-मिलन सिन्हा –
देखा मैंने राजधानी में
आलीशान इमारतों का काफिला
और बगल में
झुग्गी झोपड़ियों की बस्ती
जैसे अमीरी-गरीबी
रहते साथ-साथ
दो अलग-अलग दुनिया में
सुविधाएँ अनेक इमारतों में
असुविधाएं अनेक झोपड़ियों में
एक तरफ रातें रंगीन हैं
तो दूसरी ओर
सिर्फ कल्पनाएं रंगीन हैं, यथार्थ काला
ऊपर मदिरा में डूबकर भी
प्यासे हैं लोग
झोपड़ियों में पानी के लिए भी
तरस रहे हैं लोग
कितने ही ऐसे विरोधाभास
फिर भी, बस ऐसे ही
सालों -साल जिये जा रहें हैं लोग !