रामस्वरूप रावतसरे
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित कर दिया है। यह समझौता भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध होने के बाद भी बना हुआ था। भारत के इस कदम को कई एक्सपर्ट पहले वाटर युद्ध की शुरुआत बता रहे हैं। इस बीच भारतीय एक्सपर्ट ने मोदी सरकार को अमेरिका से सीख लेने के लिए कहा है। सामरिक मामलों के विशेषज्ञ ब्रह्मा चेलानी ने कहा कि सिंधु जल समझौता भारत के लिए एक गलती की तरह से है। इस समझौते से पाकिस्तान को 6 नदियों का ज्यादातर पानी मिल गया। उन्होंने बताया कि साल 2016 में पीएम मोदी ने उरी आतंकी हमले के बाद कहा था कि ’’खून और पानी एक साथ नहीं बह सकते हैं।’’ मोदी सरकार को यह सिंधु जल समझौता सस्पेंड करने का फैसला लेने में 8 साल लग गये।
ब्रह्मा चेलानी के अनुसार मोदी सरकार यह फैसला लेने में बहुत धीमी रही। अब एक और बड़ा आतंकवादी हमला होने के 8 साल बाद सरकार को सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के लिए बाध्य होना पड़ा है जबकि इस समझोते को बहुत पहले ही खतम कर देना चाहिए था। चेलानी ने कहा कि भारत के इस रवैये की तुलना अमेरिका से की जानी चाहिए। अमेरिका एकतरफा तरीके से रूस के साथ दो समझौतों इंटरमीडिएट रेंज न्यूक्लियर फोर्सेस (आईएनएफ) और एंटी बलिस्टिक मिसाइल समझौते से अचानक ही बाहर हो गया। पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर भारत ने एक्शन लेना चालू कर दिया है। पाकिस्तान प्रायोजित इस आतंकी हमले के बाद भारत ने कूटनीतिक कदम उठाए हैं। भारत ने सिंधु जल समझौते को निलंबित करने के अलावा पाकिस्तानी नागरिकों के वीजा रद्द करने, अटारी सीमा बंद करने और पाकिस्तानियों को देश निकाला देने का फैसला लिया है। इन सबमें सबसे बड़ी चोट सिंधु जल समझौते को रद्द करके की ही गई है। इसकी माँग भी लम्बे समय से हो रही थी। भारत और पाकिस्तान, एक ही भूभाग का हिस्सा है। भारत से कई नदियाँ बह कर पाकिस्तान जाती हैं। सिंधु नदी तंत्र की नदियाँ पाकिस्तान के पानी का सबसे बड़ा स्रोत हैं। इन्हीं के पानी के बँटवारे को लेकर किया गया समझौता सिंधु जल समझौता कहलाता है।
यह समझौता वर्ष 1960 में हुआ था। इसके लिए लगभग एक दशक तक बातचीत पाकिस्तान और भारत के बीच चली थी। तब प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू और पाकिस्तान के तानाशाह अयूब खान ने इसको मंजूरी दी थी। सिंधु जल समझौते के तहत सिंधु नदी तंत्र की 6 नदियों (व्यास, रावी, सतलुज, सिन्धु, चेनाब और झेलम) के पानी का बँटवारा होता है। इस जल समझौते के अनुसार, पूर्वी नदियाँ (व्यास, रावी और सतलुज) के पानी पर पूरा अधिकार भारत का है, यानी इनमें बहने वाले पानी का वह किसी भी तरह से इस्तेमाल कर सकता है। भारत इन नदियों पर बाँध बना सकता है, उनकी जलधाराएँ मोड़ सकता है, उनसे नहरें निकाल सकता है और पूरा उपयोग कर सकता है। सिंधु जल समझौते के अनुच्छेद 2 का खंड (1) कहता है, “पूर्वी नदियों का पूरा पानी भारत के अप्रतिबंधित उपयोग के लिए उपलब्ध रहेगा, सिवाय इसके कि इस अनुच्छेद में अन्यथा अलग से उसके लिए कोई प्रावधान किया गया हो।‘ पूर्वी नदियों को लेकर पाकिस्तान को दखलअंदाजी करने का कोई अधिकार नहीं है।
इसको लेकर भी अनुच्छेद 2 के खंड (2) में प्रावधान है। इसमें लिखा है, “घरेलू उपयोग को छोड़कर, पाकिस्तान सतलुज और रावी नदियों के पानी को बहने देने के लिए बाध्य होगा और उन स्थानों पर इनके पानी में किसी भी तरह का हस्तक्षेप नहीं होने देगा, जहाँ ये पाकिस्तान में बहती हैं और अभी तक पूरी तरह से पाकिस्तान में प्रवेश नहीं कर पाई हैं।
दरअसल, यह नदियाँ पाकिस्तान में अंतिम रूप से घुसने से पहले कई बार दोनों सीमाओं के इधर-उधर बहती हैं। पूर्वी नदियों के अलावा बाक़ी पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चेनाब) के पानी पर पूरा अधिकार पाकिस्तान का है। समझौता के अनुसार, भारत इन नदियों को लेकर कोई भी रोक नहीं लगा सकता।
समझौते का अनुच्छेद 3 का भाग (2) कहता है, “भारत पश्चिमी नदियों के जल को बहने देने के लिए बाध्य होगा, और इसमें किसी भी तरह के हस्तक्षेप की अनुमति नहीं देगा, कुछ परिस्थितियों को छोड़ कर।‘ यह परिस्थितियाँ घरेलू उपयोग और कृषि उपयोग से जुड़ी हुई हैं। इस समझौते के तहत इन 6 नदियों के लगभग 70 प्रतिशत-80 प्रतिशत पानी पर पाकिस्तान को जबकि 20 प्रतिशत -30 प्रतिशत पानी पर भारत को अधिकार मिलता है। इसको लेकर पहले भी प्रश्न उठाए जाते रहे हैं कि इसका सीधा फायदा पाकिस्तान को मिला है और भारत को इससे कोई लाभ नहीं है।
23 अप्रैल, 2025 को भारत के विदेश सचिव विक्रम मिसरी ने सिंधु जल समझौते के निलंबन की घोषणा की। भारत ने बताया कि पहलगाम में हुए आतंकी हमले में पाकिस्तान का रोल सामने आया है, ऐसे में समझौते को भारत निलंबित कर रहा है। इस हमले में 28 लोगों की हत्या इस्लामी आतंकियों ने कर दी है। मरने वाले अधिकांश हिन्दू हैं जिन्हें धर्म पूछ कर मारा गया जबकि वहां मुस्लिम समुदाय के बहुत से लोग भी थे।
भारत ने स्पष्ट कर दिया कि यह समझौता तब ही वापस अमल में लाया जाएगा जब पाकिस्तान आतंक पर ठोस कार्रवाई करना चालू करेगा। सिंधु जल समझौते पर इतना बड़ा एक्शन इससे पहले कभी नहीं लिया गया था। यहाँ तक कि 1965 युद्ध, 1971 युद्ध और कारगिल के दौरान भी इसे कूटनीतिक विकल्पों के तहत नहीं लाया गया था। 2019 में हुए पुलवामा आतंकी हमले के बाद भारत ने समझौते को ‘रिव्यू’ करने की बात कही थी। भारत इससे पहले भी कई बार पाकिस्तान को नोटिस भेज कर समझौते की शर्तों में बदलाव की माँग कर चुका है हालाँकि, उस पर कोई आगे ठोस कार्रवाई नहीं हुई है।
जानकारों के अनुसार पाकिस्तान की आबादी का एक बड़ा हिस्सा अब भी खेती पर निर्भर है। उसकी खेती का इलाका भी पंजाब और सिंध में सिमटा हुआ है। बलूचिस्तान और खैबर-पख्तूनख्वाह जैसे राज्य सूखे मरुस्थल जैसे हैं। पाकिस्तान में होने वाली खेती के लिए 90 प्रतिशत पानी सिंधु नदी तंत्र से आता है। यह पानी भारत से ही बह कर जाता है। सिंधु नदी तंत्र से आने वाला पानी पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था में 25 प्रतिशत हिस्से के लिए जिम्मेदार है। पाकिस्तान पहले से ही पानी की किल्लत झेल रहा है। ऐसे में भारत का यह समझौता निलंबित करना उसके लिए बड़ा झटका बताया जा रहा है। यह पानी रुकने से उसकी खेती तो प्रभावित होगी ही, कराची और लाहौर जैसे बड़े शहर भी पानी के लिए तरस जाएँगे। कई विशेषज्ञों का मानना है कि समझौते के निलंबित होने के बाद यह पानी पाकिस्तान जाने से रोकने के लिए भारत को नए बाँध बनाने होंगे, इससे ही पूरी तरह यह कार्रवाई अमल में आ पाएगी हालाँकि, भारत तुरंत भी पाकिस्तान को चोट दे सकता है। भारत अपने हिस्से में इन नदियों की धाराएँ अस्थायी रूप से सेना और बाकी विभाग को काम पर लगाकर मोड़ सकता है। इसके अलावा भारत इन नदियों में बहने वाले पानी की मात्रा, इनके जलस्तर, बहाव की गति और बाकी डाटा भी अब पाकिस्तान के साथ साझा नहीं करेगा। ऐसे में पाकिस्तान को बाढ़ और पानी में कमी का अंदाजा भी नहीं लगा पाएगा। यह स्थिति उसके लिए आगामी मानसून में और भी विकट होगी।
भारत के यह समझौता रद्द करने के बाद पाकिस्तान में हलचल तेज है। इससे पहले भी समझौते को रद्द करने की स्थिति में अंतरराष्ट्रीय मंच पर जाने की बात कहता आया है हालाँकि, इससे कोई विशेष फर्क नहीं पड़ने वाला है। पाकिस्तान में इस समय इस बात को लेकर भी खौफ है कि भारत इन कूटनीतिक क़दमों के अलावा और क्या सैन्य एक्शन लेगा।
रामस्वरूप रावतसरे