत कर नई पार्टी हरियाणा जनहित कांग्रेस का गठन कर लिया था। उसी प्रकार राव इंद्रजीत सिंह भी प्रदेश का नेतृत्व करने का मौका न मिलने के कारण परंतु गुडग़ांव का समग्र विकास न होने के बहाने को सार्वजनिक करते हुए कांग्रेस छोडक़र भाजपा में शामिल हो गए तथा भाजपा के टिकट पर गुडग़ांव से सांसद चुनकर केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल हो गए। उसी तजऱ् पर राज्य के एक और दिग्गज कांग्रेसी नेता वीरेंद्र सिंह ने कांग्रेस का साथ छोडक़र भाजपा का दामन थामने का फैसला कर लिया है। राज्य में और भी कई नेता ऐसे हैं जो भूपेंद्र सिंह हुड्डा से अपना व्यक्तिगत मनमुटाव रखते हैं। और चुनाव आने से पूर्व कल तक अपना पूरा मुंह चाशनी में डुबोए रखने वाले यही नेता अब न सिर्फ मुख्यमंत्री हुड्डा में तमाम कमियां निकाल रहे हैं बल्कि चुनाव के समय उन्हें हरियाणा भी पिछड़ा हुआ नज़र आने लगा है।
राज्य की एक और सत्ता की मज़बूत दावेदार पार्टी इंडियन नेशनल लोकदल भी सत्ता में वापस आने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंके हुए है। हालांकि अध्यापक भर्ती घोटाले मामले में पार्टी के दो प्रमुख नेता पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चौटाला तथा उनके पुत्र अजय चौटाला इस समय जेल में हैं। परंतु उनके कार्यकर्ता उनके जेल जाने का कारण कांग्रेस की साजि़श बता रहे हैं। यही नहीं बल्कि उनके कार्यकर्ताओं द्वारा यह भी प्रचारित किया जा रहा है कि चूंकि उन्होंने बेरोज़गारी दूर करने हेतु अध्यापकों की भर्ती कराई थी इसलिए उन्हें जेल भेज दिया गया। कार्यकर्ता यहां तक कह रहे हैं कि यदि बेरोज़गारी दूर करने के चलते उन्हें जेल जाना पड़े तो वे बार-बार जेल जाने को तैयार हैं। अब यह तो आने वाला समय ही बताएगा कि चौटाला पिता-पुत्र के जेल जाने के मुद्दे को राज्य की जनता किस नज़र से देखती है। कुल मिलाकर भारतीय जनता पार्टी दिल्ली की विजय से उत्साहित होकर राज्य में अपनी विजय संकल्प यात्रा पूरी उम्मीद,जोश व उत्साह के साथ निकाल चुकी है तथा उसे पूरी आस है कि इस बार राज्य की सत्ता उसी को मिलेगी। इसी आत्मविश्वास की वजह से पार्टी ने हजकां से गठबंधन भी तोड़ दिया है। इस चुनाव में हजकां जनता को यह बताती दिखाई देगी कि भाजपा ने उसके साथ किस प्रकार धोखा किया है और गठबंधन धर्म भी ठुकराया है। वहीं कांग्रेस पार्टी न केवल अपनी विकास संबंधी उपलब्धियां लेकर चुनाव मैदान में कूद रही है बल्कि उसे भूपेंद्र सिंह हुड्डा की सौम्यता तथा शराफत का भी सहारा है। कैथल में नरेंद्र मोदी की रैली में हुड्डा के साथ भाजपाईयों ने हूटिंग करने जैसा जो भोंडा प्रदर्शन किया था उसे भी मुख्यमंत्री हुड्डा जनता के बीच हरियाणा के अपमान के रूप में चुनावों में साथ ले जा रहे हैं। और जनता से उस अपमान का बदला लेने की बात कर रहे हैं। इन हालात में राज्य का चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा यह देखना दिलचस्प होगा।

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